ज़िन्दगी की मुश्किलें
ज़िन्दगी की मुश्किलें: ••••••••••••••••••••
ज़िन्दगी की मुश्किलों से जद्दोजहद
शायद तेरे ना होने की भरपाई है
जिसके सहारे मेरी आवाज़ बुलंद थी,
उसी सहारे पर अब चुप्पी सी छाई है
आज फिर शिद्दत से तुम्हारी याद आई है,
हर तरफ़ कोलाहल है.. फिर भी तन्हाई है
रिश्तों के हसीन धागों में उलझे हम,
जब सुलझे तो हर रिश्ते में गिरह पाई है
था इशारा — जहाँ रख दो हाथ, हक़ है तेरा,
रखा जो हाथ तो कांटों की चुभन आई है
महकती थी बगिया फूलों से मेरे घर की,
अब तो काग़ज़ी फूलों से सजावटें पाई हैं
कहा कुछ भी नहीं पर बदले में ख़ामोशी थी
रवैयों में हर बार दूरी की बू आई है।
जानती हूँ, यही है सफ़र ज़िंदगी का अब,
संघर्ष साँस तक है....यही कसमें खाई है
★◆★◆★◆★◆★◆★◆★
Comments
Post a Comment