औरत की आदत से इनकार क्यों ? ?
औरत की आदत से इंकार क्यों..?
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औरत क्या है ?? आखिर उसकी जरूरत क्यों हैं ?? क्या उसके बिना जीवन की कल्पना है ?? क्या उस की उपस्थिति एक पुरुष के जीवन का गतिरोध भी हो सकती है ?? क्या ईश्वर का उसे दिया नारीत्व का वरदान उसके लिए ही अभिशाप है ?? क्या समाज में उसको स्वीकार करने के लिए अभी भी खुलापन नहीं है ??
ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनको यदि पूछा जाए तो जवाब में एक स्त्री को देवी का दर्ज़ा दिया जाने लगता है। सभी उस के योगदान के कसीदें पढ़ने लगते हैं। लेकिन यह सब सिर्फ बातों और किताबों तक ही सीमित है। इस के विपरीत औरत के साथ और शादी को एक मज़ाक भी बना कर रखा गया है। हर पुरुष अमूमन यही कहता फिरता मिलता है कि अकेले है तो क्या ग़म है , जीवन में आनंद कहाँ कम हैं। आखिर क्यों एक औरत के होने के महत्व को इस तरह नाकारा जाता है ? एक औरत की जरूरत सिर्फ इस लिए है कि वह बच्चे पैदा कर सकती है ?? एक औरत की जरूरत सिर्फ इस लिए हैं कि वह घर को बेहतर संभाल सकती है ?? एक औरत की जरूरत सिर्फ इस लिए है कि वह आदमी की शारीरिक जरूरतों को पूरा कर सकती है ?? ऐसे बहुत से सवाल सामने हैं पर जवाब में फिर कोई नया मज़ाक गढ़ लिया जायेगा।
असल में देखा जाए तो "औरत एक आदत की तरह महसूस लिया जाने वाला सुख है" । ये अहसास कि जब आप घर आओ तो दरवाजा खोलने वाला कोई है। यह अहसास कि आप के घर पहुँचने पर चाय के साथ पूरे दिन की थकान बांटने वाला कोई हैं। यह अहसास की आप के घर की संभाल करने वाला कोई है। यह अहसास की आप की बेतरतीब चीज़ों को व्यवस्थ्ति करने वाला कोई है। यह अहसास कि आप के बच्चों की फ़िक्र करने वाला कोई हैं। यह अहसास कि आप के दुःख सुख सम्मान को साझा करने वाला कोई है। यह अहसास कि आप के शहर से बाहर रहने पर आप की जिमेदारियों को निभाने वाला कोई है। यह सब वह आतंरिक सुख हैं जो एक औरत के पास होने से होते हैं। जिन्हे कबूल करने में मर्द कमतर महसूस करने लगता है। पर सत्य यही है , बस यही है।
इस पहलु का दूसरे सत्य से सब रूबरू होयें। वह यह कि कोई भी वस्तु सुख या आदत अपने साथ एक प्रतिक्रिया ले कर आती है। जैसे आज तकनीक की प्रगति से मोबाइल का सुख हर हाथ में है। लेकिन इस ने लोगों से उनका समय , रिश्ते और भोलापन छीन लिया है। यदि आप अधिक मीठा खाने के शौक़ीन हैं तो यह निश्चित है कि भविष्य में मीठे से ग्रसित रोग हो जायेगा। किसी रिश्ते में आप बहुत ज्यादा ही करीब घुस जाएँ तो यकीनन कोई न कोई बात अनपेक्षित होगी जो रिश्ते में खटास ले आएगी। यह सब उदहारण हैं। लेकिन जीवन में यह होते रहते हैं। इन को उल्लेखित करने का तात्पर्य यह है कि स्त्री से जुड़े तमाम सुख उठाने के बाद वह क्या कुछ अपेक्षाएं , उम्मीदें और इच्छाएं नहीं रख सकती ?? एक जीता जागता इंसान होने के नाते और दूसरों की उम्मींदों पर खरा उतरने के नाते उसे भी अपने अस्तित्व की पहचान के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी ही चाहिए। वर्ण वह भी सिर्फ आदतों में शुमार होकर अहसास भर बन के रह जाएगी।
औरत क्या है ?? आखिर उसकी जरूरत क्यों हैं ?? क्या उसके बिना जीवन की कल्पना है ?? क्या उस की उपस्थिति एक पुरुष के जीवन का गतिरोध भी हो सकती है ?? क्या ईश्वर का उसे दिया नारीत्व का वरदान उसके लिए ही अभिशाप है ?? क्या समाज में उसको स्वीकार करने के लिए अभी भी खुलापन नहीं है ??
ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनको यदि पूछा जाए तो जवाब में एक स्त्री को देवी का दर्ज़ा दिया जाने लगता है। सभी उस के योगदान के कसीदें पढ़ने लगते हैं। लेकिन यह सब सिर्फ बातों और किताबों तक ही सीमित है। इस के विपरीत औरत के साथ और शादी को एक मज़ाक भी बना कर रखा गया है। हर पुरुष अमूमन यही कहता फिरता मिलता है कि अकेले है तो क्या ग़म है , जीवन में आनंद कहाँ कम हैं। आखिर क्यों एक औरत के होने के महत्व को इस तरह नाकारा जाता है ? एक औरत की जरूरत सिर्फ इस लिए है कि वह बच्चे पैदा कर सकती है ?? एक औरत की जरूरत सिर्फ इस लिए हैं कि वह घर को बेहतर संभाल सकती है ?? एक औरत की जरूरत सिर्फ इस लिए है कि वह आदमी की शारीरिक जरूरतों को पूरा कर सकती है ?? ऐसे बहुत से सवाल सामने हैं पर जवाब में फिर कोई नया मज़ाक गढ़ लिया जायेगा।
असल में देखा जाए तो "औरत एक आदत की तरह महसूस लिया जाने वाला सुख है" । ये अहसास कि जब आप घर आओ तो दरवाजा खोलने वाला कोई है। यह अहसास कि आप के घर पहुँचने पर चाय के साथ पूरे दिन की थकान बांटने वाला कोई हैं। यह अहसास की आप के घर की संभाल करने वाला कोई है। यह अहसास की आप की बेतरतीब चीज़ों को व्यवस्थ्ति करने वाला कोई है। यह अहसास कि आप के बच्चों की फ़िक्र करने वाला कोई हैं। यह अहसास कि आप के दुःख सुख सम्मान को साझा करने वाला कोई है। यह अहसास कि आप के शहर से बाहर रहने पर आप की जिमेदारियों को निभाने वाला कोई है। यह सब वह आतंरिक सुख हैं जो एक औरत के पास होने से होते हैं। जिन्हे कबूल करने में मर्द कमतर महसूस करने लगता है। पर सत्य यही है , बस यही है।
इस पहलु का दूसरे सत्य से सब रूबरू होयें। वह यह कि कोई भी वस्तु सुख या आदत अपने साथ एक प्रतिक्रिया ले कर आती है। जैसे आज तकनीक की प्रगति से मोबाइल का सुख हर हाथ में है। लेकिन इस ने लोगों से उनका समय , रिश्ते और भोलापन छीन लिया है। यदि आप अधिक मीठा खाने के शौक़ीन हैं तो यह निश्चित है कि भविष्य में मीठे से ग्रसित रोग हो जायेगा। किसी रिश्ते में आप बहुत ज्यादा ही करीब घुस जाएँ तो यकीनन कोई न कोई बात अनपेक्षित होगी जो रिश्ते में खटास ले आएगी। यह सब उदहारण हैं। लेकिन जीवन में यह होते रहते हैं। इन को उल्लेखित करने का तात्पर्य यह है कि स्त्री से जुड़े तमाम सुख उठाने के बाद वह क्या कुछ अपेक्षाएं , उम्मीदें और इच्छाएं नहीं रख सकती ?? एक जीता जागता इंसान होने के नाते और दूसरों की उम्मींदों पर खरा उतरने के नाते उसे भी अपने अस्तित्व की पहचान के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी ही चाहिए। वर्ण वह भी सिर्फ आदतों में शुमार होकर अहसास भर बन के रह जाएगी।
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