सच्ची खुशी ...😊😊

सच्ची ख़ुशी............ !!
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जीवन शायद ऐसा ही है।  क्योंकि आज हम अपनी जिंदगी के तमाम जरूरतों के साथ जूझते हुए , अपने खर्चों का संतुलन  बैठाते हुए अपने अर्जित सीमित धन में जीने की कोशिश करते हैं। हर मध्यमवर्गीय परिवार में  आवश्यकताओं का एक सिलसिला इस उम्मीद पर पूरा होता है कि समयानुसार वह इच्छा या जरूरत अपना बजट देखते हुए पूरी की जाएगी।  बहुत सी इच्छाएं इस लिए मारी जाती हैं कि उनके पूरे न होने से भी जिंदगी फिलहाल अपनी गति से चलती रहती है।  ये मन में जरूर रहता है कि यदि पूरी हो जाती तो शायद और मज़ा आता। पर उस मज़े के लिए किसी और अति आवश्यकता की बलि चढ़ा पाना एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए मुश्किल सौदा होता है। यही जिंदगी है। क्योंकि हम कोई टाटा ,बिड़ला , अम्बानी तो हैं नहीं।  
                                             फिर भी क्यों ऐसा महसूस होता है कि उनसे हम ज्यादा खुश रहते होंगे। इसका एक मजबूत कारण है। ख़ुशी और सुख के पीछे वह तमाम सुविधएं नहीं है जो बाजार से घर में लाई जाती हैं। अम्बानी के महलनुमा घर एंटीलिया में क्या सभी सदस्य रोज एक साथ बैठ कर नाश्ता या खाना खाते  होंगे ? व्यस्त सी जिंदगी में सब एक दूसरे को समय देते होंगे ? ऐसे बहुत से सवाल मन में आतें है जिनके बारे में हम नहीं जानते।  पर सोचते हैं कि हम दो कमरों के घरों में ज्यादा करीब हैं। क्योंकि एकांतता दूरी बढाती है।  जबकि छोटे घरों में एक दूसरे की आवाजें और हरकतें प्यार बढ़ने के कार्य करती हैं। मध्यमवर्गीय घरों में छोटी ही सही खुशियां पूरी होने का उत्साह बहुत ज्यादा होता है। मिलने पर दो चार दिन उस की खुमारी भी रहती है।  दोस्तों के साथ उसे बाँटने में खुशी मिलती हैं।  यही जिंदगी है कम में सही तो क्या पर जो सच्ची ख़ुशी है वह यही है। 

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