मनुस्मृति अध्याय 2 भाग 3

 मनुस्मृति अध्याय 2 भाग 3...📖   ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

मनुस्मृति के दूसरे अध्याय के भाग 3 में मानव के जन्म की सम्पूर्ण कथा है। मनुष्य के शरीर की रचना पुरुष के वीर्य और स्त्री के रज के मिश्रण से होती है। शरीर की पुष्टि अथवा उसका विकास स्त्री के गर्भाशय में होता है। गर्भाधान, जातकर्म, चूड़ाकर्म, मौञ्जीबन्धन या उपनयन जैसे वैदिक संस्कारों के सम्पादन से द्विजातियों (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्णों के लोगों) के वीर्य, रज और गर्भ सम्बन्धी सभी दोषों की निवृत्ति एवं शुद्धि हो जाती है। व्यक्ति इन (वीर्य, रज तथा गर्भ सम्बन्धी) दोषों से मुक्त होकर सर्वथा निर्विकार, अर्थात् शुद्ध-बुद्ध हो जाता है। शरीर को शुद्ध-पवित्र बनाने का एक उपाय वैदिक संस्कार हैं और दूसरा उपाय स्वाध्याय व व्रत-यज्ञादि हैं।

        जातक (बच्चे) के उत्पन्न होने पर नाड़ा (बालक की नाभि की नली उसकी माता के गर्भाशय की नली से जुड़ी होती है। इसी के द्वारा गर्भस्थ शिशु मां से आहार प्राप्त करता है।) काटा जाता है। नाड़ा काटने से पूर्व ‘जातकर्म’ संस्कार करना चाहिए। जातकर्म संस्कार के उपरान्त ‘अन्नप्राशन’ संस्कार करना चाहिए। इसके अन्तर्गत वेदमन्त्रों का उच्चारण करते हुए स्वर्ण-शलाका (सोने की सलाई अथवा चम्मच) से बालक को घी और मधु चटाना चाहिए।  जन्म के दसवें अथवा बारहवें दिन अथवा किसी शुभतिथि में शुभ समय व घड़ी में बालक का नामकरण संस्कार करना चाहिए। यदि दसवें अथवा बारहवें दिन शुभ नक्षत्र, शुभ तिथि और शुभ मुहूर्त न आता हो, तो इन दिनों के लिए आग्रह नहीं करना चाहिए। तिथि, नक्षत्र और मुहूर्त की शुद्धि का अधिक महत्त्व है।  नामकरण संस्कार करते समय ध्यान रखना चाहिए कि ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक अर्थात सुखराम, सच्चिदानन्द, ब्रह्मस्वरूप तथा ज्ञानप्रकाश आदि , क्षत्रिय का नाम बलसूचक अर्थात प्रताप, ओजस्वी, दुर्दम, विक्रान्त तथा प्रचण्ड आदि, वैश्य का नाम 
वैभव, वसु, धनपाल, लक्ष्मीचन्द तथा श्रीपति आदि तथा शूद्र का नाम सेवावृत्ति सूचक देवदास, रामदास, रामसेवक, रामकिंकर तथा रविदास आदि रखा जाना चाहिए।
चारों वर्णों के लोगों के नामों के साथ जोड़े जाने वाले उपनामों की चर्चा करते हुए मनु महाराज कहते हैं.......विप्रो ! ब्राह्मण के नाम के साथ शर्मा (ब्रह्मस्वरूप शर्मा, ज्ञानप्रकाश शर्मा आदि), क्षत्रिय के नाम के साथ वर्मा (प्रताप वर्मा, प्रभानाथ वर्मा आदि) वैश्य के नाम के साथ गुप्त (श्रीपाल गुप्त, कुबेरदत्त गुप्त आदि) तथा शूद्र के नाम के साथ दास (रामसेवक दास, रामराय दास आदि) शब्द जोड़ने चाहिए। ये उपनाम—शर्मा, वर्मा, गुप्त और दासआदि) वैश्य के नाम के साथ गुप्त (श्रीपाल गुप्त, कुबेरदत्त गुप्त आदि) तथा शूद्र के नाम के साथ दास (रामसेवक दास, रामराय दास आदि) शब्द जोड़ने चाहिए। ये उपनाम—शर्मा, वर्मा, गुप्त और दास—क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र के सूचक हैं।
             कन्याओं का नामकरण इस प्रकार से करना चाहिए कि सुख-सुविधा से उसका उच्चारण किया जा सके। (1) उसका स्वरूप और अर्थ मृदु-मधुर हो, (2) उसका नाम चामुण्डा, काली, कपाली, खङ्गधारिणी तथा असुरनिकन्दिनी जैसा नहीं होना चाहिए। (3) उस नाम का अर्थ सुस्पष्ट हो, अर्थात् दूसरों को समझने में कठिनता उपस्थित नहीं होनी चाहिए (सौदामिनी, प्रकामा तथा विरोचिनी आदि क्लिष्ट अर्थ वाले नाम अपेक्षित नहीं), (4) नाम मनभावन और मंगल-सूचक हो, (5) उसका अन्तिम स्वर दीर्घ (सीता, रमा, मालती तथा वेणी आदि) हो, (6) वह आशीर्वादात्मक ध्वनि देने वाला (सुखदा, प्रकाशवती, लक्ष्मी तथा देवी आदि) हो।
                               जन्म के चौथे महीने जातक को घर से बाहर निकालने का और छठे मास में अन्नप्राशन (तरल पदार्थों—घी, मधु तथा दूध आदि के अतिरिक्त दाल, चावल तथा गेहूं आदि—का सेवन) संस्कार करना चाहिए। यहां यह उल्लेखनीय है कि यदि कुल-परम्परा इन मांगलिक संस्कारों को आगे-पीछे करने की हो, तो परम्परा का ही पालन करना चाहिए। चतुर्थ और षष्ठ मास का विधान तो सुविधा और उपयुक्तता की दृष्टि से ही किया गया है।
                   मनु जी कहते है कि ऋषियो ! मैंने संक्षेप में आप लोगों के समक्ष सृष्टि की उत्पत्ति का विवरण प्रस्तुत किया है। लोगों को अपने शरीर को लौकिक और आध्यात्मिक दृष्टि से पवित्र बनाना चाहिए। जिससे एक स्वस्थ समाज और संसकार वाली सोच का निर्माण हो सके। 

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अध्याय 2 समाप्त .........🙏 आभार











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