सफ़ल पेरेंटिंग के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

सफ़ल पेरेंटिंग के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु....!!                         •••••••••••••••••••••••••••••           इस दुनिया की तमाम जिम्मेदारियों में सबसे कठिन अगर कुछ है तो वह है सफल अभिभावक बनना । मां बाप बनना एक मुश्किल task है। विवाहोपरांत हर जोड़ा बच्चे के जन्म से मां पिता बनते है। नया नया अनुभव उनके लिए बहुत सी चुनौती ले कर आता है । हर क्षण एक नई स्थिति का सामना करके वह बच्चे को तो सिखाते हैं पर खुद भी बहुत कुछ सीखते हैं।                                                           पर आज की स्थिति और जब हम अपने माँ पिता के द्वारा पाले गए तब की स्थिति में बहुत अंतर है। हमारे समय में मां पिता की कही बातें आदेश की तरह हुआ करती थी जिन्हें मानना अनिवार्य होता था। चाहे मर्ज़ी हो या ना हो। पर आज हम अपने बच्चों से निवेदन करते पाए जाते हैं। क्योंकि वो खुद को हमसे ज्यादा technologically advance समझते हैं जिससे उन्हें ये लगता है कि उन्हें उनके जीने भर की सारी समझदारी आ गयी है।                                                  अब उन्हें लड़ कर , बहस करके ये नहीं समझाया जा सकता कि अनुभव का ज्ञान तकनीक से बड़ा होता है। तकनीक कभी कभार फेल हो सकती है। पर अनुभव किसी घटना के परिणाम देखे समझे और भुगते जाने पर आधारित होता है। इस लिए उसकी frequency ज्यादा होती है।  लेकिन बच्चो को पालने से एक सीख मिली जिसे समझना और अपनाने से अभिभावक और बच्चों के बीच रिश्ते अच्छे हो सकते हैं।                                                               वो महत्वपूर्ण चीज़ है controlling का तरीका।  इसे दो भागों में बांट कर इसके फायदे और नुकसान का अंदाज़ा लगाया जाए।

1 : Strict Controlling -  इसके जरिये हम अपने बच्चे को डांट के , डपट के , धमका के और सख्ती करके उसे अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं। उसकी हर गतिविधि को अपनी निगरानी में ही करवाना चाहते है ताकि वो हमारी मर्ज़ी की हो। उसके हर action पर हमारा control हो । कुछ ऐसा ही पुराने जमाने के माता पिता किया करते थे। उनका डर हुआ करता था। क्योंकि बच्चों को ये अहसास होता था कि जीना तो उन्हीं के साथ है।      

2 : Soft or politie Controlling - इस व्यवस्था में हम बच्चे से connect करके चलने की कोशिश करते हैं । क्योंकि आजकल बच्चों की अपनी दुनिया है उनके अपने दोस्त , अपनी सुविधाएं हैं इसलिए वो चाहते हैं कि उनकी दुनिया में दखलंदाजी ना हो। ऐसे में अभिभावक होने के नाते सबसे पहले तो हमें उनकी दुनिया में अपनी थोड़ी सी जगह बना कर रखनी होगी। ताकि वह अपनी बातें , अपने सुखदुःख हमसे share कर सकें। और यही sharing transparency  बनती है। हम अभिभावक के नाते बच्चों को समझ पाते हैं। इसके लिए हमारे व्यवहार में perfect controlling के लिए request , politeness , faith और understanding की qualities शामिल करनी होगी। ये थोड़ा मुश्किल लग सकता है पर अपने व्यवहार को समयानुसार नहीं सम्भाला गया तो बच्चे दूर होते चले जाते हैं। और ये उससे भी बुरा है।                                     इसलिए जरूरी है कि अभिभावक और बच्चे के बीच की sharing निरन्तर चलती रहे और अनुभवी होने के नाते वह उनकी गतिविधियों को ध्यान में रखकर उन्हें politie suggestion देते रहें । और बच्चे उसे otherwise भी ना लें।                          

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