मन की दासता.......! 

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मन का क्या है .....मन की ना है ,

तो जीना क्या छोड़ोगे ? 
मन का क्या है.....मन की ना है ,
तो क्या हँसने से मुख मोड़ोगे ? 
मन कुटिल  है.....  मन जटिल है ,
फिर भी लिए फिरते रहते हो। 
मन कुटिल है....... मन जटिल है ,
फिर भी उसका ही दम भरते हो। 
मन दगा दे....... मन सजा दे ,
पर प्यार उसी को करते हो। 
मन दगा दे..... मन सजा दे,
पर उसकी ही सुनते रहते हो। 
मन छलिया है ...मन पंछी है ,
जब चाहे उड़ता रहता है। 
मन छलिया है......मन पंछी है ,
अपनी कब ये सुनता है। 
मन चंचल है ...मन पागल है ,
अपने मन की करता जाये। 
मन चंचल है.....मन पागल है ,
इशारों पर सभी को नचाये। 
मन जीता हो ....हम हारें हो ,
फिर भी साथ कभी ना छोड़ेंगे। 
मन जीता हो ....हम हारें हो ,
चाहे दुनिया से मुख मोड़ेंगे। 

कविता 

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