प्रतिक्रियात्मक शीतलनता ....... !
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कुछ दिनों पहले मैंने एक लेख लिखा नियंत्रित मन.......उस लेख का सार यह था कि मन पर हमारा नियंत्रण इस प्रकार होना चाहिए कि वह किसी की भी , कोई भी बात से अपना धैर्य न खोये। क्योंकि धैर्य खोने का मतलब है कि हम वही सोचने लगे जो कि परिस्थिति हमसे मांग कर रही है। परिस्थिति के अनुसार प्रतिक्रिया करने का अर्थ है कि अनावश्यक उत्तेजना और अभिक्रिया अर्थात हमारा खुद पर नियंत्रण नहीं है। यही नियंत्रण रखने की कला को मनोबल कहा जाता है। मनोबल मजबूत करने के लिए एक सरल और अच्छा उपाय मुझे समझ आता है कि जब भी कभी कोई अप्रत्याशित घटना हमारे जीवन में घटे थोड़ी शांति बरतते हुए कुछ समय उस समस्या के बारे में कुछ भी न सोचें। हालाँकि यह मुश्किल होता है परंतु ये एक सरल और कारगर उपाय है। जिस से उस समस्या की ज्वलनशीलता कम हो जाती है। किसी गर्म बर्तन को हाथ लगाओगे तो हाथ जलेगा पर वही थोड़ा ठंडा होने पर छुओगे तो तकलीफ नहीं होगी। यही मंत्र प्रभावी होता है। गरमा गर्मी में हम यदा- कदा अपशब्द ही कह देते हैं जो आगे और द्वन्द का कारण बन जाता है। जब थोड़ा ठहरेंगे तो दिमाग ठंडा होगा , कुछ नए विचारों से हम समस्या को पुनः परखेंगे। हो सकता है कि शायद वह इतनी बड़ी समस्या ही न हो या हो तो भी उसे सुलझाने के कुछ और तरीके सामने आ रहें हो। आज की तमाम समस्याओं की जड़ उत्तेजना है जो हर एक के मन में सर चढ़ कर बैठी हुई है। जिस से वह किसी भी बात को धैर्य और शांति से सुनने और समझने का समय ही नहीं देता।
कभी कभी ये परिस्थितियां प्रकृति निर्मित होतीं है कभी कभी मानव निर्मित। प्रकृति निर्मित में आप को कुछ भी पहले से पता नहीं होता और अचानक ही एक समस्या या द्वन्द आप के सामने आ जाता है। जिसे आप को स्वीकार करना ही पड़ता है। परंतु मानव निर्मित में तो आप उस व्यक्ति से भली भांति परिचित होतें हैं। इस लिए उसके व्यव्हार को अनदेखा न करते हुए हमें ही उन परिस्थितियों को आने से रोकना चाहिए। इस के लिए भी हमारी सोच को ही तराशने की आवश्यकता है। एक सामान्य सा उदाहरण से इसे समझिये की यदि कभी भूल से सब्जी में नमक ज्यादा पड़ जाए तो उसे कम करने के लिए हम कई उपाय आजमातें हैं , आटे की गोलिया डाल कर पकाना , या फिर दही या देसी घी डाल कर उसका स्वाद बदलना। इसी तरह यदि कभी परिस्थितियां बेमानी सी लगने लगें तो उसके लिए उन्हें अपने अनूरूप ढालने को उसमें उन विशिष्टताओं का समावेश करना चाहिए। जिस से वह उन दो व्यक्तियों के बीच सामंजस्य का पुल बन जाए जो विवाद में फंसे है। जब भी कभी हम शांत मन से कोई निर्णय लेंगे हमारी परिस्थितियां हमारे ही अनूकूल बन कर सामने आएँगी।
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कुछ दिनों पहले मैंने एक लेख लिखा नियंत्रित मन.......उस लेख का सार यह था कि मन पर हमारा नियंत्रण इस प्रकार होना चाहिए कि वह किसी की भी , कोई भी बात से अपना धैर्य न खोये। क्योंकि धैर्य खोने का मतलब है कि हम वही सोचने लगे जो कि परिस्थिति हमसे मांग कर रही है। परिस्थिति के अनुसार प्रतिक्रिया करने का अर्थ है कि अनावश्यक उत्तेजना और अभिक्रिया अर्थात हमारा खुद पर नियंत्रण नहीं है। यही नियंत्रण रखने की कला को मनोबल कहा जाता है। मनोबल मजबूत करने के लिए एक सरल और अच्छा उपाय मुझे समझ आता है कि जब भी कभी कोई अप्रत्याशित घटना हमारे जीवन में घटे थोड़ी शांति बरतते हुए कुछ समय उस समस्या के बारे में कुछ भी न सोचें। हालाँकि यह मुश्किल होता है परंतु ये एक सरल और कारगर उपाय है। जिस से उस समस्या की ज्वलनशीलता कम हो जाती है। किसी गर्म बर्तन को हाथ लगाओगे तो हाथ जलेगा पर वही थोड़ा ठंडा होने पर छुओगे तो तकलीफ नहीं होगी। यही मंत्र प्रभावी होता है। गरमा गर्मी में हम यदा- कदा अपशब्द ही कह देते हैं जो आगे और द्वन्द का कारण बन जाता है। जब थोड़ा ठहरेंगे तो दिमाग ठंडा होगा , कुछ नए विचारों से हम समस्या को पुनः परखेंगे। हो सकता है कि शायद वह इतनी बड़ी समस्या ही न हो या हो तो भी उसे सुलझाने के कुछ और तरीके सामने आ रहें हो। आज की तमाम समस्याओं की जड़ उत्तेजना है जो हर एक के मन में सर चढ़ कर बैठी हुई है। जिस से वह किसी भी बात को धैर्य और शांति से सुनने और समझने का समय ही नहीं देता।
कभी कभी ये परिस्थितियां प्रकृति निर्मित होतीं है कभी कभी मानव निर्मित। प्रकृति निर्मित में आप को कुछ भी पहले से पता नहीं होता और अचानक ही एक समस्या या द्वन्द आप के सामने आ जाता है। जिसे आप को स्वीकार करना ही पड़ता है। परंतु मानव निर्मित में तो आप उस व्यक्ति से भली भांति परिचित होतें हैं। इस लिए उसके व्यव्हार को अनदेखा न करते हुए हमें ही उन परिस्थितियों को आने से रोकना चाहिए। इस के लिए भी हमारी सोच को ही तराशने की आवश्यकता है। एक सामान्य सा उदाहरण से इसे समझिये की यदि कभी भूल से सब्जी में नमक ज्यादा पड़ जाए तो उसे कम करने के लिए हम कई उपाय आजमातें हैं , आटे की गोलिया डाल कर पकाना , या फिर दही या देसी घी डाल कर उसका स्वाद बदलना। इसी तरह यदि कभी परिस्थितियां बेमानी सी लगने लगें तो उसके लिए उन्हें अपने अनूरूप ढालने को उसमें उन विशिष्टताओं का समावेश करना चाहिए। जिस से वह उन दो व्यक्तियों के बीच सामंजस्य का पुल बन जाए जो विवाद में फंसे है। जब भी कभी हम शांत मन से कोई निर्णय लेंगे हमारी परिस्थितियां हमारे ही अनूकूल बन कर सामने आएँगी।
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