समय नहीं है
समय नहीं है : •••••••••••••••
बारह घंटे की यात्रा अब चार घंटे में सिमट गई है.....
फिर भी आदमी कहता है.....समय नहीं है !!
बारह लोगों का परिवार अब सिर्फ़ दो लोगों का रह गया है....
फिर भी आदमी कहता है........समय नहीं है !!
एक मैसेज जो पहले चार हफ़्ते में पहुंचता था,
अब चार सेकंड में पहुंचता है.....
फिर भी आदमी कहता है......समय नहीं है !!
"30 मिनट या मुफ़्त पाओ ” जैसे ऑफ़रों के बावजूद
फिर भी आदमी कहता है...... समय नहीं है !!
कभी दूर बैठे व्यक्ति का चेहरा देखने में सालों लग जाते थे....
अब कुछ सेकंड में दिख जाता है ।
फिर भी आदमी कहता है...... समय नहीं है !!
घर की मंजिलों की सीढ़ियां चढ़ने में जो समय और मेहनत लगता था......
अब लिफ्ट से उसमें कुछ ही सेकंड लगते है।
फिर भी आदमी कहता है......समय नहीं है !!
वह आदमी जो कभी घंटों बैंक की लाइन में खड़ा रहता था....
अब अपने मोबाइल पर कुछ सेकंड में लेन-देन पूरा कर लेता है।
फिर भी आदमी कहता है......समय नहीं है !!
मेडिकल टेस्ट जो पहले हफ़्तों में होते थे....
अब कुछ घंटों में उसका परिणाम हाथ में होता हैं।
फिर भी आदमी कहता है......समय नहीं है !!
स्कूटी चलाते समय एक हाथ हैंडल पर और दूसरा फोन पर रहता है.....
क्योंकि उसके पास सुकून से रुक कर बात करने का समय नहीं है।
कार चलाते समय उसका एक हाथ स्टीयरिंग पर और दूसरा व्हाट्सएप पर रहता है.....
क्योंकि उसके पास समय नहीं है।
जब ट्रैफिक जाम होता है तो वह नई लाइन बनाने के लिए लेन बदल देता है ......
क्योंकि उसके पास समय नहीं है !!
ऑफिस के बीच में उसकी उंगलियां फोन पर व्यस्त रहती हैं....
क्योंकि उसे कहीं अतिरिक्त ध्यान देना होता है..... उस अतिरिक्त के लिए भी उसके पास समय नहीं है।
जब वह अकेला होता है तभी वह आराम महसूस करता है ...
लेकिन दूसरों की मौजूदगी में बेचैन हो जाता है !!
क्योंकि उसके पास अपने लिए समय नहीं है।
किताबें पढ़ने का समय नहीं, माता-पिता को फ़ोन करने का समय नहीं, दोस्त से मिलने का समय नहीं, प्रकृति का आनंद लेने का समय नहीं… लेकिन, उसके पास आईपीएल के लिए समय है, नेटफ्लिक्स के लिए समय है, बेकार की रील देखने का समय है, राजनीति पर बहस करने का समय है – लेकिन खुद के लिए समय नहीं है… दुनिया सरल, तेज़ होती गई, तकनीक करीब आती गई, दूरियाँ मिटती गईं, सुख-सुविधाएँ बढ़ती गईं, अवसर बढ़ते गए… फिर भी इंसान कहता रहा कि समय नहीं है, और खुद से दूर होता गया। चुपचाप बैठना, खुद से बात करना, खुद को समझना, या बस कुछ पलों के लिए हंसना – वह कहता है कि समय नहीं है। और फिर एक दिन, समय खुद ही फिसल जाता है। उस आखिरी पल में उसे एहसास होता है – समय था… लेकिन हम कहते रहे कि समय नहीं है और जीना भूल गए। तो आज ही तय करें – थोड़ा समय अपने लिए रखें, थोड़ा समय रिश्तों को दें, थोड़ा अपने दिल, अपनी शांति, जीवन के सार के लिए जिएँ। क्योंकि समय का न होना कोई सच्चाई नहीं है -
यह सिर्फ़ एक आदत है... और इसे बदलने की ज़रूरत है।
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