भावनाएं आहत होने वाला समाज
भावनाएं आहत होने वाला समाज.....!! •••••••••••••••••••••••••••
भावनाएं आहत होने वाली राजनीति और उससे जुड़े लोगों के चलन ने समाज को इतना विषाक्त बना दिया है कि अब सहनशीलता बिल्कुल खत्म हो गई। सामान्य सी बात बड़ा मुद्दा बन जाती है और जानमाल पर बन आती है। आख़िर क्यों ये भावनाएं आहत होने वाली प्रक्रिया अब आदत में शुमार हो रही...और वो कौन सी गहरी पैठी भावनाएं है जो छोटी मोटी स्थितियों में आहत हो जाती हैं...
क्यों नहीं हम अपनी भावनाओं को इतना लचीला बना कर रखते हैं जो परिस्थितियों के अनुसार ढलती हों और उनमें खुद को थोड़ा बहुत बदलने का माद्दा हो। सहनशीलता ही इसका एकमात्र इलाज है। जिससे भावनाओं को आहत होने पर उग्र होने से रोका जा सकता है। भावनाएं जिंदगी से बड़ी नहीं और जिंदगी कभी भी भावनाओं की मोहताज नहीं...वो परिस्थितियों के अनुसार ढलती है और चलती है। ऊंच नीच स्थिति में थोड़ा बहुत डावाँडोल होना जायज़ है पर वह कभी भी इतनी ज्यादा आहत ना होए की उससे दूसरे को नुकसान होए।
ये सच है कि हम कलयुग के चरम में जी रहे जहाँ अपनी भावनाओं की तो कदर है पर किसी दूसरे की नहीं...सिर्फ़ मैं वाली जिंदगी ने समाज से अपनापन और आत्मीयता को खत्म सा कर दिया है। जरूरी है कि भावनाएं उस हद तक ही महत्वपूर्ण बना कर रखी जाए कि उनके रहते आत्मीय सम्बंध बने रहे।
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
Comments
Post a Comment