निगाहों से बरसते आँसू

 निगाहों से बरसते आँसू :                     •••••••••••••••••••••••


निगाहों से बरसते आंसूओं को 
लोग छल क्यूँ समझते हैं
ज़ख्म बरसों से कुरेद रहा 
लोग उसे मखमल समझते हैं
गुजरती रात से पूछो कि 
कितनी तन्हाईयाँ मिली
फ़िर क्यों कर लोग इसे 
यादों की महफ़िल समझते हैं
परवाह नहीं और बेचैनियां 
भी नहीं है कोई 
फिर क्यों लोग मुझे 
जाहिल समझते हैं
ज़िन्दगी की मुश्किलों को 
बड़ी मुश्किल से संभाला
फिर क्यों सभी इसे 
बेहद सरल समझते हैं......!

                             ~ जया सिंह ~

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