अधेड़ उम्र का लिहाज़

अधेड़ उम्र का लिहाज़....!!   ~~~~~~~~~~~~~~~~~~

 अधेड़ उम्र अर्थात पचास से ऊपर की उम्र, जिसमें व्यक्ति से धैर्य , सहनशीलता और सौम्यता की उम्मीद की जाती है। क्योंकि उस उम्र तक जवानी का अक्खड़पन और बुढ़ापे की अधूरी इच्छाएं वाली स्थिति नहीं रहती। परिवार , समाज और काम में व्यस्त इंसान पूरी तरह से सामाजिक जिंदगी जीता है। पर यदि इस उम्र में समाज के नियमों के परे हट कर कुछ करें तो नाम और काम दोनों ही खराब होता है ।                                                                     अभी हाल ही में दिल्ली के ही किसी क्षेत्र में एक 65 वर्षीय व्यक्ति ने 11 वर्षीय एक बच्ची का इस बर्बरता से बलात्कार किया कि उस बच्ची के अंदरूनी अंग क्षत विक्षत हो गए। अब वह जीवनभर उस अधूरी सी जान को लेकर जीने के लिए बाध्य हो गई। थू है ऐसे पुरुषत्व पर और ऐसी इंसानियत पर जो धोखे से किसी को इस्तेमाल करने के लिए प्रयोग की जाती है। 65 वर्ष का वह व्यक्ति है तो क्या उसके बीवी बच्चे नहीं होंगे। परिवार वाला तो होगा ही। फिर उस छोटी सी बच्ची में उसे मासूमियत क्यों नहीं नज़र आई।                                                        क्या ये नहीं समझ आया कि अभी उस बच्ची का शरीर भी ये पीड़ा झेलने के लिए तैयार और मजबूत नहीं हैं । त तो बिखर जाएगी या मर जाएगी। क्षणिक आवेश को शान्त करने के लिए एक जिंदगी को खत्म करने की कगार पर ले आना वहशीपन ही तो है। तो क्या गलत हो जो ऐसे इंसान को पशुओं की श्रेणी में रख दिया जाए। पता नहीं क्यों सरकारें भी इस अपराध के प्रति कठोर नहीं हो रही कि कुछ ऐसी सजा दी जाए कि अन्य सभी डरे। लेकिन जब उसके ही तमाम मंत्री सन्त्री भी इस अपराध की लुटिया से नहा चुके है तो वह न्याय की गंगा बहाए भी तो कैसे.....लूटने दो बेटियों को , कोई अपनी थोड़ी ही है। दूसरे किसी की है। और फिर 135 करोड़ की जनसंख्या में 2 , 4 या 10 हज़ार बेटियाँ लुट कर मर गयी या अर्धविक्षिप्त हो गई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। अपनी कुर्सी और सत्ता और अपना पुरुषत्व बना रहना चाहिए.....!!                            

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