धैर्य ....😊
धैर्य ………………!
एक सत्य से आप को रूबरू कराऊँ जिसे आप जानते हैं पर मानते नहीं। वह ये है कि आज हर किसी के अंदर धैर्य खत्म हो गया है। तुरत फुरत वाले विचार ने जीवन में सोचने और समझने के लिए मिलने वाले समय को ख़त्म कर दिया है। पहले रिश्ते इसी लिए लम्बे चलते थे क्योंकि एक दूसरों की खामियों को धैर्य से स्वीकार कर उन्हें ठीक होने का मौका दिया जाता था। अब गलती हुई नहीं कि ताबड़तोड़ न्याय .... और फिर कोई जरूरी नहीं की गलती वाकई गलती जैसी हो।
आज के समाचार पत्र की एक खबर का उदाहरण लें , कुरकुरे के एक पैकेट के लिए 5 रूपये चुराने पर एक माँ ने अपने बच्चे के ऊपर केरोसिन डाल कर ।आग लगा दी। बच्चा काफी जल गया और अस्पताल में भर्ती है। ये क्या है , क्या माँ से इस तरह के व्यव्हार की उम्मीद की जा सकती है ? ये उग्रता नहीं तो और क्या जिस ने माँ और संतान के बीच की भावना ही मार डाली। रोजमर्रा के जीवन में हर कही ऐसे लाखों उदाहरण मिल जाएंगे जहाँ धैर्य से काम लेने पर स्थिति सुधर सकती थी। जैसे ये भी देखें कि पास में रहने वाले दो परिवारों की स्त्रियां आपस में झगड़ती थी इस से परेशान हो कर एक स्त्री के पति ने दूसरी स्त्री के पति को धोखे से एक सुनसान जगह पर बुला कर मार डाला। अब दोनों कातिल पति पत्नी जेल की सलाखों के पीछें है। क्षणिक आवेश और उग्रता ने दो परिवार खत्म कर दिए।
आज सब से पहले हमें खुद को शांत करना होगा कि परिस्थितिया हमें नहीं बल्कि हम परिस्थितियों को बदलेंगे ताकि वो हम पर हावी न हो पाएं। एक बार ठन्डे मन से सोचें कि क्या हमारी विचिलिता हमें अंदर से खोखला तो नहीं कर रही ? क्योंकि ये तो आप भी जानते है कि हरा भरा पेड़ ही हमेशा छावं देता है जबकि ठूठ नहीं।
आज के समाचार पत्र की एक खबर का उदाहरण लें , कुरकुरे के एक पैकेट के लिए 5 रूपये चुराने पर एक माँ ने अपने बच्चे के ऊपर केरोसिन डाल कर ।आग लगा दी। बच्चा काफी जल गया और अस्पताल में भर्ती है। ये क्या है , क्या माँ से इस तरह के व्यव्हार की उम्मीद की जा सकती है ? ये उग्रता नहीं तो और क्या जिस ने माँ और संतान के बीच की भावना ही मार डाली। रोजमर्रा के जीवन में हर कही ऐसे लाखों उदाहरण मिल जाएंगे जहाँ धैर्य से काम लेने पर स्थिति सुधर सकती थी। जैसे ये भी देखें कि पास में रहने वाले दो परिवारों की स्त्रियां आपस में झगड़ती थी इस से परेशान हो कर एक स्त्री के पति ने दूसरी स्त्री के पति को धोखे से एक सुनसान जगह पर बुला कर मार डाला। अब दोनों कातिल पति पत्नी जेल की सलाखों के पीछें है। क्षणिक आवेश और उग्रता ने दो परिवार खत्म कर दिए।
आज सब से पहले हमें खुद को शांत करना होगा कि परिस्थितिया हमें नहीं बल्कि हम परिस्थितियों को बदलेंगे ताकि वो हम पर हावी न हो पाएं। एक बार ठन्डे मन से सोचें कि क्या हमारी विचिलिता हमें अंदर से खोखला तो नहीं कर रही ? क्योंकि ये तो आप भी जानते है कि हरा भरा पेड़ ही हमेशा छावं देता है जबकि ठूठ नहीं।
उतावलापन होने का एक परिणाम और देखें कि 12 वीं का रिजल्ट आने से पहले किसी ने एक छात्र को उसके कम नंबर आने की गलत अफवाह दी और धैर्य से अपने नंबर देखें बिना उस छात्र ने फंदे पर लटक कर जान दे दी। जबकि वह छात्र प्रथम श्रेणी में पास हुआ है। ये आप भी महसूस करते होंगे कि कई परिस्थितियां अपना परिणाम तुरत - फुरत नहीं दे पाती। ऐसे में हमे सब्र से उसके तात्कालिक निष्कर्षों पर ध्यान देना चाहिए। हम किसी भी स्थिति को उचित समय नहीं देते कि कम से कम वह अपने उचित परिणाम को दर्शा सके। अगर दो लोगो में आपस में नहीं बन पा रही तो रिश्ते में थोड़ी दूरी बना कर उसे समय दें जिस से एक दूसरे की अच्छाइयों और गलतियों को परखा जा सके। इस पूरी चर्चा का एक मात्र उद्द्येश्य ये है कि हमें अंदर से ठंडा होने की जरूरत है। अपने मन और मस्तिष्क को शांत कर स्थितियों को भली भांति समझने की जरूरत है। आप खुद महसूस करेंगे कि आप के ऐसा करने से परिस्थितियों का निष्कर्ष बेहतर आ रहा है। साथ ही आप भी जीवन के हर पल को ख़ुशी से जी पा रहें हैं। इस लिए सोचिये मत आज से दशमलव में ही सही पर बदलाव का प्रारम्भ तो करें। एक दिन यही सैकड़ें में बदलेगा। आमीन …………………
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