खोए खोये से हम....😦

खोये खोये से हम.……… !

म कहाँ थे ..........ये पता नहीं पर यही कहीं ,
किसी दिए की लौ में झिलमिलाती रौशनी की ओट से 
सब कुछ देख और जान रहे थे। 
समझ रहे थे कि हमने एक लंबा वक्त गुजार दिया 
ऊन तक पहुँचने में , उनसे कुछ कहने में। 
वह सोच तो रहे होंगे कि आखिर ये है क्या ,
जब भी मन किया आये कुछ फ़रमाया 
और फिर एक लम्बी तन्हाई के पीछे चुप कर ,
हमें अपने आने का अहसास करवाते रहे। 
लेकिन ये भी सच है मानो या न मानो 
एक गुमनाम अंतराल की वजह कभी ,
कोई खास वजह या मसला भी हो सकता है। 
जिस का सम्बन्ध हम सभी की जिंदगियों से जुड़ा है। 
जो आपने भी जिया होगा और शायद मैंने भी.…। 
सच वही है बस जगह और स्वरुप बदल गया ,
नाम बदल गए और पहचान बदल गयी। 
ये मेरी ही व्यथा है जो शब्दों के रूप में ढली
और चुपके से आप तक पहुंची। 



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