जश्न और औरत ........ !

 मेरा ये शीर्षक शायद आप को भी द्विअर्थी लगा है , मुझे भी लगा। पर इस के चुने जाने की वजह के खुलासे से आप भी इस से सहमत हो जायेंगे। अभी हाल ही में एक टीवी चैनेल पर किसी चुनावी रैली औरतों के नंगेपन वाले नाच देखने  के बाद ये अहसास हुआ कि क्यों औरतों को जश्न के लिए एक सामान मात्रा माना जाता है।चुनावी रैली में नेताओं के भाषण के लिए भीड़ जुटाने के वास्ते लड़कियों को बुला कर उनसे नंगा नाच करवा कर वोटरों को लुभाने का पूर्णतया प्रयास किया जाता है क्योंकि ये अहसास है कि औरत को इस तरह बेपर्दा देखने के लिए जुडे तमाम हुजूम को इस तरह खुश करके अपने पक्ष में किया जा सकता है। ये एक पहलु है। परंतु दूसरी ओर मैंने सोचा कि द्विअर्थी शीर्षक की की व्याख्या दोनों ही तरीके से की जा सकती है। जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पक्षों पर से पर्दा उठाया जा सकते हैं।
सर्वप्रथम सकारात्मक :
               औरत वास्तविकता में किसी सामान्य जश्न को उत्सवकाल में बदलने का दम ख़म रखती है। कोई मर्द जो अविवाहित है वह किसी भी उत्सव या त्यौहार को उस तरह नहीं मनाता होगा जैसे कि विवाह के पश्चात् एक औरत के साथ मनाता है। अकेला पुरुष उसे जश्न के रूप में जबकि स्त्री उसे रीति रिवाज में ढाल कर मनाने की काबिलियत रखतें हैं। यह अंतर किसी उत्सव को धार्मिक अथवा मनोरंजक श्रेणियों में बाँट देता है। जब एक औरत किसी घर की गृहलक्ष्मी बन कर उसके घर आती है तब वह उस घर के तमाम उत्सवों को एक नए सिरे से मनाने के लिए प्रतिबद्ध हो कर आती है। पूरा घर उसका बन जाता है और वह घर की परम्पराओं में अपने पीहर से लाई हुई संस्कार संबंधी रीति रिवाजों का समिश्रण करके उसे नए रूप में परिवार का हिस्सा बना देती है। इसी लिए पारिवारिक संस्कारों की दशा और मनाने के तरीके निरंतर बदलते रहतें हैं।
अब नकारात्मक :
               अब दूसरा नकारात्मक पक्ष देखें , औरत पुरुष के लिए बस एक मनोरंजन मात्र है। तभी उसे सिनेमा में आइटम गाने करवा कर , नाटकों में अभद्र गीतों पर अश्लील अदाएं करवा कर , पहले से उल्लेखित चुनावी रैलियों में कम कपड़ों में नचवा कर , और यहाँ तक कि मर्दों के प्रयोग वाली वस्तुओं के विज्ञापन में बेपर्दा कर के अन्य को अपनी ओर सहमत किया जाता है। अब सोचने वाली बात ये है कि क्या इन औरतों के बिना ये जश्न अधूरे हैं ? यदि एक पुरुष के नजरिये से देखें तो अवश्य ही इस का जवाब हाँ ही होगा। हाँ इस लिए की अधिकाधिक लोगों को अपनी और करने के लिए उन्हें औरत के बदन का प्रयोग सबसे सरल लगता है। जश्न मतलब औरत इस लिए कि सभा में एक वक्ता कितना भी अच्छा क्यों न बोल ले वह पूरी तरह लोगों को खुश नहीं कर सकता।  यही पर अगर एक औरत उस समारोह का हिस्सा बन कर अपनी अदाएं पेश कर दे तो उसकी अदाओं का रसास्वादन करने तमाम लड़के और मर्द इकट्ठे हो जायेंगे। उन्हें खुश करने के उपरांत उनसे अपनी बात भी मनवाई जा सकती है। ये अर्थ है जश्न और औरत के संयोग का। 

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