नियंत्रित मन ........ !
एक नई सोच ने यूँ ही मन में घर किया सोचा आप से बांटूं...... क्या आप ने कभी ये सोचा है कि हम दूसरों के कुछ कह सुन लेने पर यूँ व्यथित क्यों हो जाते हैं ? हम अपनी सोच के खुद मालिक हैं और किस के बारे में क्या सोचना है ,कितना सोचना है ,ये भी हमारा ही मन निर्धारित करेगा ना की कोई और। फिर भी हम अपनी सोच को ,दूसरों की बोली गयी या की गयी किसी बात के अनुसार तोड़ मरोड़ कर वही सोचने लगते हैं जो की उनकी ओर से हमसे अपेक्षित होता है। ये स्थिति द्वन्द पैदा करती है , हमारे विचारों की अच्छाई और बुराई में। इस बात को गहराई से समझिये , किसी एक व्यक्ति ने मुझसे कुछ आपत्तिजनक कहा , कह कर वह चले गए मैंने उस बारे में सोचना प्रारम्भ किया। एक लंबे समय तक उस विचार को मंथते हुए मैंने मन ही मन न जाने कितने अच्छे बुरे निष्कर्ष निकाले। जबकि हो सकता है कि कहने के बाद वह व्यक्ति उस बात से अलग हो गए होंगे। पर मैं आज तक जुडी हूँ क्योंकि मैंने उसे अपने दिमाग में इस कदर बैठा लिया है कि उसका पीछे नहीं छोड़ पा रही . उस बात की प्रतिक्रिया के रूप में उस व्यक्ति से बातचीत भी बंद कर दी गयी। लेकिन क्या बात बंद करने के बाद भी हम उस व्यक्ति से अलग हो पाए ,........ नहीं क्योंकि आज भी हम उसी के बारे में सोचते हुए अपने व्यव्हार को नियंत्रित कर रहे हैं, क्या इस से हमारी सोच की दिशा और दशा बदली ..... बिल्कुल नहीं।
कहने का तात्पर्य ये है कि हमारे मन और सोच के मालिक हम खुद है। दूसरों को ये अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए की वह अपनी बातों और कृत्यों के जरिये हमे हमारी सोच को और हमारी दशा दिशा को संचालित कर सके। ये उनकी नहीं हमारी कमजोरी दिखता है और उनकी हम पर ताकत का परिचायक है। अगर हम किसी भी बात या घटना को अपनी खुद की सोच और मन के अनुसार तौलेंगे तो उसका परिणाम भी हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप ही आएगा। जीवन घटनाओं और उससे सम्बंधित परिणामों का संचालन है। रोजाना ही कोई न कोई ऐसी घटना अवश्य सामने आएगी जो हमें नकारात्मक भावना की ओर धकेलने का प्रयास करेगी पर उस समय ये आवश्यक है कि हम अपने मन और मस्तिष्क पर काबू रख कर उस घटना में हमारी स्थिरता के परिणाम की सफलता का मूल्यांकन करें। ये एक अच्छा तरीका है किसी घटना या परिस्थिति के लिए अपना नजरिया निर्धारित करने का। हो सकता है कि उठाया गया एक सकारात्मक कदम आप और आप से जुड़े तमाम लोगों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव ला दे। .........
एक नई सोच ने यूँ ही मन में घर किया सोचा आप से बांटूं...... क्या आप ने कभी ये सोचा है कि हम दूसरों के कुछ कह सुन लेने पर यूँ व्यथित क्यों हो जाते हैं ? हम अपनी सोच के खुद मालिक हैं और किस के बारे में क्या सोचना है ,कितना सोचना है ,ये भी हमारा ही मन निर्धारित करेगा ना की कोई और। फिर भी हम अपनी सोच को ,दूसरों की बोली गयी या की गयी किसी बात के अनुसार तोड़ मरोड़ कर वही सोचने लगते हैं जो की उनकी ओर से हमसे अपेक्षित होता है। ये स्थिति द्वन्द पैदा करती है , हमारे विचारों की अच्छाई और बुराई में। इस बात को गहराई से समझिये , किसी एक व्यक्ति ने मुझसे कुछ आपत्तिजनक कहा , कह कर वह चले गए मैंने उस बारे में सोचना प्रारम्भ किया। एक लंबे समय तक उस विचार को मंथते हुए मैंने मन ही मन न जाने कितने अच्छे बुरे निष्कर्ष निकाले। जबकि हो सकता है कि कहने के बाद वह व्यक्ति उस बात से अलग हो गए होंगे। पर मैं आज तक जुडी हूँ क्योंकि मैंने उसे अपने दिमाग में इस कदर बैठा लिया है कि उसका पीछे नहीं छोड़ पा रही . उस बात की प्रतिक्रिया के रूप में उस व्यक्ति से बातचीत भी बंद कर दी गयी। लेकिन क्या बात बंद करने के बाद भी हम उस व्यक्ति से अलग हो पाए ,........ नहीं क्योंकि आज भी हम उसी के बारे में सोचते हुए अपने व्यव्हार को नियंत्रित कर रहे हैं, क्या इस से हमारी सोच की दिशा और दशा बदली ..... बिल्कुल नहीं।
कहने का तात्पर्य ये है कि हमारे मन और सोच के मालिक हम खुद है। दूसरों को ये अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए की वह अपनी बातों और कृत्यों के जरिये हमे हमारी सोच को और हमारी दशा दिशा को संचालित कर सके। ये उनकी नहीं हमारी कमजोरी दिखता है और उनकी हम पर ताकत का परिचायक है। अगर हम किसी भी बात या घटना को अपनी खुद की सोच और मन के अनुसार तौलेंगे तो उसका परिणाम भी हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप ही आएगा। जीवन घटनाओं और उससे सम्बंधित परिणामों का संचालन है। रोजाना ही कोई न कोई ऐसी घटना अवश्य सामने आएगी जो हमें नकारात्मक भावना की ओर धकेलने का प्रयास करेगी पर उस समय ये आवश्यक है कि हम अपने मन और मस्तिष्क पर काबू रख कर उस घटना में हमारी स्थिरता के परिणाम की सफलता का मूल्यांकन करें। ये एक अच्छा तरीका है किसी घटना या परिस्थिति के लिए अपना नजरिया निर्धारित करने का। हो सकता है कि उठाया गया एक सकारात्मक कदम आप और आप से जुड़े तमाम लोगों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव ला दे। .........
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