मशीनी ज़िन्दगी

मशीनी ज़िन्दगी :                              ~~~~~~~~~~~

समय कितना बदल गया है। विकास की दौड़ में भागते हुए हम भावनाओं संवेदनाओं को कहीं पीछे छोड़ते गए। 

 आज भी वो पुराने दिन याद आते हैं जब परिवार के बहुत सारे लोग अपने किसी परिचित या रिश्तदारों को छोड़ने रेलवे स्टेशन जाते थे। तो ट्रैन के रवाना होने तक वहीं रुकते थे। और जब ट्रेन रेंगने लगती तो अपने उस करीबी को दूर जाता देख रोने लगते थे। रेलवे प्लेटफार्म पर ऐसे बहुत से रोते सुबुकते लोग दिख ही जाते थे। जो अपनों के दूर जाने से दुःखी हो रहे होते। ये दृश्य अपनापन और आत्मीयता दिखाता था। 

आज हालात ये हैं कि हम किसी की मृत्यु के बाद श्मशान भी जाएं तो आंसू नहीं निकलते। ये भावनाओं का सूखापन है कि अंदर से हम कितने शुष्क हो गए है। कोरोना में आसपास इतनी ज्यादा मौतें हुईं। पर हमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। जिसे हमने बस एक घटना भर समझ कर स्वीकार कर लिया। 

मेरे ही फ्लोर पर तीन मौतें एक हफ्ते के अंदर हो गई थी। एक बुजुर्ग सज्जन जो रोजाना गुजरते हुए अभिवादन करते हालचाल पूछते। उस दिन भी पूछा और अगली सुबह पता चला कि वह चल बसे। मेरे घर के ठीक सामने एक युवा अपनी माँ के साथ रहता है। वह बीमार पड़ा। उसे हस्पताल में भर्ती कराया गया। उसकी माँ घर पर ही रही infection के डर से उसे दूर रखा गया। अस्पताल में वह लड़का मरा और घर पर उसकी चिंता में मां। 

ये घटनाएं बताने का एक मकसद है कि हम इन लोगों की उपस्थिति और फिर उनकी मौत को कितना हल्का ले रहे। कोई सामने दिखता हुआ अचानक हमेशा के लिए चला जाये। ये अब कोई बड़ी बात नहीं रह गयी। क्योंकि हम अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त हैं कि दूसरे या किसी अन्य के लिए सोचने विचारने या दुखी होने का हमारे पास समय नहीं। 

कितना अच्छा था वह पुराना समय। जब टेक्नोलॉजी कम थी पर आत्मीयता ज्यादा थी। गांव घेरे में एक का दुख पूरे गावँ का दुख हुआ करता था। सुख में हर कोई खुशियां साझा करने के लिए तैयार रहता था और दुःख में हर कोई सहारा देकर मदद करने को। यही जिंदगी होती है पर शहरीकरण और अंधे विकास की बहती हवा ने ऐसे हर अहसास को जैसे खत्म सा कर दिया है। 

आधुनिक गैजेट्स के साथ जिंदगी गुजारने से हम क्यों मशीनी बन गए ये बात समझ से परे है। वो भी ऐसे मशीनी कि अब रोबोट की भांति जिंदगी जिये जा रहे। एक नियत ढर्रा बना लिया जीने का। उसमें बदलाव की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी। स्थिति परिस्थिति के परिवर्तन का कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। हम मशीन है और मशीन की तरह चलते रहेंगे। अगल बगल कु छ भी होए हमें फ़र्क़ नहीं पड़ता।

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