रिश्तों की माँग का सत्य ......!
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जीवन में हमारे आस पास बिखरे तमाम रिश्तों का महत्व हमें तब पता चलता है जब हम उनके करीब जाते है या हमें उन की आवश्यकता पड़ती है। हर रिश्ता एक खास तरह की माँग के साथ जुड़ा रहता है। जैसे पति पत्नी के बीच की माँग , शारिरिक सुख और घर -बाहर का सामंजस्य। अभिभावक बच्चों के बीच की माँग , आवश्यकताओं की पूर्ति और उचित सम्मान और अपेक्षाओं की पालना। ये कुछ उदाहरण है। इसी तरह हर रिश्ते की माँग अलग होती है।  
           क्या कभी हम रिश्ते को उसकी माँग और हमारी उस रिश्ते की आवश्यकता के अनुसार तौल कर निभाते हैं ? यकीनन उत्तर होगा जी हाँ , निभाते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि पति पत्नी माता पिता बच्चों व अन्य रिश्तेदारों से कैसे निभाना है। यह सही है। कोई किसी को , किसी के साथ कैसे निभाना है यह नहीं सीखा सकता । क्योंकि यह इंसान के स्वयं के व्यवहार पर निर्भर करता है। इस लिए यह आवश्यक है कि हम अपने व्यवहार का आंकलन करे। फिर संभवतः सामने वाले रिश्ते की मांग और  निभाए जाने की मात्रा बदल जाये। 
                         हर रिश्ते में खुद को खुदा की तरह प्रोजेक्ट नहीं करना चाहिए।  बड़बोलापन और खुद को बढ़ा चढ़ा कर दिखाने की फ़ितरत रिश्तों को खोखला करने लगती है। तब दूसरों की अपेक्षाएं भी बढ़ जाती है। जिसे हर बार पूरी करना संभव नहीं होता। इस लिए जो वास्तविकता है वही सामने लानी चाहिए। इससे रिश्ता पारदर्शी रहेगा और ग़लतफ़हमी नहीं पैदा होगी। उदाहरण के तौर पर यदि हम ही अपने बच्चों को बड़ी बड़ी चीज़ों के बारे में बताएंगे। उन्हें दिखएँगे तो यकीनन वह उसे पाने के लिए दबाव बनाएंगे। उन्हें घर के हिसाब किताब में शामिल करके वास्तविकता से परिचित कराएं। जिससे उन्हें अपनी औकात पता रहेगी। 
                                                      रिश्तों की माँग और सीमारेखा को हमारा ही व्यवहार काबू में रख सकता है। इस लिए व्यवहार संयत रखें । रिश्ता भी बेहतर चलेगा।

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