कल्पनाओं की उड़ान....😊

आज का दिन एक ऐसी हस्ती के नाम पर अमर हो गया है जो भारतीय है और जिसने इतनी उचाईयों को छुआ की उसके हौसले के आगे विदेशों के नाम भी छोटे लगने लगे। मैं प्रख्यात अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की बात कर रही हूँ। जिसने आज ही के दिन 1997 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए space shuttle ,Columbia से उड़ान भरी। पहली सफल यात्रा के बाद वह दुबारा 2003 में फिर अंतरिक्ष के लिए रवाना हुई। पर इस बार सफलता ने लौटते समय साथ छोड़ दिया और वापसी में यान Heat shield tiles उखड जाने के कारण crash हो गया और कल्पना हमेशा के लिए इस दुनिया से चली गयी साथ में वह सात अन्य यात्री भी थे जो वापस आ कर एक नया कीर्तिमान रचना चाहते थे। खैर इस ये साबित होता है की जब-जब ,जो-जो ईश्वर चाहते है वही होता है।
कल्पना के बारे में कुछ बातें जो मुझे पता है वह आप से बांटना चाहूंगी जिसे मेरे एक परिचित बताया करते हैं। वह कल्पना के पिता को जानते थे। उनके पिता टीन के डिब्बे बनाने वाले एक मामूली कारीगर थे। पर उनके कार्य की सफाई और महारत की वजह से उनसे दूर दूर के लोग काम करवाने आते थे। एक बार एयर फ़ोर्स का एक चालक उनके पास आया और उनसे विनती की एक बार वह उनके साथ चले। वह गए और उन्हें हवाई जहाज का डेंट लगा दरवाजा दिखाया गया। जिसे unofficially ठीक करने का काम उन्हें सौपा जा रहा था। पहले तो वह घबराये फिर उन्होंने कोशिश कर के देखने का प्रयास किया और दरवाजा बिलकुल सही हो गया। चालक ने आभार माना। घर आने पर उन्होंने घर पर ये किस्सा अपने परिवार को बताया तो उनकी 8 -10 की छोटी सी बेटी हवाई जहाज देखने की जिद पकड़ बैठी। उन्होंने उसी चालक से संपर्क कर के अपनी बेटी की ये इच्छा पूरी करने का प्रयास किया और चालक ने उनकी बेटी को पूरा जहाज अंदर से दिखाया। बच्ची बहुत ही खुश हुई और फिर अपने पिता और उस चालक के सामने ही बोली की एक दिन मैं भी ऐसा ही जहाज उड़ाऊंगी। पिता ने हंस कर बात टाल दी क्योंकि वह जानते थे की उनके पास इतनी रकम नहीं है की वह अपनी बच्ची की इतनी ऊँची शिक्षा का खर्च उठा सके। पर कहते है ना कि जहाँ चाह वहाँ राह , वह बच्ची अपने पढ़ने की काबिलियत पर वजीफे की मदद से आगे बढ़ती गयी और एक दिन कल्पना चावला बन गयी। ये किस्सा उस बच्ची को अपने भविष्य को बचपन में ही पहचाने का परिचायक है। अद्भुत थी कल्पना जिस ने अपनी उम्मीदों को इस तरह के पंख लगाये कि सिर्फ हवाई जहाज ही नहीं वह तो बम्हाण्ड की सैर भी कर आयी। इसे कहते है आत्मविश्वास। मैं ये दुआ करती हूँ कि हर माता पिता को ईश्वर कल्पना जैसी संतान दे जिस से उसके भविष्य के लिए अभिभावकों को जद्दोजहद न करनी पड़े।
Comments
Post a Comment