सपनों का दर्द भरा शहर..... !
एक छोटे से शहर की लड़की आँखों में बड़े बड़े सपने ले कर जयपुर जैसे बड़े शहर में आयी। सोचा कि बड़े शहर की रंगीनियों को किनारे रखकर उसके हितलाभ का उपयोग करके कुछ बनने का प्रयास करेगी। रेलवे स्टेशन से ऑटो मैं बैठकर उसने उसे अपने गंतव्य की जानकारी दी। ऑटो चला और कुछ दूरी उपरांत एक और सवारी युवक को जबरदस्ती बैठा लिया गया। मन तभी आशंकित हुआ होगा पर छोटे शहर के दबे हुए डर ने प्रतिरोध नहीं करवाया होगा और किया भी होगा तो उसे कोई दलील दे कर या जबरन शांत करवा कर चुप करा दिया गया होगा। ऑटो उसके बताये हुए स्थान पर न जाकर एक सुनसान इलाके में रुका जहाँ पहले से ही एक युवक प्रतीक्षा में खड़ा था। उन सब ने मिल कर उसे जबरदस्ती घसीटते हुए ऑटो से बाहर खिंचा और फिर जो कुछ हुआ वह आप समझ ही गए होंगे। तीन हट्टे -खट्टे पुरुष एक कोमल सी 17 वर्ष की बच्ची।
किस्सा ख़त्म , पैसा हजम ....... अजीब सा लगा न। मुझे भी लगा। पर यह लिखने के अलावा मेरे पास कोई और चारा ही नहीं है। क्योंकि सिर्फ पढ़ कर अपने कर्म की इतिश्री करने वालों में से एक मैं भी हूँ। बस थोड़ा सा फर्क यहाँ आता है कि मैंने सदा ही उस दर्द को महसूस किया है जो बच्चियां उस घटना के दौरान भोगती हैं। उन तीन पुरुषों ने अपनी हवस के लिए उसे कितना दबोचा ,खसोटा और रगड़ा होगा। जिस बच्ची ने अभी इस अनुभव को जाना और महसूस भी नहीं किया होगा उस की वेदना का अंदाजा लगाइये। चीखी होगी ,चिल्लाई होगी , गिड़गिड़ाई होगी। पर हाय रे ये पुरुष...... कभी कभी मुझे लगता है कि हमारे समाज में स्त्री पुरुष के तमाम सम्बंद्धों को कोई न कोई नाम दिया गया है। जैसे माँ ,बहन ,भाभी ,ताई ,मामी ,काकी ,चाची इस की ये वजह है कि पुरुष अपनी इस लूट की प्रवृति को सीमाओं में रोक सके। वर्ना ये भी कुत्ते की तरह हर औरत को अपनी जरूरत पुरी करने का सामान समझ लेंगे , क्या माँ ,क्या बहन । परंतु अब परुष ने उन तमाम सीमाओं को तोड़ कर अपनी एक नयी नियमावली चला दी है। जिस का ओर- छोर
मैथली शरण गुप्त जी रचित उन पंक्तियों की तरह है। अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी , आँचल में दूध और आँखों में पानी। अर्थात हमें पैदा करो , आँचल में संजोओ ,दूध पिलाओ और फिर हम ही तुम्हारी आँखों से अश्रु की धार बहाने के कारण पैदा करेंगे।
स्त्री से जुड़ा वह चाहे कोई भी रिश्ता हो पर परिवार के किसी एक पुरुष के बलात्कारी बनने से तमाम रिश्ते प्रभावित होतें है। तमाम मानसिकताएं दहल जाती हैं। और डर हर रिश्ते पर हावी होने लगता है। यही सत्य है।
एक छोटे से शहर की लड़की आँखों में बड़े बड़े सपने ले कर जयपुर जैसे बड़े शहर में आयी। सोचा कि बड़े शहर की रंगीनियों को किनारे रखकर उसके हितलाभ का उपयोग करके कुछ बनने का प्रयास करेगी। रेलवे स्टेशन से ऑटो मैं बैठकर उसने उसे अपने गंतव्य की जानकारी दी। ऑटो चला और कुछ दूरी उपरांत एक और सवारी युवक को जबरदस्ती बैठा लिया गया। मन तभी आशंकित हुआ होगा पर छोटे शहर के दबे हुए डर ने प्रतिरोध नहीं करवाया होगा और किया भी होगा तो उसे कोई दलील दे कर या जबरन शांत करवा कर चुप करा दिया गया होगा। ऑटो उसके बताये हुए स्थान पर न जाकर एक सुनसान इलाके में रुका जहाँ पहले से ही एक युवक प्रतीक्षा में खड़ा था। उन सब ने मिल कर उसे जबरदस्ती घसीटते हुए ऑटो से बाहर खिंचा और फिर जो कुछ हुआ वह आप समझ ही गए होंगे। तीन हट्टे -खट्टे पुरुष एक कोमल सी 17 वर्ष की बच्ची।
किस्सा ख़त्म , पैसा हजम ....... अजीब सा लगा न। मुझे भी लगा। पर यह लिखने के अलावा मेरे पास कोई और चारा ही नहीं है। क्योंकि सिर्फ पढ़ कर अपने कर्म की इतिश्री करने वालों में से एक मैं भी हूँ। बस थोड़ा सा फर्क यहाँ आता है कि मैंने सदा ही उस दर्द को महसूस किया है जो बच्चियां उस घटना के दौरान भोगती हैं। उन तीन पुरुषों ने अपनी हवस के लिए उसे कितना दबोचा ,खसोटा और रगड़ा होगा। जिस बच्ची ने अभी इस अनुभव को जाना और महसूस भी नहीं किया होगा उस की वेदना का अंदाजा लगाइये। चीखी होगी ,चिल्लाई होगी , गिड़गिड़ाई होगी। पर हाय रे ये पुरुष...... कभी कभी मुझे लगता है कि हमारे समाज में स्त्री पुरुष के तमाम सम्बंद्धों को कोई न कोई नाम दिया गया है। जैसे माँ ,बहन ,भाभी ,ताई ,मामी ,काकी ,चाची इस की ये वजह है कि पुरुष अपनी इस लूट की प्रवृति को सीमाओं में रोक सके। वर्ना ये भी कुत्ते की तरह हर औरत को अपनी जरूरत पुरी करने का सामान समझ लेंगे , क्या माँ ,क्या बहन । परंतु अब परुष ने उन तमाम सीमाओं को तोड़ कर अपनी एक नयी नियमावली चला दी है। जिस का ओर- छोर
मैथली शरण गुप्त जी रचित उन पंक्तियों की तरह है। अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी , आँचल में दूध और आँखों में पानी। अर्थात हमें पैदा करो , आँचल में संजोओ ,दूध पिलाओ और फिर हम ही तुम्हारी आँखों से अश्रु की धार बहाने के कारण पैदा करेंगे।
स्त्री से जुड़ा वह चाहे कोई भी रिश्ता हो पर परिवार के किसी एक पुरुष के बलात्कारी बनने से तमाम रिश्ते प्रभावित होतें है। तमाम मानसिकताएं दहल जाती हैं। और डर हर रिश्ते पर हावी होने लगता है। यही सत्य है।
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