मंदिरों के प्रांगण में भटकती देवदासियां....... !
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देवदासी प्रथा सदियों से मंदिरों के प्रांगण में प्रचलित है। यूं तो आप सभी जिसे देवदासी के नाम से बुलाते हैं जिसका अर्थ ‘देवता की दासी’ यानी, ईश्वर की सेवा करने वाली पत्नी है।पर यह सत्य से कोसों दूर है। तमाम लड़कियाँ वहां ईश्वर के नाम की वेश्याएं थीं । हजारों साल पहले धर्म के नाम पर चलाई गई ये रीति लड़कियों के शारीरिक शोषण का एक बहाना मात्र था जिसे भगवान और धर्म के नाम पर जबरन पहना दिया जाता है । एक ऐसी बेड़ी जिसको पहनाने के बाद कभी न खोली जा सकती है और न तोड़ी जा सकती है । वहां उनका उपभोग ईश्वर के नाम पर महंत और पंडे करते थे। और यहां हर तरह का व्यक्ति उनका ग्राहक होता है। न वहां सम्मान जैसा कुछ था , न यहां। उनके पास न तो परिवार होता है न ही कोई बड़ी धनराशि और न कोई ठौर-ठिकाना जहां दो वक्त की रोटी और सिर छुपाने की जगह मिल जाए। यहाँ तक कि पढ़ने की इजाजत भी नहीं है। बस सिर्फ अच्छे से अच्छा नृत्य करना आना चाहिए। तपते सूरज के नीचे बिना किसी आश्रय के बैठ कर आंखों को भींच कर ये मानना कि ‘मैं चांदनी की शीतलता महसूस कर रही हूं’ इस झूठ को जीते हुए न जाने कितनी देवदासियां अपना जीवन त्याग देती हैं. पर इस दलदल से निकलना उनके लिए संभव नहीं हो पता।
एक बच्ची जो देवदासी बनाये जाने के लिए चुनी गयी उसकी जबानी इस भयावह किस्से का पता चला तब रूह काँप गयी। # महंत घर आया , माँ पिता उसके चरणों में पड़ गए। उसने कहा की तेरी छोटी बेटी को ईश्वर ने देवदासी बनाने के लिए चुना है। तू उसे मेरे साथ भेज दे। माँ पिता सहर्ष राजी हो गए। तब मैं भी खुश थी कि मंदिर में रहूंगी साथ ही अपनी बड़ी दीदी के साथ भी जो पहले से ही देवदासी बना दी गयी थी। सुबह वह महंत मुझे ले कर निकल पड़ा और हम मंदिर पहुँच गए। भव्य मंदिर था और ऊपरी हिस्सा सोने से मढ़ा हुआ था । मंदिर के गर्भ गृह से एक विशालकाय शरीर और तोंद वाला आदमी निकला तो सभी लोग सिर झुका कर घुटने के बल उसे प्रणाम करने लगे । उस रात एक बूढ़ी अम्मा के साथ रही, अगली सुबह मुझे नहला धुला कर दुल्हन जैसे कपड़े मिले पहनने को, जिसे उसी बूढ़ी अम्मा ने पहनाया जो रात मेरे पास थी। अब सब मुझे अच्छा लग रहा था । सब मुझे देख रहे थे। मेरी खूबसूरती की बलाएं ली जा रही थीं । मेरा विवाह कर दिया गया भगवान की मूर्ति के साथ, जिसे दुनिया पूजती है, अब मै उसकी पत्नी हूँ । ये सोच कर ख़ुशी की लहर दौड़ जाती थी पूरे शरीर में। मुझे रात दस बजे एक साफ सुथरे कमरे में , जहां पलंग पर सुगंधित फूल अपनी खुशबू बिखेर रहे थे बंद कर दिया गया ।बूढी अम्मा ने समझाया ‘आज ईश्वर खुद तेरी वरण करेंगे, ध्यान रखना। ईश्वर नाराज़ न होने पाएं।”
डेढ़ घंटे बाद दरवाजा खुलने और फिर बंद होने की आहट से मेरे नींद खुली। मैं तुरंत उठ कर बैठ गई। सामने वही बड़े शरीर वाला था। लाल आंखें और सिर्फ एक धोती पहने और भी डरा रहा था मुझे। ‘ये क्यूँ आया है?’ मन ने सवाल किया। ‘मुझे तो भगवान के साथ सोने के लिए कहा गया था’ सवाल बहुत थे पर जवाब एक भी नहीं था। वो सीधा मेरे पास आ कर बैठ गया, और मैं खुद में सिकुड़ गई। मेरे चेहरे को उठा कर बोला ‘मैं प्रधान महंत हूँ इस मंदिर का, ऊपर आसमान का भगवान ये है ( कोने में रखी विष्णु की मूर्ति की तरफ इशारा करता हुआ बोला) और इस दुनिया का मैं। मैंने बिना समझे सिर हिला दिया। महंत मुस्कुराया और मुझे पलंग से खड़ी कर दिया और मेरी साड़ी खोल दी। मेरी नन्हीं मुट्ठियों में इतनी पकड़ नहीं थी कि मैं उसे मेरे कपड़े उतारने, नहीं.. नोचने से रोक पाती। उसने खींच कर पलंग पर पटक दिया और मैं एक भरी भरकम शरीर के नीचे दब कर रह गयी। और फिर मेरी भयंकर चीख निकली। मैं दर्द से झटपटा रही थी। सांस नहीं लौटी बहुत देर तक। दोबारा चीख निकली तो महंत ने मेरा मुंह दबा दिया। मुंह दबाने पर, मैं उस हाथ से पूरी ताकत लगा कर उस पहाड़ को अपने ऊपर से धकेल रही थी, पर सौ से भी ऊपर का भार क्या 11 साल की लड़की के एक हाथ से हटने वाला था ? मैं दर्द से बिलबिला रही थी पर वह रुकने का नाम नहीं ले रहा था। पूरी शिद्दत से भगवान को मुझसे मिला रहा था, पर उस समय और कुछ नहीं याद था सिर्फ दर्द, दर्द और बहुत दर्द था। मैंने नाखून से नोचना शुरू कर दिया था। पर उसकी खाल पर कोई असर नहीं हो रहा था। मुझे अपने जांघों के नीचे पहले गर्म गर्म महसूस हुआ और फिर ठंडा ठंडा , वो मेरी योनि के फटने की वजह से निकला खून का फव्वारा था। पीड़ा जब असहनीय हो गई, मुझे मूर्छा आने लगी और कुछ देर बाद मैं पूरी तरह बेहोश हो गई। मुझे नहीं पता वो कब तक मेरे शरीर के ऊपर रहा, कब तक ईश्वर से मेरे शरीर का मिलन कराता रहा। चेहरे पर पानी के छींटों के साथ मेरी बेहोशी टूटी। मेरे ऊपर एक चादर थी और वही बूढ़ी अम्मा मेरे घाव को गर्म पानी से संभाल कर धो रही थीं। ‘तुने कल महंत को नाखूनों से नोंच लिया ? समझाया था न तुझे, फिर? दुःख और पीड़ा से कुछ भी न कह सकी।
मेरी आंखें इस बीच लगातार मेरी बहन को ढूंढती रहीं। पर वो नहीं मिली। मेरे बाद कई लड़कियों आईं। एक और लड़की का चेहरा नहीं भूलता। जिस शाम उसका और महंत के जरिए भगवान से मिलन होना था। बस तभी पहली और आखिरी बार देखा था। फिर कभी नज़र नहीं आई वो।बहुत दिनों बाद मुझे उसी बूढ़ी अम्मा ने बताया था(किसी को न बताने की शर्त पर) कि उस रात महंत को उसका ईश्वर से मिलन कराने के बाद नींद आ गई थी तो वह उसके ऊपर ही सो गए थे और दम घुट जाने से वह मर गई थी। सुन कर दो दिन एक निवाला नहीं उतरा हलक से लगा शायद मुझे भी मर जाना चाहिए था। यही जीवन जीती हैं एक देवदासी , और वह माता पिता भी कैसे होते हैं जो अपने जिगर के टुकड़े को इस तरह सौंप देतें हैं।
अंततः जिस मंदिर में ये देवदासियां देव की ब्याहता कहलाती थीं उसी मंदिर की सीढ़ियों में भीख मांगने को मजबूर हो जाती हैं । यह एक सत्य वक्तव है जो इस प्रथा का मर्म बयां करता है।
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देवदासी प्रथा सदियों से मंदिरों के प्रांगण में प्रचलित है। यूं तो आप सभी जिसे देवदासी के नाम से बुलाते हैं जिसका अर्थ ‘देवता की दासी’ यानी, ईश्वर की सेवा करने वाली पत्नी है।पर यह सत्य से कोसों दूर है। तमाम लड़कियाँ वहां ईश्वर के नाम की वेश्याएं थीं । हजारों साल पहले धर्म के नाम पर चलाई गई ये रीति लड़कियों के शारीरिक शोषण का एक बहाना मात्र था जिसे भगवान और धर्म के नाम पर जबरन पहना दिया जाता है । एक ऐसी बेड़ी जिसको पहनाने के बाद कभी न खोली जा सकती है और न तोड़ी जा सकती है । वहां उनका उपभोग ईश्वर के नाम पर महंत और पंडे करते थे। और यहां हर तरह का व्यक्ति उनका ग्राहक होता है। न वहां सम्मान जैसा कुछ था , न यहां। उनके पास न तो परिवार होता है न ही कोई बड़ी धनराशि और न कोई ठौर-ठिकाना जहां दो वक्त की रोटी और सिर छुपाने की जगह मिल जाए। यहाँ तक कि पढ़ने की इजाजत भी नहीं है। बस सिर्फ अच्छे से अच्छा नृत्य करना आना चाहिए। तपते सूरज के नीचे बिना किसी आश्रय के बैठ कर आंखों को भींच कर ये मानना कि ‘मैं चांदनी की शीतलता महसूस कर रही हूं’ इस झूठ को जीते हुए न जाने कितनी देवदासियां अपना जीवन त्याग देती हैं. पर इस दलदल से निकलना उनके लिए संभव नहीं हो पता।
एक बच्ची जो देवदासी बनाये जाने के लिए चुनी गयी उसकी जबानी इस भयावह किस्से का पता चला तब रूह काँप गयी। # महंत घर आया , माँ पिता उसके चरणों में पड़ गए। उसने कहा की तेरी छोटी बेटी को ईश्वर ने देवदासी बनाने के लिए चुना है। तू उसे मेरे साथ भेज दे। माँ पिता सहर्ष राजी हो गए। तब मैं भी खुश थी कि मंदिर में रहूंगी साथ ही अपनी बड़ी दीदी के साथ भी जो पहले से ही देवदासी बना दी गयी थी। सुबह वह महंत मुझे ले कर निकल पड़ा और हम मंदिर पहुँच गए। भव्य मंदिर था और ऊपरी हिस्सा सोने से मढ़ा हुआ था । मंदिर के गर्भ गृह से एक विशालकाय शरीर और तोंद वाला आदमी निकला तो सभी लोग सिर झुका कर घुटने के बल उसे प्रणाम करने लगे । उस रात एक बूढ़ी अम्मा के साथ रही, अगली सुबह मुझे नहला धुला कर दुल्हन जैसे कपड़े मिले पहनने को, जिसे उसी बूढ़ी अम्मा ने पहनाया जो रात मेरे पास थी। अब सब मुझे अच्छा लग रहा था । सब मुझे देख रहे थे। मेरी खूबसूरती की बलाएं ली जा रही थीं । मेरा विवाह कर दिया गया भगवान की मूर्ति के साथ, जिसे दुनिया पूजती है, अब मै उसकी पत्नी हूँ । ये सोच कर ख़ुशी की लहर दौड़ जाती थी पूरे शरीर में। मुझे रात दस बजे एक साफ सुथरे कमरे में , जहां पलंग पर सुगंधित फूल अपनी खुशबू बिखेर रहे थे बंद कर दिया गया ।बूढी अम्मा ने समझाया ‘आज ईश्वर खुद तेरी वरण करेंगे, ध्यान रखना। ईश्वर नाराज़ न होने पाएं।”
डेढ़ घंटे बाद दरवाजा खुलने और फिर बंद होने की आहट से मेरे नींद खुली। मैं तुरंत उठ कर बैठ गई। सामने वही बड़े शरीर वाला था। लाल आंखें और सिर्फ एक धोती पहने और भी डरा रहा था मुझे। ‘ये क्यूँ आया है?’ मन ने सवाल किया। ‘मुझे तो भगवान के साथ सोने के लिए कहा गया था’ सवाल बहुत थे पर जवाब एक भी नहीं था। वो सीधा मेरे पास आ कर बैठ गया, और मैं खुद में सिकुड़ गई। मेरे चेहरे को उठा कर बोला ‘मैं प्रधान महंत हूँ इस मंदिर का, ऊपर आसमान का भगवान ये है ( कोने में रखी विष्णु की मूर्ति की तरफ इशारा करता हुआ बोला) और इस दुनिया का मैं। मैंने बिना समझे सिर हिला दिया। महंत मुस्कुराया और मुझे पलंग से खड़ी कर दिया और मेरी साड़ी खोल दी। मेरी नन्हीं मुट्ठियों में इतनी पकड़ नहीं थी कि मैं उसे मेरे कपड़े उतारने, नहीं.. नोचने से रोक पाती। उसने खींच कर पलंग पर पटक दिया और मैं एक भरी भरकम शरीर के नीचे दब कर रह गयी। और फिर मेरी भयंकर चीख निकली। मैं दर्द से झटपटा रही थी। सांस नहीं लौटी बहुत देर तक। दोबारा चीख निकली तो महंत ने मेरा मुंह दबा दिया। मुंह दबाने पर, मैं उस हाथ से पूरी ताकत लगा कर उस पहाड़ को अपने ऊपर से धकेल रही थी, पर सौ से भी ऊपर का भार क्या 11 साल की लड़की के एक हाथ से हटने वाला था ? मैं दर्द से बिलबिला रही थी पर वह रुकने का नाम नहीं ले रहा था। पूरी शिद्दत से भगवान को मुझसे मिला रहा था, पर उस समय और कुछ नहीं याद था सिर्फ दर्द, दर्द और बहुत दर्द था। मैंने नाखून से नोचना शुरू कर दिया था। पर उसकी खाल पर कोई असर नहीं हो रहा था। मुझे अपने जांघों के नीचे पहले गर्म गर्म महसूस हुआ और फिर ठंडा ठंडा , वो मेरी योनि के फटने की वजह से निकला खून का फव्वारा था। पीड़ा जब असहनीय हो गई, मुझे मूर्छा आने लगी और कुछ देर बाद मैं पूरी तरह बेहोश हो गई। मुझे नहीं पता वो कब तक मेरे शरीर के ऊपर रहा, कब तक ईश्वर से मेरे शरीर का मिलन कराता रहा। चेहरे पर पानी के छींटों के साथ मेरी बेहोशी टूटी। मेरे ऊपर एक चादर थी और वही बूढ़ी अम्मा मेरे घाव को गर्म पानी से संभाल कर धो रही थीं। ‘तुने कल महंत को नाखूनों से नोंच लिया ? समझाया था न तुझे, फिर? दुःख और पीड़ा से कुछ भी न कह सकी।
मेरी आंखें इस बीच लगातार मेरी बहन को ढूंढती रहीं। पर वो नहीं मिली। मेरे बाद कई लड़कियों आईं। एक और लड़की का चेहरा नहीं भूलता। जिस शाम उसका और महंत के जरिए भगवान से मिलन होना था। बस तभी पहली और आखिरी बार देखा था। फिर कभी नज़र नहीं आई वो।बहुत दिनों बाद मुझे उसी बूढ़ी अम्मा ने बताया था(किसी को न बताने की शर्त पर) कि उस रात महंत को उसका ईश्वर से मिलन कराने के बाद नींद आ गई थी तो वह उसके ऊपर ही सो गए थे और दम घुट जाने से वह मर गई थी। सुन कर दो दिन एक निवाला नहीं उतरा हलक से लगा शायद मुझे भी मर जाना चाहिए था। यही जीवन जीती हैं एक देवदासी , और वह माता पिता भी कैसे होते हैं जो अपने जिगर के टुकड़े को इस तरह सौंप देतें हैं।
अंततः जिस मंदिर में ये देवदासियां देव की ब्याहता कहलाती थीं उसी मंदिर की सीढ़ियों में भीख मांगने को मजबूर हो जाती हैं । यह एक सत्य वक्तव है जो इस प्रथा का मर्म बयां करता है।
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