मन की दासता.......!
*************************
मन का क्या है .....मन की ना है ,
तो जीना क्या छोड़ोगे ?
मन का क्या है.....मन की ना है ,
तो क्या हँसने से मुख मोड़ोगे ?
मन कुटिल है..... मन जटिल है ,
फिर भी लिए फिरते रहते हो।
मन कुटिल है....... मन जटिल है ,
फिर भी उसका ही दम भरते हो।
मन दगा दे....... मन सजा दे ,
पर प्यार उसी को करते हो।
मन दगा दे..... मन सजा दे,
पर उसकी ही सुनते रहते हो।
मन छलिया है ...मन पंछी है ,
जब चाहे उड़ता रहता है।
मन छलिया है......मन पंछी है ,
अपनी कब ये सुनता है।
मन चंचल है ...मन पागल है ,
अपने मन की करता जाये।
मन चंचल है.....मन पागल है ,
इशारों पर सभी को नचाये।
मन जीता हो ....हम हारें हो ,
फिर भी साथ कभी ना छोड़ेंगे।
मन जीता हो ....हम हारें हो ,
चाहे दुनिया से मुख मोड़ेंगे।
कविता
Comments
Post a Comment