विकसित जीवन का गिरता मापदंड

विकसित जीवन का गिरता मापदंड :      •~•~•~•~•~•~•~•~•~•~•~•~•~•~•

निसंदेह विकास तो बहुत हांसिल कर लिया हमने। और उस विकास के साथ आया अप्रत्याशित बदलाव।  तभी तो स्थितियां किस हद तक परिवर्तित हो गयी हैं। कि अचानक से बेहद स्तब्ध करने वाली  बहुत सी घटनाएं सामने आने लगी हैं, कम उम्र स्कूली छात्रों द्वारा हत्याएं हो रही हैं। स्कूल, हाइवे, ऑफिस हर जगह खुलेआम स्त्री पुरुष सम्बंध बना रहे, ऐसा लग रहा है जैसे भारतीय आदमी ने अपनी मर्यादा की सीमाओं को ध्वस्त करने की कसम खा ली है। औरतें अपने पतियों को छोड़कर नाबालिग बच्चों के साथ भाग रही हैं। इसके लिए वो अपने दूध पीते बच्चों तक को त्याग रही हैं। यहां तक इसके लिए वो पति और बच्चों का मर्डर तक कर दे रही या करा दे रही हैं।  जमीन पर झगड़े बढ़ रहे हैं, कहीं पूरा परिवार एकमत से किसी हादसे से व्यथित होकर सामूहिक आत्महत्या का कदम उठा रहा है। 

स्क्रीन पर जागरुकता के नाम पर बस अश्लीलता परोसी जा रही, रील बनाना औरतों के लिये एक अति आवश्यक दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। इस रील के लिए वो घर परिवार को भी ताक पर रख देती है। 

देश के तमाम सेलिब्रिटी यूथ को बस सट्टा खेलने के लिये उकसा रहे हैं। मात्र 1 रुपये से टीम बनाने का और 49 रुपये लगाकर आदमी को करोड़पति बनाने का सपना दिखाया जा रहा है। 

बेशक कितना ही घृणित व जघन्य अपराध, हत्या, रेप, अपहरण या फिर कितना ही बड़ा घोटाला हो.. अब हम एक पल के लिए भी परवाह या चिंता नहीं करते। ना ही उस घटना से अपना मन खराब होता है। असर तो बहुत दूर की बात है।  

हमारी संवेदनाएं खत्म हो चुकी हैं और हमने अपने विवेक को अंटार्कटिका की बर्फ में दफ़न कर दिया है। अब हम आपत्ति दर्ज नहीं करवाते, अब हम बगावत नहीं करते, इसीलिए अब सत्ताधारी लोग  निरंकुश होने के लिए स्वतंत्र हो गए हैं हम इन सब के आदी (हैबिच्यूअल) हो गए हैं, और ये बहुत खतरनाक स्थिति है...!! क्योंकि हमारी संवेदनहीनता स्थितियों को और अधिक क्षरण पहुंचा रही। जब हम जागरूक होंगे। गलत  के लिए आवाज उठाएंगे। तभी लोग उन्हें करने से पहले दो बार सोचेंगे। जब समाज ये देख लेता है कि किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा। तब वर्क निरंकुश हो जाता है। 

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