Toxic work culture
Toxic work culture..... •••••••••••••••••••••••••••• जीवन जीने के लिए काम करना मजबूरी है। सभी बच्चे एक निश्चित उम्र तक कि पढ़ाई के बाद काम पर लगने की मेहनत करते हैं।परीक्षाएं देते है और उत्तीर्ण होने पर अच्छी से अच्छी जगह काम के लिए apply करते है। जिस तरह लोगों को काम की जरूरत है उसी तरह कंपनियों को भी अच्छे कामगारों की जरूरत है। ये रेल की पटरी समान चलने वाली दी पटरियां है। पर जरूरत जितना काम लेना और कामगारों को बंधुआ मजदूरों की तरह बांधें रखना ये दोनों अलग विचारधारा है। और आजकल work pressure को बढ़ा कर दिखाना या target की परिसीमा में बांध कर एक्स्ट्रा time काम करवाने का चलन बढ़ता ही जा रहा।
पिछले दिनों भारत में एक multinational company Ernst & Young यानी EY कंपनी में काम करने वाली एक युवती CA एना सेबेस्टियन पेरायिल की मौत हो गई थी। एना की मां अनीता ऑगस्टिन ने कंपनी के टॉक्सिक वर्क कल्चर को इसका जिम्मेदार कहा। ये बताया कि उनकी बेटी को अपने निजी कामों के लिए भी वक्त नहीं दिया जाता था। कपड़े गंदे रहते घर गंदा पड़ा रहता, खाना बस पेट भरने के नाम पर बाहर से मंगा कर खा लेती। घर पर call नहीं करती क्योंकि इतनी थकी रहती की बस दो चार घण्टे सोने की तलब रहती। मतलब खून चूस लो young बच्चों का...इसी तरह कंपनी grow करेगी !!
इस घटना ने एक नई बहस छेड़ दी है कि ‘टॉक्सिक वर्क कल्चर ‘ का विष बेल अभी और कितने युवा जिंदगियों को अपने लपेटे में लेगा...? ?
अभी कई बड़े वैश्विक संस्थानों पर आरोप लगा है कि अधिक काम के दबाव में उनके युवा कर्मचारी अवसाद से प्रभावित हो रहे हैं और अंततः असमय मौत का शिकार हो रहे हैं । काम करते करते मर जाने की स्थिति को "कारोशी" कही जाती है जो कि एक जापानी शब्द है ।
प्राइवेट नौकरियों का आकर्षण दिखा कर निजी संस्थानों की ओर भगाते युवाओं के बीच ओवरवर्क को ग्लोरिफ़ाई करके दिखाया जाता है। जिसे work smartness से जोड़ा जा रहा है। अब यही culture धीरे धीरे सरकारी प्रतिष्ठानों में भी दिखना शुरू हो गया है । विशेषकर जो एसेंशियल सर्विसेज़ ,औद्योगिक प्रतिष्ठान और सरकार में बड़े और निर्णायक पदों पर आसीन हैं । काम के नियत घंटों के समाप्त होने के बाद भी दो चार घण्टा और रुककर देर तक काम करना । ऑफिस के समय के बाद भी ऑफिस से फ़ोन आना और काम की बात करना , कर्मचारियों में तनाव का कारण होता है और वर्क -लाइफ बैलेंस को बिगाड़ने का काम करता है ।
क्या कर्मचारियों को यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वो ऑफिस के बाद , अपने कार्यस्थल से आने वाले संदेशों को मना करें ?
ऑस्ट्रेलिया ने अभी हाल ही में राइट टू डिस्कनेक्ट नाम से क़ानून बनाया है । ये नया कानून उन कर्मचारियों के लिए खुशखबरी है जो वर्किंग आवर्स के बाद ऑफिस से आने वाले कॉल्स और मैसेजेस से परेशान रहते हैं।इसलिए जिंदगी काम के भरोसे चल रही ये स्वीकारना सहज है। पर जिंदगी काम के बिना कुछ भी नहीं ये नितांत गलत धारणा है। कुछ समय सिर्फ अपना होना चाहिए। जिसमें किसी बाहरी की दखलंदाजी ना हो।
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