विषमता की अनुरूपता......... !
*********************************
हम अपने जीवन से क्या अपेक्षा करते है ये कभी ध्यान दिया गया ? सब से पहली तो ये कि हम हमेशा खुश रहें। हम अपनी जिंदगी से जो चाहते हैं वह हमें आसानी से मिलता रहे। यह कि सब कुछ हमारे मन माफिक रहे और हमारे जीवन से जुड़े तमाम लोग हमारे अनुसार ढलते रहें जिससे हमें उन सभी से किसी भी मुद्दे पर जूझना न पड़े। सब कुछ अनुकूल रहे जिससे सब खुशनुमा हो जाएगा। आप कि भी यही इच्छा होगी और इस के लिए निरंतर प्रयास भी करते होंगे। बेहतर है। पर अब इस  स्थित को एक बार बदल कर देखें। सब कुछ अलग -अलग है लोग अलग ,परिस्थिति अलग , समय प्रतिकूल , समाज विषम और भी सब कुछ उल्टा पुल्टा सा। अमूमन यही होता है जिंदगी में क्योंकि जीना इसी का नाम है। ईश्वर ने पूरी दुनिया में करोड़ो इंसान बनाये हैं पर एक जरा से ढांचें के गठन से और मिटटी के फर्क ने हर इंसान को एक दूसरे से शक्ल ,अकल और कद काठी में जुदा जुदा कर दिया है। 
                           एक स्थिति की कल्पना करें यदि सभी एक ही शक्ल , कद काठी और अक्ल के होते तो क्या ये दुनिया जीने लायक होती। इस दुनिया के रंग इसी लिए शानदार है ,जानदार है , सदाबहार हैं क्योंकि हम सब अलग हैं। सब की अपनी एक खूबी है ,कुछ कमियां  हैं। एक की कमी दूसरे की खूबी के साथ मिल कर एक नया कमाल दिखा सकती है। सभी एक ही तरह के पारंगत होते तो प्रतिद्वंदिता और मन मुटाव और ज्यादा बढ़ जाता। कम वाला हमेशा ज्यादा वाले की गुणवत्ता की कीमत समझे और कुछ सीखता रहें यही सही मायने में जीवन की कला है। इस सारी विवेचना का सार ये निकलता है कि हम रोज अपने आस पास के सभी लोगों को अपने अनुसार जीने की हिदायत देते रहते है जिससे हमारी जिंदगी आसान हो जाए। उनकी खासियत को ख़त्म कर के उन्हें अपने अनुरूप ढालने का निरंतर प्रयास विलक्षण विशेषताओं को नष्ट कर रहा है। इस लिए एक छोटी सी कोशिश से अपना जीवन आसान करिये।  जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकारने का प्रयास करिये। इसे दो लाभ होने वाले हैं  पहला कि आप बिना वजह की तना-तनी से बच जायेंगे। दूसरा हो सकता है कि उसकी खूबियां आप के लिए भी प्रेरणादायक बन जाएँ। भिन्नता की ताकत को पहचानिये और उसे अपने सामान मत बनाइये।  दो अलग अलग लिंग के लोग जब एक होते हैं तभी सृष्टि जन्म लेती है क्या दो पुरुष या दो महिलाएं साथ हो कर  एक नए जीव को जन्म दे सकती है नहीं न। ....... ये परमात्मा का नियम है इसे स्वीकार करना और जीवन को उसके अनूरूप ढालना ही हमारा उद्द्येश्य होना चाहिये । 

Comments