उलझन ....... !!
*******************
जिंदगी यूँ इस कदर उलझी न होती ,
गर अपनी सोच कुछ सुलझी हुए होती।
हम जीना सीख रहे ,दूसरों को देख कर ,
जब तक कारस्तानियां समझी न होती।
नजरों का फेर समझते हुए भी देर लगी ,
गर कटाक्ष भरी नज़र तिरछी न होती।
मनों के अंदर यूँ ज़हर भरा हुआ होगा,
और हर दिल पर गर्द बिछी ना होती।
विचार बदल जातें है बस एक ही क्षण में ,
घटनाएं सभी यूँ अपरिणामदर्शी नहीं होती।
कभी तो सच झूठ की पहचान हो पाती ,
पर हाय मनों की दीवार पारदर्शी नहीं होती।
जिंदगी थम सी गयी है फिर भी जिए जा रहे ,
क्योंकि खुदा के घर स्वीकार अर्ज़ी नहीं होती।
मन मार के भी जिन्दा बने रहने की बेचारगी ,
घिसट कर जीने का नाम है खुदगर्ज़ी नहीं होती।
*******************
जिंदगी यूँ इस कदर उलझी न होती ,
गर अपनी सोच कुछ सुलझी हुए होती।
हम जीना सीख रहे ,दूसरों को देख कर ,
जब तक कारस्तानियां समझी न होती।
नजरों का फेर समझते हुए भी देर लगी ,
गर कटाक्ष भरी नज़र तिरछी न होती।
मनों के अंदर यूँ ज़हर भरा हुआ होगा,
और हर दिल पर गर्द बिछी ना होती।
विचार बदल जातें है बस एक ही क्षण में ,
घटनाएं सभी यूँ अपरिणामदर्शी नहीं होती।
कभी तो सच झूठ की पहचान हो पाती ,
पर हाय मनों की दीवार पारदर्शी नहीं होती।
जिंदगी थम सी गयी है फिर भी जिए जा रहे ,
क्योंकि खुदा के घर स्वीकार अर्ज़ी नहीं होती।
मन मार के भी जिन्दा बने रहने की बेचारगी ,
घिसट कर जीने का नाम है खुदगर्ज़ी नहीं होती।
Comments
Post a Comment