किसान आंदोलन में एक विशेष वर्ग की अनदेखी

तेरे ज़मीर की आवाज़ क्या जिंदा है ? 

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किसान आंदोलन को लेकर बहुत सी पोस्ट आ रही हैं। सभी अपने अपने विचार रख रहें हैं जरूरी भी है क्योंकि सच किसी भी तरीके से सामने आना जरूरी है।

    लेकिन क्या आप सभी ने एक बात महसूस की ....कि एक community है जो किसान आंदोलन के लिए एक शब्द की भी सांत्वना देने या उस पर अपने विचार रखने की ज़रूरत नहीं महसूस कर रही जबकि उसमें से अधिकतर पंजाबी हैं और सबसे बड़ी बात कि उनका रोज़गार ही किसानों की दया से चल रहा वो समाज है हिन्दुस्तांन के सभी "नामी गिरामी औऱ आम शेफ " और cooking sector से जुड़े लोग।

    शर्म आती है ये देख कर कि जिस अन्न के दम पर ये अपने नाम की रोटी पका रहे उसी के लिए आवाज़ उठाना भूल गए। जबकि ये भी एक दूसरा सच है कि ज़्यादातर पंजाबी ही हैं इस व्यवसाय में ...जो पंजाब के ही रहने वाले भी हैं। फ़िर भी उन्हें अपने पंजाबी किसान समुदाय की तकलीफें क्यों नहीं दिखाई दे रही ? ? 

क्या सरकारी व्यवस्था की जकड़न है ये या फ़िर सामाजिक मुद्दों से सरोकार रखने से परहेज़.....या फ़िर ये डर कि आवाज़ उठाने से वो सरकारी निगाहों में आ जाएंगे !!  आख़िर इन्हें फ़र्क़ भी क्या पड़ेगा जो ये अपने शो में  25 ₹ की 100 ग्राम लहसन के बजाए 100 ₹ की इस्तेमाल करेंगे ... ? ? क्योंकि दिखा कर कमाने के लिए खाना पकाने और पेट भरने के लिए खाना पकाने में फ़र्क़ होता है। आज अगर सब मिल कर जागरूक हो जाएं तो यकीनन सरकार घुटने पर आएगी । मजबूरियां इस हद तक नहीं बढ़ा लेनी चाहिए कि अपनी जरूरतों के आगे अपनी अंतरात्मा को ही मारना पड़ जाए। 

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