दिलों पर राज करने वाली नीति  ....... ! 


आज के प्रमुख समाचारों में एक समाचार सर्वोपरि है ..... जयललिता जी का देहांत। उनकी जीवनी तो सभी इंटरनेट के जरिये पढ़ और जान लेंगे पर आज ये तलाशने का प्रयास करते है कि ऐसा क्या था उनके व्यक्तित्व में जो वह जीते जी इतनी प्रसिद्द और प्रिय बन गयी।  सर्वप्रथम उनकी पारिवारिक स्थिति से बात शुरू करते हैं।  जयललिता तीक्ष्ण बुद्धि की बालिका थी , दसवीं की परीक्षा में स्वर्ण मैडल हांसिल किया परंतु पढाई से हट कर गरीबी के कारण उन्हें फिल्मों की ओर मुड़ना पड़ा  शक्ल सूरत की अच्छी होने की वजह से फिल्म में उनका सिक्का जम गया। बचपन में एक दो छोटी फिल्मों में रोल करने के बाद उन्हें कुछ अच्छी फिल्मे के जरिये प्रसिद्धि मिली और जयललिता तमिल फिल्मों की एक बिंदास और कुशल अभिनेत्री के रूप में सब के सामने आयी। अतः सबसे पहली खूबी तो ये कि बुद्धि की कुशाग्र थी और उसका सकारात्मक प्रयोग भी बखूबी जानती थी। 1964 से 1980 के एक लंबे अरसे तक वह फिल्मों में जमी रहीं , परंतु जब उनका फ़िल्मी कैरियर थोड़ा ढलान पर आया तब उन्होंने फिर एक लंबी छलांग मारने के लिए राजनीति में प्रवेश किया। फिल्मों में जिस एम. जी.रामचंद्रन ने हीरो के रूप में उनका साथ दिया उन्होंने ही एक राजनीतिक पार्टी ऑल इंडिया द्रविण मुनेत्र कड़गम बनाते समय जयललिता को पार्टी का सक्रिय सदस्य बनाया। उस समय जयललिता ने अपनी चातुर्य का भली भांति प्रयोग करके पार्टी के सभी सदस्यों को अपनी ओर मोड़ना शुरू किया। जब रामचंद्रन का देहांत हुआ तब रामचंद्रन की पत्नी के सर्वे सर्व होने के बावजूद सभी ने जयललिता को सर्व सम्मति से पार्टी प्रमुख बना लिया। अब दूसरा गुण ये दीखता है कि उनके अंदर लोगो को अपनी ओर मोड़ने और उन्हें अपने समर्थन में खड़े करने की काबिलियत थी। फिर उसके उपरांत एक लंबे राजनीतिक कैरिअर की शुरुआत हुई। 1984 में विधानसभा का चुनाव जीत कर 1991 में मुख्यमंत्री बनी जयललिता ने राजनीति के जरिये आम लोगों का विश्वास जितना शुरू किया। उनका तीसरा गुण जो राजनीति में उनकी ढाल बन गया आम लोगों से सीधे जुड़ने के लिए जनोपयोगी योजनाओं पर अमल । अपनी दूरदर्शिता के सहारे जयललिता ने कई ऐसे निर्णय लिया जो शुरूआती स्तर पर विरोध सहने के बावजूद इतने लोकप्रिय हुए की उन्ही के कारण वह सबकी प्रिय हो गयी। उनके व्यक्तित्व का चौथा गुण था , विरोधाभास के बावजूद दूरदर्शिता से पीछे छिपी सफलता को आंक लेना। उनका अम्मा नाम भी उन्हें आदर स्वरुप उन तमाम लोगों ने दिया जो उनके राजनीतिक कैरिअर की सराहना करते थे। जयललिता का पांचवा गुण था , अविवाहित होते हुए भी अपने अम्मा नाम की गरिमा को बनाये रखना। आज जयललिता चली गयी पर उनके इन तमाम गुणों ने उन्हें अमर बना दिया है। लोगों के दिलों में उतर कर उन्हें खुश करने और उन्हें ये अहसास कराने कि मैं हूँ आप के लिए।  यही उन्हें इतना लोकप्रिय बना गया। 

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