जनता की भूमिका ....!!
उद्योगपति और सरकार की स्थिति में जनता की भूमिका....!!
••••••••••••••••••••••••••••••
कोई भी देश बहुत सारे तत्वों से मिल कर सम्पूर्ण बनता है। सभी तत्व अपनी जगह पर महत्वपूर्ण होते हुए ये सुनिश्चित करते है कि उनके विकास से देश में सुविधाओं की निरंतर बढ़ोत्तरी हो। इस विकास में तत्कालीन सरकार की भी प्रमुख भूमिका होती है।जो अपने नीतिगत फैसलों से देश और उसकी जनता के लिए बेहतर फैसले लेती है।
पर जिस मुद्दे पर आज विचार विमर्श करना है वह है उद्योग जगत के लिए सरकार का अत्यधिक समर्थन और उद्योगपतियों का किसी सरकार विशेष की ओर रुझान। ये किस तरह सही नहीं इस के लिए कुछ पॉइंट्स को समझना जरूरी है। वह ये कि असामान्य सरकारी समर्थन से जो कॉरपोरेट घराने अकूत सम्पत्ति के मालिक बनते हैं और जनता और उनके बीच के आर्थिक स्तर को और गहरी खाई बनाते हैं। वह और सरकार ये भूल जातें हैं कि उद्योगपतियों की स्थिति सरकार की तरफ से सिर्फ़ सहायता के रूप में बनाई जा सकती है। लेकिन उसे सुदृढ करने का काम जनता करती है। यदि सरकार और उद्योगपतियों की मिलीभगत से जनता त्रस्त हो जाएगी तो आखिर ये उद्योगपति अपने उत्पाद जनता को बेचेंगे कैसे .......? ?
इसकी बानगी आज हिन्दुतान की राजनीति में किसी कुछ ख़ास उद्योगपतियों के उत्पादों के बहिष्कार के रूप में देखी जा सकती है। किसी भी उद्योग के विकास का दारोमदार जनता की खरीदी की शक्ति पर निर्भर करता है। और जनता को नाराज़ करके आप सरकार विशेष की कृपा के बावजूद भी अपना साम्राज्य कायम नहीं रख सकते। इस लिए उद्योगपति को सरकार का नहीं जन समर्थक बन कर अपना और अपने उत्पाद का विश्वास लोगों के बीच बनाना होगा। सरकार सुविधाएं तो दे सकती है पर उनके लिए बिक्री की ज़मीन नहीं बना सकती। ये समझना आवश्यक है। और इसे पहचान कर , समझ कर ही कोई उद्योग या धंधा जन समर्थन से सुदृढ हो पायेगा। अन्यथा सरकारें तो आनी जानी है। कल कोई दूसरी होगी जो शायद कोई और नीति ले आये तब क्या होगा ? ? ?
★★★★★★★★★★★★★★★★★★
Comments
Post a Comment