हमने चुना हमने भोगा...!!


हमने चुना ,हमने भोगा........! 
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ये सब हमारी ही भूल है ,
हम दोष दूसरे को देते हैं।
गलत राह पर चल कर भी,
जिम्मेदारी नहीं लेते हैं।
          क्यों चुना सभी ऐसों को ,
          जो भ्रष्ट समाज के चेहरे है।
          हम ऐसा समंदर चुने क्यों ,
          जिन की ये दूषित लहरें हैं।
क्यों नहीं समझते हम सब ,
ये सब मेंढक है बरसात के।
जो टर्रायेंगे सिर्फ चुनाव में ,
साथी नहीं बद्तर हालत के। 
              कितनी लगाओ गुहार सदा ,
              कुछ फर्क नहीं इन्हे पड़ना है। 
              हमारी तकलीफों से हमको  ,
              स्वयं के दम पर लड़ना है। 
क्यों इन की जेबें भरने में ,
हम साथ इनके हो लेते हैं। 
जानबूझ करअपनी पतवार,
गलत मांझी के हाथों देते हैं। 
              कुछ तो शर्म करें अब हम ,
              अब नहीं साथ इनका देंगे। 
             सहिष्णु होने का अर्थ नहीं ,
              कि कुर्सी नहीं छीन लेंगे। 
धोखा है इनकी फितरत में ,
ये अपने लिए ही जीते है। 
इनको चुनने के बाद भी हम 
अपने चाक दामन खुद ही सीते हैं। 
                सदन को हमारा मंच नहीं,
                ये अखाडा बना कर चलते हैं। 
                आरोप प्रत्यारोप के बाणों से ,
               वैमनस्य के बीज फलते हैं। 
ये नेता थे  , ये नेता हैं ,
इनको पहचानना असंभव है। 
उठा फेंको अपने गलियारों से,
ये तो हमारे लिए संभव है। 










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