मोबाइल के जोश में जिंदगी का होश नहीं !
मोबाइल के जोश में ज़िन्दगी का होश नहीं ••••••••••••••••••••••••••••••
मोबाईल किस कदर ज़िन्दगी को खा रहा इसकी बानगी तो रोज देखते ही हैं। पर जब कोई ऐसी घटना पढ़ने या जानने को मिले तो जी खराब ही जाता है।
छठी कक्षा के दो विद्यार्थी रेलवे की पटरी पर बैठ कर मोबाईल चला कर गेम खेल रहे थे। ट्रेन के ड्राइवर ने ख़ूब हॉर्न बजाया। उन्हें चेताने की कोशिश की। ब्रेक भी लगाया। पर वो मोबाईल में इतने मशगूल थे की उन्हें कुछ सुनाई या दिखाई ना पड़ा और रेल से कट कर मर गए। ये सच्ची घटना है जो सबक के तौर पर स्वीकार करनी चाहिए। पर नहीं...क्योंकि अब जिंदगी की कीमत मोबाईल पर गुजारे जाने वाले समय से कम है।
हर हाथ इंटरनेट से बच्चे उम्र से पहले ही बड़े हो रहे। नतीजा बलात्कार ,छेड़खानी, नशे की लत और गंदी सोच...मोबाईल हाथ में आने के बाद ना तो समय का, ना ही स्थान का, ना ही परिस्थिति का, ना ही देखे जाने वाले कंटेंट का कुछ ध्यान रहता है। बस देखे जा रहे।
क्या गुजरेगी उस परिवार पर जिसने छोटे बच्चों को खो दिया। और भी बहुत से ऐसे परिवार होंगे जो मोबाईल लकी लत के चलते स्थितियों से जूझ रहे होंगे। पर नई पीढ़ी इस संदर्भ में बड़ों की सुनती कहाँ है ...???
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