अजीब सी होती हैं ये औरतें ,
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अजीब सी होती हैं ये औरतें ,
अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध कराती हैं।
चारदीवारी से बने मकान को ,
खुशियों से भरा पूरा घर बनाती हैं।
अजीब सी होती हैं ये औरतें ,
सोते सोते भी कुछ बुदबुदाती हैं।
अगले दिन की दिनचर्या,
मन ही मन में बनाती जाती हैं।
अजीब सी होती है ये औरतें ,
हर रिश्ते को दिल से निभाती हैं।
जिस भी परिवार में रहें ,
उसी की बन कर उसकी हो जाती हैं।
अजीब सी होती है ये औरतें ,
संभाले रहने के अहसास से ,
हर एक को सहारा दिए जाती हैं।
खुद की लडख़ड़ाहट को छिपा कर ,
परिवार की रीढ़ बन जाती हैं।
अजीब सी होती हैं ये औरतें ,
दुःख सुख में धैर्य की पहचान बन,
संकटमोचक सी बन जाती हैं।
परिवार की ढाल बन कर हमेशा ,
हर गम से अकेले ही भिड़ जाती हैं।
अजीब सी होती हैं ये औरतें ,
सिर्फ खुद तक सीमित नहीं रह पाती हैं।
सभी की खुशियों के लिए यूँ ही ,
अपना सुख भी दावँ पर लगा जाती हैं।
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अजीब सी होती हैं ये औरतें ,
अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध कराती हैं।
चारदीवारी से बने मकान को ,
खुशियों से भरा पूरा घर बनाती हैं।
अजीब सी होती हैं ये औरतें ,
सोते सोते भी कुछ बुदबुदाती हैं।
अगले दिन की दिनचर्या,
मन ही मन में बनाती जाती हैं।
अजीब सी होती है ये औरतें ,
हर रिश्ते को दिल से निभाती हैं।
जिस भी परिवार में रहें ,
उसी की बन कर उसकी हो जाती हैं।
अजीब सी होती है ये औरतें ,
संभाले रहने के अहसास से ,
हर एक को सहारा दिए जाती हैं।
खुद की लडख़ड़ाहट को छिपा कर ,
परिवार की रीढ़ बन जाती हैं।
अजीब सी होती हैं ये औरतें ,
दुःख सुख में धैर्य की पहचान बन,
संकटमोचक सी बन जाती हैं।
परिवार की ढाल बन कर हमेशा ,
हर गम से अकेले ही भिड़ जाती हैं।
अजीब सी होती हैं ये औरतें ,
सिर्फ खुद तक सीमित नहीं रह पाती हैं।
सभी की खुशियों के लिए यूँ ही ,
अपना सुख भी दावँ पर लगा जाती हैं।
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