निर्दयता की पराकाष्ठा
निर्दयता की पराकाष्ठा....!! ~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हद ही है कि इंसानियत इस कदर बेमानी हो गई कि अब अपने खून की भी कीमत पानी हो गई। ये पँक्तियाँ लिखते हुए एक औरत होने के नाते खुद पर शर्म महसूस हो रही। इंदौर के ही एक अस्पताल के पास की घटना है। एक युवक पास से गुजर रहा तो झाड़ियों में किसी बच्चे की रोने की आवाज़ सुनाई दी। किसी तरह झाड़ियाँ हटा कर देखा तो एक नवजात मासूम बच्ची पड़ी हुई थी और उसके पूरे शरीर पर चींटियाँ चल रही थी जिनके काटने की पीड़ा में वो सुबक रही थी। युवक से देखा ना गया उसे उठाया तो उसका पूरा शरीर लाल रंग के चक्कत्तों से भरा हुआ था। ख़ुद अंदाज़ा लगाया जाए कि नवजात का शरीर कितना कोमल होता है ऐसे में सैकड़ों चींटियों के काटने का दंश ...!! सोच कर ही रूह सहर जाती है। वह बेचारी तो पीड़ा बोल भी नहीं सकती थी। रात का समय था युवक उस पर से तुरंत चींटियों को हटा कर अपने घर ले गया और मुलायम से कपड़े में उसे लपेट कर रखा। युवक के परिवार ने बच्ची की जितनी सेवा कर सकते थे की ताकि वह जीने लायक स्थिति में वापस आ सके। अब इस घटना को जानने के बाद प्रश्न ये उठता है कि क्या वह स्त्री मां कहलाने योग्य है जिसने नौ महीने इसे कोख में रखकर जना और यूँ मरने के लिए छोड़ दिया। जिस दिन से बच्चे का अंश पेट में आता है उसी दिन से उसके अहसास से मां के अहसास जुड़ जाते है। चलिए एक पल को ये भी मान लिया जाए कि उस माँ की स्थितियां अनुकूल नहीं रही होगीं की वह उसे रख सके। तो क्या ये स्थितियां 9 माह में ही बनी होंगी। भ्रूण आते ही क्या उसे नहीं समझ आया होगा की इस बच्चे के जन्म लेने के लिए हालात ठीक नहीं। हालांकि भ्रूण में भी जान होती है। पर उसी समय उसे खत्म करवा देना शायद ज़्यादा बेहतर है बजाए कि जन्म लिए हुए मासूम को फेंक जाना। अगर औरत इस तरह करती है तो वह घृणा के योग्य है क्योंकि औरत को ममता और प्रेम की मिसाल कहा जाता है। हृदय में उमड़ते भावों और दया की वजह से औरत मां के किरदार को बखूबी निभा पाती है।
★◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆★
Comments
Post a Comment