दूषित विकृति के मारे ये मासूम बेचारे......... !
***********************
कैसे बचाएं नौनिहालों को ,
ये कैसी आयी है विपदा।
मासूम जिस्म के गले पड़ा,
कुकर्म का ये वहशी फंदा।
शर्म हया के सारे बंधन ,
अब हो गए हैं बेपरदा।
आधुनिकता के युग की,
एक देन है ये आपदा।
भूल गया है हर शख्श ,
अपना अपना ओहदा।
कुकर्मों से करतें है जो ,
सभी अपनों को शरमिंदा।
सोच बुरी,नीयत खोटी,
रख भटकते हैं जो सदा।
बचपन को झांसे में लेकर,
कुचल देते हैं बाकायदा।
कितनी हवस है मन में ,
कितनी है तड़प ये जिन्दा।
जिससे हर मासूम का मन,
निरंतर हो रहा है गन्दा।
( उपरोक्त कविता दिल्ली के एक छह वर्षीय बालक के बलात्कार और फिर हत्या के सन्दर्भ में लिखी है। जिसमें घृणित सोच रखने वालों की निंदा की गयी है )
***********************
कैसे बचाएं नौनिहालों को ,
ये कैसी आयी है विपदा।
मासूम जिस्म के गले पड़ा,
कुकर्म का ये वहशी फंदा।
शर्म हया के सारे बंधन ,
अब हो गए हैं बेपरदा।
आधुनिकता के युग की,
एक देन है ये आपदा।
भूल गया है हर शख्श ,
अपना अपना ओहदा।
कुकर्मों से करतें है जो ,
सभी अपनों को शरमिंदा।
सोच बुरी,नीयत खोटी,
रख भटकते हैं जो सदा।
बचपन को झांसे में लेकर,
कुचल देते हैं बाकायदा।
कितनी हवस है मन में ,
कितनी है तड़प ये जिन्दा।
जिससे हर मासूम का मन,
निरंतर हो रहा है गन्दा।
( उपरोक्त कविता दिल्ली के एक छह वर्षीय बालक के बलात्कार और फिर हत्या के सन्दर्भ में लिखी है। जिसमें घृणित सोच रखने वालों की निंदा की गयी है )
Comments
Post a Comment