पेट की भूख धन से नहीं अन्न से जाती है ....👍

पेट की भूख धन से नहीं अन्न से जाती है …………! 

आखिर कब तक हम स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते रहेंगे और अपनी करनी का गुणगान कर के उन सब को खुद से नीचे रखने का प्रयास करेंगे जिन के सहारे ये जीवन चलायमान है ? इस सत्य से सभी वाकिफ हैं कि जीवन की कुछ अनिवार्य आवश्यकताएं होती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जिस प्रकार स्वयं के प्रयास आवश्यक हैं उसी तरह प्रकृति का भी सहयोग आवश्यक है।  यूँ तो मौसम व्यज्ञानिक अपने पूर्वानुमानों से मौसम को जानने का भरसक प्रयास करते हैं। पर प्रकृति सब से बड़ी है ये वह समय आने पर दिखा ही देती है।  सारे पूर्वानुमान , आंकलन और  प्रबंधन सब कुछ धरा रह जाता है जब उसके रौद्र रूप से सभी का सामना होता है। अभी कुछ माह पहले जब गर्मी और तपन के बीच फसलों और इंसानों को नैसर्गिक रूप से पलना और बढ़ना था तब आंधी ,तूफान ,ओलावृष्टि और वर्षा ने सभी तारतम्य बिगाड़ कर रख दिए। जिस से फसलों के भीषण नुकसान के साथ किसान भी तबाही की कगार पर आ गए हैं।  अब एक और नया तुर्रा कि………… इस वर्ष भारत के आस पास अलनीनो का अति प्रभाव बनने के कारण कम वर्षा और सूखे की आशंका है। अब कोई ये बताये कि क्या अनाज भी मशीनों से पैदा हो सकता है ?
                                        हमारे एक परिचित हैं जो उद्योगपतियों के अंध पक्षधर है उनके अनुसार यदि ये उद्योगपति नहीं होंगे तो भारत की जनता और भी ज्यादा गरीब हो जाएगी। उनके अनुसार इन बड़े उद्योगपतियों के द्वारा लोगों को कार्य दिए जाने से ही जन उद्धार हो रहा हैं। अब उन जैसे समझदार लोगों को ये कौन समझाए कि इस देश का उद्धार तभी होगा जब सबके पेट भरे होंगे और पेट भरने के लिए कमाए गए धन से रोटी ही खरीदनी पड़ती है। हर देश का खानपान अलग है पर ये तो सभी जानते  समझते हैं की रोटी , ब्रेड, पिज़्ज़ा , बिस्किट्स आदि बहुत सी चीजों के लिए गेहूं की फसल आवश्यक है। अतः एक परिकल्पना करें कि सब खेती की जमीनें यदि उद्योगों को दे दी जाएँ तो क्या ये उद्योगपति  अनाज का आयत करके भूखी जनता को सस्ते दामों में दे कर उनका पेट भर सकेंगे ?  सब से पहले अपना पेट भरना हर किसी की ख्वाहिश होती है।  और ये सभी जानते है कि अकूत धन होने के बाद भी इन बड़े उद्योगपतियों के फैलाव की कोई सीमा नहीं है। अब स्थिति की कल्पना करें कि यदि इस वर्ष सूखे ने जनता को त्रस्त किया तो उसके कारण आई महगाईं केवल सामान्य वर्ग को तबाह करेगी। इन बड़े उद्योगपतियों को तो ये भी नहीं पता होगा कि दाल और चावल किस भाव से आते हैं ? जिनके घर रोज दावतें और आयोजनों की भरमार रहती हो उन्हें बचा हुआ अन्न फेकें जाने या बेवजह के आयोजनों से कोई सरोकार नहीं। आज का ये लेख एक कटाक्ष है उन लोगो की सोच पर जो ये समझते है कि धनवान लोगों के कारण देश की अर्थव्यवस्था चल रही है। आप ने वो कहानी तो जरूर सुनी होगी की एक राजा को धन से बहुत प्यार था ईश्वर से प्रार्थना की तो आशीर्वाद मिला की वह जो भी चीज छुएगा सोने की हो जायेगी। वह बहुत खुश हुआ घर की सभी वस्तुओं को छू कर सोने में बदलने  लगा।  दिन ढले जब भूख लगी तो खाना खाने बैठा पर ये क्या , उसके छूते  ही खाना भी सोने में बदल गया। … भूख के मारे उसकी अंतड़ियां कुलबुलाने लगी पर अब क्या हो सकता था।  इसी बीच उसका बच्चा उसके पास आया और उसने प्यार उसके सर पर हाथ रखा तो वह भी सोने में बदल गया। अब उसने इस  वरदान की नकारात्मकता जानी और ये जाना कि पेट सिर्फ रोटी से ही भरता हैं। अब ये समझना होगा कि इस संसार में बनी हर चीज का अपना वजूद है, आधुनिक और सफल होने की चाह में उसे नकार कर हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहें है.………    

Comments