नए वचनों की बदलती उपयोगिता ....... !

विवाह किसी भी समाज के निर्माण और पुनरुथान के लिए एक आवश्यक समायोजना हैं।  तकरीबन हर समाज में विवाह को समाज को आगे बढ़ाये रखने के लिए एक मूलभूत जरूरत माना जाता है। हाँ ये जरूर है की सामाजिक व्यवस्था और रहन सहन के अनुसार उसको लागू करने की प्रक्रिया और चलाये रखने की आवश्यकता को व्यवस्थित किया गया है। भारतीय परिवेश में विवाह सात बंधनों से बँधा हुआ एक ऐसा रिश्ता है जिसे जोड़ा तो अपनी मर्जी से जा सकता है पर तोड़ने के लिए परिवारजनों या कानून की सहायता लेनी पड़ती है। अब मूल मुद्दें पर बात करें जो की मेरे इस लेख का विषय है।  वह है भारतीय विवाह में लिए जाने वाले सात वचन। जीन्हें सप्तपदी के नाम से भी जाना जाता है। 
1. पहला वचन -कन्या वर से कहती है कि आप कभी तीर्थयात्रा पर जाओ , कोई धर्म कर्म के कार्य करे , कोई व्रत उपवास रखें ,तो आज की ही भांति अपने वाम अंग में स्थान अवश्य दें। यदि ये आप को स्वीकर हो तो मई आप के वाम अंग में आना स्वीकार करती हूँ। 
2 . दूसरा वचन -कन्या वर से मांगती है कि इस प्रकार आप अपने माता पिता का सम्मान करते हैं उसी प्रकार मेरे माता पिता 
 भी आप के लिए सम्माननीय होने चाहिए। और कुटुंब की मर्यादा बनाये रखने में आप मेरा सहयोग करेंगे। 
3 .तीसरा वचन -आप जीवन की तीनो अवस्थाओं (युवावस्था,प्रौढ़ावस्था ,वृद्धावस्था )में मेरा पालन करते रहेंगे।4 . चौथा वचन - कन्या वर से मांगती है कि अब तक आप घर परिवार की चिंताओं से मुक्त थे अब विवाह बंधन में बंधने के बाद परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आप के कन्धों पर है। यदि आप इस भार को वहां करने की प्रतिज्ञा करें तो मैं आप के वाम अंग में आने को तैयार हूँ। 
5 .पाँचवा वचन -कन्या वर से कहती है कि अपने घर के कार्यों , लेन देन  और अन्य खर्चों में आप मेरी भी मंत्रणा ले तो मैं आप के वाम अंग में आना स्वीकार करती हूँ। 
6 . छठा वचन - कन्या वर से कहती है कि किसी भी सार्वजनिक स्थान पर आप मेरा उपहास नहीं करेंगे और जुआ तथा अन्य दुर्व्यसनों से दूर रहेंगे तो मैं आप के वाम अंग में आना स्वीकार करती हूँ। 
7 . सातवां वचन - कन्या यह वर से कहती है कि आप सभी पराई स्त्रियों को माता सामान समझेंगे और पत्नी पति के प्रेम के मध्य किसी को भागीदार नहीं बनाएंगे ये वचन देने पर मैं आप के वाम अंग में आना स्वीकार करती हूँ।   
 इस प्रकार इन सातों वचन के जरिये दो इंसान जुड़ कर पति पत्नी बनते हैं। पर सोचने वाला मुद्दा ये है कि इन तमाम वचनों की सार्थकता आज के संदर्भ में कितनी है ?  क्या कभी किसी ने इन वचनों में कुछ नए वचन जोड़ने का प्रयास किया जिनकी आज ज्यादा जरूरत है। हालाँकि इन वचनों को यदि विवाह की सिर्फ एक प्रक्रिया माने तो गलत नहीं होगा क्योंकि आज इन वचनों से कही ऊपर परिस्थितियां और सामंजस्य प्रभावी है एक विवाह के लिए। फिर भी कम से कम आज की जरूरत के अनुसार कुछ ऐसे वचन जो तात्कालिक रूप से आवश्यक है उन्हें जोड़ा जा सकता है जो की दोनों के द्वारा सामूहिक रूप से लिया जाना चाहिए जैसे। ....... 
1 . विचार और धारणा के अनुसार दृष्टिकोण अलग होने के बाद भी हम कोई एक समकक्ष मार्ग निकल कर सहमत होने का प्रयास करेंगे। 
2 . यदि किसी समय किसी बात पर वाद विवाद बढ़ जाए तो उसे शांति और धैर्य से सुलझाने का प्रयास करेंगे। 
3 . एक दूसरे की व्यक्तित्व की परख करते हुए कभी भी कोई विपरीत बात नहीं करेंगे जो कि दूसरे को नापसंद हो। 
4. धन की आवश्यकता और पूर्ति को देखते हुए दोनों के काम काजी होने की स्थिति का सामना दोनों मिल कर करेंगे। 
5. तर्क वितर्क की स्थिति में कोशिश करेंगे कि एक पक्ष शांति बनाये रखेगा जिससे विवाद बढ़ने की आशंका कम हो जाएगी। 
6. परिवार को बढ़ाने का निर्णय पति पत्नी दोनों का संयुक्त रूप से होना चाहिए किसी एक पर दबाव डाल कर या दूसरों के कहने पर लिया जाना चाहिए । 
इस प्रकार ये कुछ आवश्यक मुद्दें है जिन्हें आज के सन्दर्भ में अपनाया जाना आवश्यक है एक सफल और लंबे विवाह बंधन के लिए। जरूरत है एक बड़े बदलाव की पर ये करेगा कौन ये महत्वपूर्ण मुद्दा हैं।  

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