एक सबक ………!
कल का एक वाकया आप से बांटना चाहूंगी। मैं अपने पति के साथ two wheeler से शहर की एक व्यस्ततम सड़क से गुजर रही थी। शाम का समय था और काफी ट्रैफिक भी था। चौराहे की रेड लाइट ग्रीन होने पर सभी एक साथ भाग छूटे कि जल्दी से सिग्नल पार कर लिया जाए। मेरे नजदीक ही एक कम उम्र की युवती एक्टिवा गाड़ी पर सवार हो कर चलती दिखी। जिस की गाड़ी की लाइट खराब थी। धुधंलके में वह जो सबसे बड़ी गलती कर रही थी कि इतने भीड़ भाड़ में वह एक हाथ से हैंडल और एक हाथ से मोबाइल पर लगातार किसी से बहस की जा रही थी। कुछ देर बाद मैंने देखा कि दोनों हाथों से हैंडल को पकड़ने के लिए उसने मोबाइल को कान और कन्धों के बीच गर्दन टेढ़ी कर के फंसा लिया। हेलमेट न पहने होने के कारण ये संभव हो पाया। मैंने उसे देखा तो आवाज दे कर रोका , और अनपढ़ और बेवकूफ बोलते हुए हेलमेट न पहनने और गाड़ी चलाते हुए मोबाइल प्रयोग करने के लिए मना किया। उसे ये भी समझाया कि यदि वो संतुलन बिगड़ने के कारण गिरेगी तो पीछे आने वाले भी दुर्घटना के शिकार बन सकते हैं।
अब देखें ,घटना का मुख्य भाग यहाँ से शुरू होता है। एक सभ्रांत घर की दिखने वाली उस युवती ने मुझसे बड़ी पुरजोर आवाज़ में लड़ाई शुरू कर दी। कि आप कौन होती हैं इस तरह मुझे सड़क पर डांटने वाली। मेरी जिंदगी है और मैं इसे अपने तरीके से जी रही हूँ। इस तूफानी कहा सुनी में आस पास काफी लोग जमा गए जिसमें एक पुलिस वाला भी था। वह भी समझा रहें थे कि उसने गलत किया है पर उस युवती की ऐसी अकड़ थी की अपनी गलती स्वीकार करने के बजाये वह दूसरों को दोषी साबित लगी। तब मुझे एक विचार आया , मैंने उसके हाथ से उसका मोबाइल छीना और उसके पिता का नंबर लगाया। उनको सारी घटना का वृतांत सुनाया। यकीन मानिये वह फ़ोन पर ही रोने लगे और अपनी पुत्री का जीवन बचाने के लिए धन्यवाद देने लगे। मैंने फ़ोन लॉउडस्पीकर पर किया और उस लड़की को उसके पिता की रुदन भरी आवाज़ में क्षमा मांगते हुए सुनवाया। उसे ये अहसास करवाया कि मैं एक माँ होने के नाते उसे उसके जीवन को बचाने के लिए उसे डाँट रही थी। क्योंकि आज कल के बच्चे ये भूल जाते हैं कि घर में जन्म देने वाले माता पिता अपनी संतानों के सुरक्षित घर वापसी की राह ताकते रहते हैं। उस लड़की को क्या अहसास हुआ क्या नहीं ये मुझे नहीं पता ,पर मुझे जरूर ये अहसास हुआ कि इन बेगैरत औलादों के अभिभावक होने की मजबूरी किस तरह ढोई जाती है। जो कभी कभी पुरे जीवन का जख्म बन जाती है।
कल का एक वाकया आप से बांटना चाहूंगी। मैं अपने पति के साथ two wheeler से शहर की एक व्यस्ततम सड़क से गुजर रही थी। शाम का समय था और काफी ट्रैफिक भी था। चौराहे की रेड लाइट ग्रीन होने पर सभी एक साथ भाग छूटे कि जल्दी से सिग्नल पार कर लिया जाए। मेरे नजदीक ही एक कम उम्र की युवती एक्टिवा गाड़ी पर सवार हो कर चलती दिखी। जिस की गाड़ी की लाइट खराब थी। धुधंलके में वह जो सबसे बड़ी गलती कर रही थी कि इतने भीड़ भाड़ में वह एक हाथ से हैंडल और एक हाथ से मोबाइल पर लगातार किसी से बहस की जा रही थी। कुछ देर बाद मैंने देखा कि दोनों हाथों से हैंडल को पकड़ने के लिए उसने मोबाइल को कान और कन्धों के बीच गर्दन टेढ़ी कर के फंसा लिया। हेलमेट न पहने होने के कारण ये संभव हो पाया। मैंने उसे देखा तो आवाज दे कर रोका , और अनपढ़ और बेवकूफ बोलते हुए हेलमेट न पहनने और गाड़ी चलाते हुए मोबाइल प्रयोग करने के लिए मना किया। उसे ये भी समझाया कि यदि वो संतुलन बिगड़ने के कारण गिरेगी तो पीछे आने वाले भी दुर्घटना के शिकार बन सकते हैं।
अब देखें ,घटना का मुख्य भाग यहाँ से शुरू होता है। एक सभ्रांत घर की दिखने वाली उस युवती ने मुझसे बड़ी पुरजोर आवाज़ में लड़ाई शुरू कर दी। कि आप कौन होती हैं इस तरह मुझे सड़क पर डांटने वाली। मेरी जिंदगी है और मैं इसे अपने तरीके से जी रही हूँ। इस तूफानी कहा सुनी में आस पास काफी लोग जमा गए जिसमें एक पुलिस वाला भी था। वह भी समझा रहें थे कि उसने गलत किया है पर उस युवती की ऐसी अकड़ थी की अपनी गलती स्वीकार करने के बजाये वह दूसरों को दोषी साबित लगी। तब मुझे एक विचार आया , मैंने उसके हाथ से उसका मोबाइल छीना और उसके पिता का नंबर लगाया। उनको सारी घटना का वृतांत सुनाया। यकीन मानिये वह फ़ोन पर ही रोने लगे और अपनी पुत्री का जीवन बचाने के लिए धन्यवाद देने लगे। मैंने फ़ोन लॉउडस्पीकर पर किया और उस लड़की को उसके पिता की रुदन भरी आवाज़ में क्षमा मांगते हुए सुनवाया। उसे ये अहसास करवाया कि मैं एक माँ होने के नाते उसे उसके जीवन को बचाने के लिए उसे डाँट रही थी। क्योंकि आज कल के बच्चे ये भूल जाते हैं कि घर में जन्म देने वाले माता पिता अपनी संतानों के सुरक्षित घर वापसी की राह ताकते रहते हैं। उस लड़की को क्या अहसास हुआ क्या नहीं ये मुझे नहीं पता ,पर मुझे जरूर ये अहसास हुआ कि इन बेगैरत औलादों के अभिभावक होने की मजबूरी किस तरह ढोई जाती है। जो कभी कभी पुरे जीवन का जख्म बन जाती है।
Comments
Post a Comment