व्यस्तता से प्रभावित सामाजिकता ....😞

व्यस्तता से प्रभावित सामाजिकता .......…!

क्या आप को नहीं लगता कि हमारी सामान्य सी जिंदगी में कभी कभी कुछ ऐसा हो जाता है जो अप्रत्याशित होता है लेकिन उसके अप्रत्यक्ष जिम्मेदार हम ही होते हैं। हम रोजाना के व्यव्हार में न जाने कितनी ही बातें ऐसी कर बैठते है जो दूसरों के लिए दुखद होती हैं पर शायद हम स्वयं भी ये नहीं जान पाते। 
एक उदाहरण के जरिये समझिए … मैं पिछले कुछ दिनों से अपनी व्यक्तिगत दैनिक गतिविधियों में कुछ ज्यादा ही व्यस्त और परेशान थी।  जिस कारण मैंने घर से निकल कर अपने आस पड़ोस के लोगों से बात करना या उनसे संपर्क कर पाना छोड़ सा दिया था।  हालाँकि ये मेरी व्यक्तिगत व्यस्तता थी पर इसे मेरे पड़ोस के एक परिवार ने स्वयं के लिए महसूस किया और मुझसे बातचीत बंद सी कर दी। मैं परेशान होकर इसका कारण तलाशने लगी। अब इस घटना का मूल कारण समझें , जब भी कभी हमारा इस तरह का व्यव्हार दूसरों को नजर आता है तो वह अपने व्यव्हार का आंकलन करने लगते है कि इतने लम्बे साथ में मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया था, जिस से वह मुझसे नाराज हो। ये सत्य है कि कोई भी अपनी गलती तो स्वीकार करता नहीं ऐसे में वो खुद को दोषी क्यों मानने लगा। ऐसे में आप को attitude वाला समझ कर सारा दोषारोपण आप पर ही कर दिया जायेगा। ये सारी ग़लतफ़हमी का कारण आप का isolated  रहना है जो रोजमर्रा में कभी    भी , किसी भी कारण से हो सकता है। 
                          अपनी स्वयं के जीवन की कई परेशानियां ऐसी होती है जिनके समाधान दूसरों को बिना बताये करने पड़ते हैं। ऐसे में कुछ समय तो आप स्वयं को देंगे ही। वैसे इस घटना का एक दूसरा पहलु ये भी है कि हर कोई सब से पहले खुद को बेहतर जानता है।  जानता है कि उसने कहाँ और क्या गलतियां की होंगी पर अहम के कारण उसे स्वीकार करना उसके लिए कठिन होता है। इस लिए अच्छा है कि अपनी गलतियों को जिम्मेदार न मानते हुए अपना ठीकरा दूसरे के सर फोड़ दो कि आप ने गलती की है। शायद इसी वजह से दो लोगों के रिश्ते में दूरी आ जाती है। लेकिन मेरा सोचना है कि जब सभी अपनी गृहस्थी के दैनिक क्रियाकलापों में उलझ कर ज्यादा समय उसे ही देते हैं तो ऐसा ही सब के बारे में सोचना चाहिए।  सब के जीवन के अनेकों कार्य उनके खुद के भरोसे चल रहें होते है और उसके लिए समय और व्यव्हार दोनों का त्याग करना पड़ता हैं। ऐसे में सभी को खुश रखना और समान समय देना असंभव सा हो जाता है।  पर यही समाज है और इस समाज में जीने के लिए बहुत कुछ निभाना और खोना पड़ता है। ....... 

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