आतंरिक खासियतों की हिफ़ाजत.........!
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आज चलिए एक ऐसे विषय पर कुछ सोचा जाए जो हम सब की जिंदगी का एक अहम् हिस्सा है। पर हम दूसरों से तुलना में उस हिस्से को खोते जा रहें हैं। वह हिस्सा है हमारी आतंरिक विशेषताएं। हम सभी अपनी अलग अलग विशेषताओं के कारण एक दूसरे से अलग है। ये विशेषताएं दो तरह की होती हैं पहली आतंरिक और दूसरी शारीरिक। शारीरिक विशेषताओं हमें पैतृक रूप में जन्म से प्राप्त होती हैं। जबकि आतंरिक विशेषताएं हमारे वह गुण हैं जो हमें दूसरों से अलग करतें हैं। जैसे किसी को कला में रूचि किसी को नृत्य में , कोई गणित में पारंगत तो कोई चित्रकारी में , किसी को तेज रफ़्तार जिंदगी पसंद तो किसी को धीरे धीरे शांति से अपना लक्ष्य हांसिल करना अच्छा लगता है। ये खासियतें हैं जो धीरे धीरे हमारे व्यक्तित्व की पहचान बन जाती हैं। कभी कभी हम इन्ही खसियतों की वजह से हम अपने काम में भी पारंगत हो जाते हैं। अर्थात काम में सिद्ध्हस्थता इन विशेषताओं को और निखार कर आने लगती है।
लेकिन इस सब से परे जो महत्वपूर्ण मुद्दा सोचने का है वह ये कि हम अपनी इन्ही खासियतों की अवहेलना करने लगते हैं जब हम उसे दूसरों के नजरिये से देखने लगते हैं। उदाहरण के तौर पर समझिये , हमें अपने अतिथियों की खातिरदारी करना अच्छा लगता है। हम उन्हें खूब आदर सत्कार दे कर विभिन्न पकवान खिला कर संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं और हमारे अतिथि इस से खुश होते भी हैं। ये हमारी एक अहम् विशेषता है और हमारी इस विशेषता की लोग क़द्र भी करतें हैं। पर हमारी ये विशेषता तब खोने लगती है जब हम इस की तुलना करने लगते हैं। जैसे कि आप ने जिसे भी उचित आदर सत्कार दिया हो उसके घर आप ने वही प्रतिरूप न पाया तो आप को अपने किये का प्रतिशत ज्यादा लगने लगेगा और इस स्थिति में आप हो सकता है कि दो -चार बार उन्हें परखें फिर आप भी वही आवभगत का स्तर रखेंगे जो आप उनके घर पर पातें हैं। ये सोच कर कि मैं ही क्यों खातिरदारी में रूचि दिखाऊं। जबकि ये तो ऐसे ही टरका देतें हैं। ऐसे में यह सोचें की हमने अपनी उच्च स्तर की आवभगत का गुण दूसरों की वजह से त्याग दिया। ये नहीं सोचा कि हो सकता है की ये हमारी स्वयं की एक खास खासियत हैं जो जरूरी नहीं कि उनके पास भी हो ।
क्योंकि हर इंसान अलग है तो अलग अलग जीवन जीने का तरीका भी अपना खास होता है। मदद एक गुण हैं जो हर किसी में नहीं होता लेकिन आप ने यदि ये गुण हैं पर आप इस लिए उसे किसी खास के लिए नहीं प्रयोग करते क्योंकि वह नहीं करते तो मैं ही क्यों करूँ। ये गलत है। यह अपना खासियत खोने की बात हैं। पर आज हम सब यही कुछ कर रहें है। अपने व्यक्तित्व की तमाम खासियतों को दूसरों के व्यवहारों और उनकी खासियतों से अपनी खासियतें मेल न खाने की वजह से गवातें जा रहें है जो हमें आधार हीन बना रहा हैं।
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आज चलिए एक ऐसे विषय पर कुछ सोचा जाए जो हम सब की जिंदगी का एक अहम् हिस्सा है। पर हम दूसरों से तुलना में उस हिस्से को खोते जा रहें हैं। वह हिस्सा है हमारी आतंरिक विशेषताएं। हम सभी अपनी अलग अलग विशेषताओं के कारण एक दूसरे से अलग है। ये विशेषताएं दो तरह की होती हैं पहली आतंरिक और दूसरी शारीरिक। शारीरिक विशेषताओं हमें पैतृक रूप में जन्म से प्राप्त होती हैं। जबकि आतंरिक विशेषताएं हमारे वह गुण हैं जो हमें दूसरों से अलग करतें हैं। जैसे किसी को कला में रूचि किसी को नृत्य में , कोई गणित में पारंगत तो कोई चित्रकारी में , किसी को तेज रफ़्तार जिंदगी पसंद तो किसी को धीरे धीरे शांति से अपना लक्ष्य हांसिल करना अच्छा लगता है। ये खासियतें हैं जो धीरे धीरे हमारे व्यक्तित्व की पहचान बन जाती हैं। कभी कभी हम इन्ही खसियतों की वजह से हम अपने काम में भी पारंगत हो जाते हैं। अर्थात काम में सिद्ध्हस्थता इन विशेषताओं को और निखार कर आने लगती है।
लेकिन इस सब से परे जो महत्वपूर्ण मुद्दा सोचने का है वह ये कि हम अपनी इन्ही खासियतों की अवहेलना करने लगते हैं जब हम उसे दूसरों के नजरिये से देखने लगते हैं। उदाहरण के तौर पर समझिये , हमें अपने अतिथियों की खातिरदारी करना अच्छा लगता है। हम उन्हें खूब आदर सत्कार दे कर विभिन्न पकवान खिला कर संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं और हमारे अतिथि इस से खुश होते भी हैं। ये हमारी एक अहम् विशेषता है और हमारी इस विशेषता की लोग क़द्र भी करतें हैं। पर हमारी ये विशेषता तब खोने लगती है जब हम इस की तुलना करने लगते हैं। जैसे कि आप ने जिसे भी उचित आदर सत्कार दिया हो उसके घर आप ने वही प्रतिरूप न पाया तो आप को अपने किये का प्रतिशत ज्यादा लगने लगेगा और इस स्थिति में आप हो सकता है कि दो -चार बार उन्हें परखें फिर आप भी वही आवभगत का स्तर रखेंगे जो आप उनके घर पर पातें हैं। ये सोच कर कि मैं ही क्यों खातिरदारी में रूचि दिखाऊं। जबकि ये तो ऐसे ही टरका देतें हैं। ऐसे में यह सोचें की हमने अपनी उच्च स्तर की आवभगत का गुण दूसरों की वजह से त्याग दिया। ये नहीं सोचा कि हो सकता है की ये हमारी स्वयं की एक खास खासियत हैं जो जरूरी नहीं कि उनके पास भी हो ।
क्योंकि हर इंसान अलग है तो अलग अलग जीवन जीने का तरीका भी अपना खास होता है। मदद एक गुण हैं जो हर किसी में नहीं होता लेकिन आप ने यदि ये गुण हैं पर आप इस लिए उसे किसी खास के लिए नहीं प्रयोग करते क्योंकि वह नहीं करते तो मैं ही क्यों करूँ। ये गलत है। यह अपना खासियत खोने की बात हैं। पर आज हम सब यही कुछ कर रहें है। अपने व्यक्तित्व की तमाम खासियतों को दूसरों के व्यवहारों और उनकी खासियतों से अपनी खासियतें मेल न खाने की वजह से गवातें जा रहें है जो हमें आधार हीन बना रहा हैं।
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