बचपना बढ़ाने के उपाय........ !


हमारे समय से पहले बड़े होते बच्चों का बचपना कैसे कायम रखें आज चलिए इस विषय पर चर्चा करें और कुछ नए तरीकों पर प्रकाश डालें।  एक विनती हैं आप से इस सन्दर्भ में कोई सुझाव हो तो कृपया कमेंट के रूप में आप भी बाँटें जिससे मुझे भी कुछ नए विचारों का मार्गदर्शन मिलेगा। 
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बच्चे के जन्म के बाद से ही एक माँ उसे जिंदगी जीने की तमाम आवश्यकताओं को सीखाना शुरू करती है।  पेट से तो कोई सब कुछ सीख कर आता नहीं। इस लिए माँ ही प्रथम गुरु के तौर पर उसे हर चीज के बारे में उम्र अनुसार सिखाती रहती है। बच्चे भी उत्सुकता से अपनी जिज्ञासाएं माँ से पूछ -पूछ कर शांत करते हैं। एक उम्र आते आते बच्चे समझदार हो जाते हैं और उन्हें दुनियादारी की  समझ आ जाती है। अब उन्हें लगने लगता है कि अब माँ से पूछ कर हर काम करना उन्हें शोभा नहीं देता इस लिए अब वह अपने निर्णय खुद ही लेंगे।  यही से उनके बचपन का खात्मा शुरू हो जाता है। अब इस बचपन को लंबा कैसे खिंचा जाए ये सोचा जाना बेहद जरूरी है। 
                         सब से पहले हर परिवार में एक ये निर्णय लिया जाना चाहिए कि बच्चे को कौन सी बात माँ सिखाएगी कौन सी पिता। जिस से उस का जुड़ाव दोनों से बराबर हो ये आवश्यक है , और पिता को भी उसकी प्रगति की जानकारी मिलती रहें। अब ये देखें की बच्चे की उम्र के अनुसार उसको दी गयी जानकारी का वह उपयोग कैसे कर रहा है। क्योंकि कोई भी जानकारी तभी फलीभूत होगी जब उसका उचित प्रयोग किया जाएगा। बच्चों को उन की जिज्ञासाओं का प्रतिउत्तर उनकी ही बचकानी भाषा में दिया जाए। जैसे उदाहरण के तौर पर माता पिता के सम्बन्ध को ले...... जब मेरी छोटी सी बेटी ने मुझसे पूछा कि माँ तुमने मुझे पेट में रखा,पैदा किया , संभाला तो तुम्हें डैडी की जरूरत क्यों पड़ी ? ये प्रश्न विकट था।उसे कैसे समझाती कि एक संतान की उत्पत्ति के लिए अंडाणु और शुक्राणु का मिलन जरूरी है।पर जवाब भी ऐसा देना था कि बच्चा संतुष्ट भी हो जाए और हल भी सार्वभौमिक हो। मैंने जवाब दिया .... कि किसी भी बच्चे के पालन पोषण में दो लोगों की भूमिका होती है।एक पिता ,एक माता , यदि मैंने तुम्हे पैदा कर भी दिया तो घर रहकर मैं तुम्हें संभालूंगी या बाहर काम करके तुम्हारे पेट भरने का इंतेजाम करूँ। इस लिए डैडी काम करके तुम्हारी जरूरतों की पूर्ति करते हैं और मैं घर रहकर तुम्हारी आवश्यकताओं का ध्यान। जवाब सुन कर बेटी खुश हो गयी साथ ही उसे दोनों के साथ होने का मतलब भी समझ आया। 
                            हम अपने बच्चों का बचपन अपने हिसाब से लंबा या छोटा बना सकते हैं।ये हमारे खुद के हाथ में है।आजकल बच्चा जब भी नेट पर बैठे , देखें और समझें कि वह क्या देख रहा है। हम इतनी जानकारी रखें कि कंप्यूटर की वह सभी साइट्स ब्लॉक कर दें जो लगता है कि आपत्तिजनक हैं। रोजमर्रा की भी तमाम ऐसी बातें है जिनको हम उन्ही के बचकाने तरीके से उनके सामने कर के अपने अंदर का बच्चा उनके सामने रखते जाएँ। जब भी हम उन्हें बड़ा बनने और समझदार बनने के लिए टोकेंगे वह समझदारी किस दिशा की ओर मोड़ेंगे ये आप को नहीं पता चल पायेगा। इस लिए बेहतर है की अपने बच्चों के साथ बच्चा बन कर उनका बचपन बढ़ाइये और उनको समय से पहले वयस्क सोच से बचाइए। 

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