आस्था और नास्तिकता के बीच का फ़र्क़

 आस्था और नास्तिकता के बीच का फ़र्क़......!!                       •••••••••••••••••••••••••••

राजेश खन्ना अभिनीत एक फ़िल्म आई थी आनंद । बहुतों ने देखी होगी।  उसमें अमिताभ जो कि कैंसर का डॉक्टर है जिसने अस्पताल में आनंद के दाखिले के समय ही ये घोषणा कर दी थी कि ये बंदा 6 माह से ज्यादा नहीं जियेगा। अंत समय जब आनंद मर रहा होता है तब वो किसी होमियोपैथी डॉक्टर की दवा लेने भागता है कि शायद इस दवा से कोई चमत्कार हो जाये और आनंद बच जाए।  

ये चमत्कार की उम्मीद ही आस्था है कि कहीं कोई ऐसी शक्ति है जो स्थितियों को बदल देने की ताकत रखती है। बस विश्वास सुदृढ़ होना चाहिए।  

अकबर बीरबल की अनेकों कहानियों में भी एक कहानी प्रचलित है जिसमें एक गरीब को पूरी रात ठंडे पानी में खड़े रहने पर सुबह सौ स्वर्ण मुद्राएं इनाम में दी जाएगी। वह व्यक्ति खड़ा रहा और जब सुबह  पुरुस्कार हेतु महल पहुंचा तब उससे पूछा गया तुझे ठंड नहीं लगी। उस गरीब ने कहा कि उसने महल में जलते दीपक को देखते हुए पुरुस्कार की चाह में रात गुजार दी। तब राजा ने कहा कि तू उस दीपक से गर्मी ले रहा था तो ठंड कैसी ? ? और उसे पुरुस्कार नहीं दिया। 

अब इस कहानी में भी आस्था और विश्वास की बड़ी भूमिका है। वह दीपक उस गरीब  को गर्मी का अहसास और अगली सुबह की आस दिखा रहा था।  

ये आस्तिकता ही है जो नास्तिकता के तर्कों से ऊपर है। तार्किक और नास्तिक होना एक तरह से लक्ज़री ही है। जिसको सब कुछ हाँसिल है वो तर्क दे सकता है ।पर जो बहुत कुछ से महरूम हैं वो आस्था के सहारे जीने और खुश होने की कोशिश करते हैं। भयानक स्थितियों में जब असहाय महसूस होए तब ये आस्तिकता ही बल देती है। क्योंकि नास्तिक सिर्फ़ स्थितियों को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर सकता।  ये आस्था सिर्फ़ ईश्वर के ही प्रति नहीं बल्कि चीजों के प्रति भी होती है। जैसे मरणासन्न व्यक्ति के लिए परिवारजनों का बाबाओं की जड़ी बूटी व भभूत पर विश्वास, किसी विशेष मंदिर का चमत्कार, टोटके और रिचुअल्स करने पर विश्वास आदि आदि.....जबकि नास्तिक के पास ऐसा कोई हथियार नहीं होता जिससे वह अपनी निराशा के बंधनों को काट सके।  इसलिए अस्तिकता उम्मीद की वो डोर है जो जीवन को विपरीत परिस्थितियों में सहारा देती है। 

फिल्मस्टार , राजनेता , उद्दमी सभी इस अस्तिकता के अनुरूप जीवनशैली ढालते हैं।क्योंकि जहां सिर्फ बेहतरी की उम्मीद हो वहां आस्था प्रबल रखनी होती है। आम आदमी भी अपनी अस्तिकता के बल पर ही स्थितियों का सामना कर पाता है। 

एक और उदाहरण प्रस्तुत है एक फ़िल्म में राजपाल यादव एक इंटरव्यू दे रहा होता है तो interviewer उससे पूछता है कि अगर आपका वक्त खराब चल रहा हो तो...तो राजपाल उत्तर देता है। मेरा वक्त कभी खराब नहीं हुआ। क्योंकि मेरे हाथ पैर शरीर के सब अंग सही सलामत है। मैं एक छत के नीचे रहकर दो टाइम की स्वस्थ रोटी खा रहा। अस्पताल में जाकर देखिए वक्त खराब होना किसे कहते हैं....!! 

इससे अच्छा और सकारात्मक उत्तर और क्या हो सकता है अस्तिकता के लिए ....

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