खुलापन और उत्सुकता का सामंजस्य..................!
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हमारी भारतीय संस्कृति में लिंग भेद को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है और उसकी तमाम मर्यादाओं और सीमाओं की पालना की जाती है। किसी परिवार में पति पत्नी , भाई बहन जैसे सभी रिश्तों में दो अलग अलग लिंग के लोगों के रिश्तें नियमानुसार तयशुदा राह पर आगे बढ़ते हैं। जिससे उसकी पवित्रता कायम रहती है। विदेशी संस्कृति में आज लिवइन संबंधों की बढ़ोत्तरी से खुलापन बढा है। आज सभी इस विचार को सहमति देने लगे हैं की विवाहोपरांत एक लंबे रिश्ते में बंधने से पहले कुछ दिन साथ रह कर एक दूसरे को जान लेना और समझ लेना जरूरी है। जिस के लिए एक दूसरे के साथ समय गुजारा जाना चाहिये। परंतु जिस प्रकृति की ईश्वर ने रचना की है उसमें स्त्री और पुरुष का संग रहना और सम्बन्ध न बनना नैसर्गिक नहीं है। ये होगा और इस के परिणाम भी आएंगे। इस लिहाज से भारतीय संस्कृति में आज भी संबंधों में दूरियां और मजबूरियां कायम हैं। जो तमाम रिश्तों को आज तक चलायमान बनाये हुए हैं।
लेकिन आज मैं जिस विषय पर कुछ कहने का प्रयास कर रही हूँ वह इस सोच से थोड़ा अलग हैं। वह है दो लिंग के लोगों के बीच पर्देदारी रखने से कुछ जानने की उत्सुकता में गलत राह को अपनाने की कोशिश। अब समय आ गया है जब बच्चों के सामने खुलापन रखने से उनकी सोच का दयारा बढ़ेगा और वह दो विपरीत लिंग के लोगों के बीच आकर्षण की सही वजह और मात्रा समझ पाएंगे। जैसे कि पति पत्नी को अपने बच्चों से ये दिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिये कि वह एक दूसरे से दूर दूर रहते है बल्कि ये जताना चाहिए की उनके बीच का सुदृढ़ प्रेम ही घर की मजबूत नीवं हैं। एक दूसरे को छूना या करीब बैठना ,प्यार का इजहार करना ये सब उनके बीच के मजबूत रिश्तें को दर्शायेगा जिस से बच्चे भी प्रेम और प्रेम से जुड़े घर को अपना समझ पाएंगे। साथ ही ये भी समझेंगे कि दो विपरीत लिंग के लोगों के संबंधों को एक नाम दे कर अपनाना उचित हैं जिससे आप अपनी भावनाओं के प्रदर्शन के लिए समाज की स्वीकृति का इन्तेजार नहीं करेंगे।आज भी हमारी राजस्थानी संस्कृति में पति का नाम लेना , पति के पास बैठना या उनसे सरे आम कुछ कहना एक घरेलु स्त्री की बदतमीजी समझी जाती है।तो क्या इस से ये समझा जाए कि सब के सो जाने के बाद देर रात पति के पत्नी के पास आने से ही संतान की सम्भावना ने जन्म लिया और फिर ये तनिक देर का सामाजिक साथ क्या सिर्फ शारीरिक संबंधों के लिए जुड़ा उसमें मानसिक संतोष और अपनापन कहाँ से पनप पाया ? अतः यही जरूरी है कि बच्चे अपने माता पिता के परस्पर प्रेम को महसूस करें।
इसी प्रकार जब से बेटा या बेटी बड़े होने लगते है वह विपरीत लिंग वाले पारिवारिक सदस्य से हो दूरी बना कर रखने लगते हैं जैसे बेटी हर बात माँ को और बेटा हर बात पिता को बताने लगता है। जबकि रिश्ते में मजबूती तब आएगी जब इस पर्देदारी से हट कर उन बातों पर भी गौर करें जो आवश्यक हैं। जैसे की अमूमन घरों में देखा गया है कि लड़की जब से पीरियड्स होने लगती है वह माँ से अपनी बात कहती है पिता को बताने में उसे शर्म महसूस होती है। इसी तरह एक लड़का भी अपने अंदर आने वाले शारीरिक बदलाव को पिता को बताएगा माँ को नहीं। यही सोच बदल कर हम बहुत सी अनहोनी को बदल सकते हैं। ये मानव के स्वाभाव की प्रकृती है कि जो नहीं है उसे जानने की उत्सुकता है जो है उसे यूँ ही स्वीकार कर लेने की नियति। इससे हम सोच को काफी हद तक बदल कर विपरीत लिंग वाले लोगों के बीच दुर्भावना को ख़त्म कर सकते हैं।
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हमारी भारतीय संस्कृति में लिंग भेद को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है और उसकी तमाम मर्यादाओं और सीमाओं की पालना की जाती है। किसी परिवार में पति पत्नी , भाई बहन जैसे सभी रिश्तों में दो अलग अलग लिंग के लोगों के रिश्तें नियमानुसार तयशुदा राह पर आगे बढ़ते हैं। जिससे उसकी पवित्रता कायम रहती है। विदेशी संस्कृति में आज लिवइन संबंधों की बढ़ोत्तरी से खुलापन बढा है। आज सभी इस विचार को सहमति देने लगे हैं की विवाहोपरांत एक लंबे रिश्ते में बंधने से पहले कुछ दिन साथ रह कर एक दूसरे को जान लेना और समझ लेना जरूरी है। जिस के लिए एक दूसरे के साथ समय गुजारा जाना चाहिये। परंतु जिस प्रकृति की ईश्वर ने रचना की है उसमें स्त्री और पुरुष का संग रहना और सम्बन्ध न बनना नैसर्गिक नहीं है। ये होगा और इस के परिणाम भी आएंगे। इस लिहाज से भारतीय संस्कृति में आज भी संबंधों में दूरियां और मजबूरियां कायम हैं। जो तमाम रिश्तों को आज तक चलायमान बनाये हुए हैं।
लेकिन आज मैं जिस विषय पर कुछ कहने का प्रयास कर रही हूँ वह इस सोच से थोड़ा अलग हैं। वह है दो लिंग के लोगों के बीच पर्देदारी रखने से कुछ जानने की उत्सुकता में गलत राह को अपनाने की कोशिश। अब समय आ गया है जब बच्चों के सामने खुलापन रखने से उनकी सोच का दयारा बढ़ेगा और वह दो विपरीत लिंग के लोगों के बीच आकर्षण की सही वजह और मात्रा समझ पाएंगे। जैसे कि पति पत्नी को अपने बच्चों से ये दिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिये कि वह एक दूसरे से दूर दूर रहते है बल्कि ये जताना चाहिए की उनके बीच का सुदृढ़ प्रेम ही घर की मजबूत नीवं हैं। एक दूसरे को छूना या करीब बैठना ,प्यार का इजहार करना ये सब उनके बीच के मजबूत रिश्तें को दर्शायेगा जिस से बच्चे भी प्रेम और प्रेम से जुड़े घर को अपना समझ पाएंगे। साथ ही ये भी समझेंगे कि दो विपरीत लिंग के लोगों के संबंधों को एक नाम दे कर अपनाना उचित हैं जिससे आप अपनी भावनाओं के प्रदर्शन के लिए समाज की स्वीकृति का इन्तेजार नहीं करेंगे।आज भी हमारी राजस्थानी संस्कृति में पति का नाम लेना , पति के पास बैठना या उनसे सरे आम कुछ कहना एक घरेलु स्त्री की बदतमीजी समझी जाती है।तो क्या इस से ये समझा जाए कि सब के सो जाने के बाद देर रात पति के पत्नी के पास आने से ही संतान की सम्भावना ने जन्म लिया और फिर ये तनिक देर का सामाजिक साथ क्या सिर्फ शारीरिक संबंधों के लिए जुड़ा उसमें मानसिक संतोष और अपनापन कहाँ से पनप पाया ? अतः यही जरूरी है कि बच्चे अपने माता पिता के परस्पर प्रेम को महसूस करें।
इसी प्रकार जब से बेटा या बेटी बड़े होने लगते है वह विपरीत लिंग वाले पारिवारिक सदस्य से हो दूरी बना कर रखने लगते हैं जैसे बेटी हर बात माँ को और बेटा हर बात पिता को बताने लगता है। जबकि रिश्ते में मजबूती तब आएगी जब इस पर्देदारी से हट कर उन बातों पर भी गौर करें जो आवश्यक हैं। जैसे की अमूमन घरों में देखा गया है कि लड़की जब से पीरियड्स होने लगती है वह माँ से अपनी बात कहती है पिता को बताने में उसे शर्म महसूस होती है। इसी तरह एक लड़का भी अपने अंदर आने वाले शारीरिक बदलाव को पिता को बताएगा माँ को नहीं। यही सोच बदल कर हम बहुत सी अनहोनी को बदल सकते हैं। ये मानव के स्वाभाव की प्रकृती है कि जो नहीं है उसे जानने की उत्सुकता है जो है उसे यूँ ही स्वीकार कर लेने की नियति। इससे हम सोच को काफी हद तक बदल कर विपरीत लिंग वाले लोगों के बीच दुर्भावना को ख़त्म कर सकते हैं।
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