बचपन की मीठी यादें एक कविता के साथ 😍
एक कविता के साथ.....😍
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मैं बहुत छोटी थी और अपने नाना और नानी के ही साथ रहती थी। यूँ भी नाती पोते ग्रैंड पेरेंट्स के दुलारे होते हैं....सो मैं भी थी। और चुहलबाजियाँ करती रहती थी। रोज रात को उनके साथ सोने में कविता और कहानियों की जिद करती । मेरी नानी तो पता नहीं कहाँ कहाँ से राजा रानियों वाली कहानियाँ ले आती ...मस्त मस्त , सपनों जैसी । सुन कर लगता कि मैं ही वो रानी या राजकुमारी हूँ। पर मेरे नाना कविताएं सुनाते थे। महादेवी जी की , दिनकर जी की , निराला जी की , सुमित्रानंदन जी की और भी ना जाने कितने और महान कवियों की.........!!
कुछ बातें आपके बचपन का हिस्सा बन जाती हैं और उसी हिस्से से आज "रामधारी सिंह दिनकर जी " की एक कविता "चाँद का झँगोला" आप सब के साथ शेयर करना चाहूंगी। आप के घर में भी बच्चे हो तो सुनाइयेगा जरूर..... कभी कभी मोबाइल और नेट से अलग कुछ आप के जरिये भी बच्चों को अनुपम मिलना चाहिए। ये आप दोनों के बीच के बॉन्ड मजबूत करेगा ......👍
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हठ कर बैठा चाँद एक दिन माता से यह बोला
सिलवा दो मां मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला
सन सन चलती हवा रात भर जाड़े में मरता हूँ
ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ
आसमान का सफ़र और ये मौसम है जाड़े का
न हो अगर तो ला मुझको कुर्ता ही भाड़े का
बच्चे की सुन कर बात कहा माता ने अरे सलोने
कुशल करे भगवान लगे मत तुझको जादू टोने
जाड़े की तो बात ठीक है पर मैं तो डरती हूँ
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ
कभी एक अंगुल भर चौड़ा कभी एक फुट मोटा
बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा
घटता बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आंखों को दिखलाई पड़ता है
अब तू ये बता नाप तेरा किस रोज लिवाये
सी दें एक झिंगोला जो रोज बदन में आये।
साभार:★कविराज रामधारी सिंह दिनकर ★
Nice! Maine bhi bachpan mein yah kavita suni thi :)
ReplyDeleteबहुत ख़ूब , ये अच्छी बात है । अपने प्यारे बच्चों को भी ज़रूर सुनाइये। आज के डिजिटल समय में हमें अपने बच्चों से भावनाओं के जरिये पुनः जुड़ने की जरूरत है।
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