पनी जिंदगी का एक किस्सा आप से बांटना चाहूँगी।  जो ये अहसास करता है कि आज कल लोगो के अहंवाद इतने जटिल हो गए हैं कि उनके अंदर से एक सामान्य इंसान को निकलना या तलाशना बहुत ही मुश्किल हो गया है।  जिस सोसाइटी में रहती हूँ वही की एक किटी की सदस्या थी मैं।  दस औरतों का एक समूह जिसे सिर्फ मौज मस्ती के लिए बनाया गया था।  महीने में एक बार मिल कर खाना-पीना और खेलों के जरिये कुछ अच्छे पल बिताने के लिए जुटता था। दस औरतों में सभी अलग अलग परिवार ,व्यव्हार ,रहन-सहन , आर्थिक स्तर और परिवेश की थी। जिंदगी जीने का नजरिया भी अलग अलग था कोई 100 % घर परिवार के लिए जीता था ,कोई 70 -30 का अनुपात ले कर जी रहा था , और कोई 40 -60 के आंकड़े को अपना कर खुश था।  अर्थात मैं उन लोगों में से थी जिसके लिए मेरा परिवार 100 % पर प्राथमिक है , कुछ लोग 70 % परिवार के लिए और 30 % सिर्फ अपने लिए जीते थे , और कुछ लोग तो 60 % अपने लिए और 40 % परिवार के लिए जी रहे थे। अपनी जिंदगी की खुशियों को परिवार के नाम पर ख़त्म करना जिनके लिए जरूरी नहीं था। शायद इसी लिए उनके हर महीने होने वाली किटी समय गुजरने का एक बेहतर जरिया था जिस में वो सिर्फ खुद के लिए जीती थी। 
                                                         
                                 हम सभी महीनेवार सभी के नाम से निकलने वाली पर्ची के अनुसार किटी का आयोजन करते गए। सब से आखिर में मेरी किटी का नंबर आया। इत्तेफ़ाक़ से उसी माह मेरी बच्ची की तबियत ख़राब हो गयी और उसका आपरेशन कराना पड़ा। जिस के कारण माह की किटी में विलम्ब हुआ। ये बात किटी की कुछ सद्यों को इतनी नागवार गुजरी कि उनने मेरी किटी का ही बहिष्कार कर दिया। सभी लोगों के लिए की गयी मेरी तैयारी बेकार गयी पर उनके लिए उनका अहम जीत गया। यहाँ तक की हमारी किटी का जो ग्रुप बनाया था वह भी उन्होंने छोड़ दिया। बात तब बढ़ी जब उन्होंने किटी में नियमित रूप से दिए जाने वाले भुगतान को भी नहीं दिया। मेरा विश्वास तब डगमगाया जब किसी ने भी आगे बढ़ कर अपना अनिवार्य भुगतान दिया जाना जरूरी नहीं समझा। बड़ी बड़ी बातें करने वाली उन तमाम महिलाओं के स्वाभिमान ने उन्हें उस समय नहीं कचोटा जब उन्होंने बिना किसी सुचना के ग्रुप ही छोड़ दिया  .......इस सारे प्रकरण में मुझे जो बात सब से नागवार गुजरी वह थी किसी बहुत छोटी सी बात को अपने लिया प्रतिष्ठा का सवाल बना लेना।अगर देखा जाए तो इस तरह के आयोजनों का मकसद सिर्फ कुछ पलों की मौज मस्ती ही होती है। लेकिन इस तरह के व्यव्हार को दर्शा कर उन तमाम औरतों ने ये दिखा दिया कि उनके लिए जीवन में क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह कि खुद के मनोरंजन में कोई व्यवधान नहीं आना चाहिए। भले ही उसके लिए कोई  जायज़ कारण भी मौजूद हो। किसी की नजरों में अपना स्थान हम खुद ही बनाते हैं और गिरातें हैं। बस उसके लिए सोच की सकारात्मकता या नकारात्मकता की स्थिरता बनाये रखनी पड़ती है। ये चुनाव हमारा खुद का होता है। ये  घटना मैंने आप सब से इस लिए बांटी ताकि आप भी ये महसूस कर सके की हम कभी कभी अपने जिन क्रिया कलापों को दूसरों को तकलीफ देने के लिए करते हैं उनसे हमारी खुद की प्रतिष्ठा को कितनी क्षति होती है ये देख नहीं पाते। इस लिए अगर आप अपने बारे में ही सोचते हो तो किसी दूसरे के लिए किये जाने वाले कार्य को करने से पहले भी यह जरूर सोचे की कोई गलत कदम मुझे कितना नीचे गिरायेगा। ....... 

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