"माँ.........."
                                                कोख के बीज के सार में छुपी,
वो माँ के जन्म लेने की घड़ी।
भावना के बंधन का अटूट रिश्ता ,
जुड़ी एक सांस से दूसरी सांस की लड़ी।
        अहसास से ममतत्व का आगाज़ ,
        उसके होने और छूने का आभास।
       पीड़ा में भी उसकी सलामती का ख्याल ,
       उसकी ठोकर में भी ख़ुशी अनायास।
पग पग पर उसे दिल से सहेजा ,
हर निवाले से उसको पनपाया।
उसके उन्नत स्वास्थय की खातिर,
ये दर्द माँ ने हँसते हुए अपनाया।
       सिलसिला नहीं सिर्फ नौ माह का ,
         ये जनम - जनम का नाता है।
          रोने , मचलने और सवंरने को ,
          सिर्फ माँ का आँचल ही भाता है।
      संतान के कद  का क्या करना 
     ये गोद के दायरे  की गाथा है।
     आँचल है या द्रौपदी का चीर कि ,
     हर उम्र की संतान को समाता है।
                                                                                        अन्तः करण की भाषा से माँ समझे ,
         सुख दुःख की भावना संतान की। 
       तभी तो सारे संसार में बस माँ ही ,
        एक जीवंत मूरत है भगवान की। 




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