व्यवहारिकता से प्रभावित अमेरिकी चुनाव
व्यवहारिकता से प्रभावित अमेरिकी चुनाव.......🇺🇸
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अमेरिका में हुए तत्कालीन चुनावों ने एक बात बहुत स्पष्ट रूप से सबके सामने रखी कि रसूख और दिखावे से कुछ समय तक कुछ लोगों को भ्रमित तो किया जा सकता है पर सदैव के लिए उन्हें प्रभावित करके अपना नहीं बनाया जा सकता। कोई भी अपनी छवि को बेहतर दिखाने की कोशिश ज़रूर कर सकता है। पर वो अंततः बेहतर साबित हो ये उसके स्वयं के व्यवहार पर निर्भर करता है।
पिछली रिपब्लिकन सरकार में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी कार्यशैली और बयानों के कारण इस कदर विवादों में घिरे, कि कार्यकाल के आखिरी दिनों में उन्हें देश के लिए बोझ की तरह देखा जाने लगा। राष्ट्रपति पद का अंतिम दिन बिता कर जब वे व्हाइट हाउस से विदा हुए, तो बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले, जैसा माहौल बन चुका था। लोग उसे सोशल मीडिया पर शेयर करके उनकी विदाई का जश्न मना रहे थे और जिन देशों में ट्रंप की तरह अड़ियल,संकीर्ण, अवसरवादी मानसिकता वाले विवादास्पद राष्ट्रप्रमुख हैं, उनकी ऐसी ही विदाई किये जाने के अरमान खुलकर सोशल मीडिया पर प्रकट होने लगे।
अपने चार साल के कार्यकाल में ट्रंप ने अमेरिका को महान बनाने का नारा देते हुए कई ऐसे फ़ैसले लिए, जिससे अमेरिका की छवि वैश्विक स्तर पर ख़राब ही हुई। उसके बावजूद उन्हें यकीन था कि उन्हें दोबारा सत्ता मिलेगी। यकीनन उन्हें अच्छे-खासे वोट भी मिले और बाइडेन को उन्होंने कड़ी टक्कर दी, लेकिन जीत अंततः बाइडेन की ही हुई। ट्रंप इस हार को शुरु से बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे और चुनावों को गलत साबित करने के सारे हथकंडे उन्होंने अपनाए, जो अंतत: विफल साबित हुए। लेकिन इसके बाद छह जनवरी को उनके उकसाने पर उनके समर्थकों ने कैपिटल हिल पर जिस तरह का उत्पात मचाया, वह तो अमेरिकी लोकतांत्रिक इतिहास में अनूठी परन्तु शर्मनाक घटना थी।
राजनीति में पद और प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए जो भी कुछ किया जाता है।उसका अप्रत्यक्ष प्रभाव व्यक्ति की सामाजिक व्यवहारिकता पर पड़ता है। उसकी छवि सिर्फ़ काम दिखाने भर से नहीं बनती। उसके लिए जनता में व्यवहार का धनी इस रूप में होना जरूरी होता है कि वही सोचा जाए जो जनता की सोच है और वह चाहती है । भले ही इससे स्वयं की रुचि या प्राथमिकताओं को दरकिनार करना पड़े। लेकिन इसका ये फायदा मिलेगा की जो जनता चुन कर लाई वह आगे भी चुनेगी ये आश्वस्तता मिल जाती है। ट्रम्प यही नहीं कर पाए। लोगों के बीच खुद का प्रभुत्व दिखाते समय भी वह अपनी कुर्सी के प्रभुत्व का कद और बढ़ा-चढ़ा के देते थे । इसलिए उनकी व्यक्तिगत छवि धूमिल होती चली गयी। यही है सामाजिक व्यवहारिकता........!!
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