मृत्यु दंड की आवश्यकता पर प्रश्न चिन्ह क्यों ?.....  

आप ने कभी भी कोई गलत कार्य किया होगा तो माँ ने डाँटा तो जरूर होगा ये इसलिए था कि ये अहसास हो की ये सही नहीं था। जब भी कोई नियमों के विरुद्ध  जा कर कुछ करता है तो उसे सजा दी जाती है।  और इस सजा के जरिये उसे ये महसूस कराया जाता है कि उसने ऐसा कुछ किया है जो सहज स्वीकार्य नहीं है। हर समाज के कुछ नियम होते हैं और उसमे  रहने वाले का फ़र्ज़ है की उन नियमों के अधीन रह कर जीवन यापन करे। यदि कोई ऐसा नहीं करता तो समाज के द्वारा उसे दण्डित करने के भी  नियम होते हैं। और यही  नियम वहां का कानून कहलाता हैं। कानून के लिए सभी एक सामान होते है इसी लिए हमारे भारत में न्याय की देवी की आँख पर पट्टी बंधी हुई रहती है।  जो भेदभाव न मानने का संकेत देती हैं। 
                            इस मुद्दे से सम्बंधित जो बात मैं कहना चाहती हूँ वह ये है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने सदस्य देशों को ये फरमान सुनाया है कि वह अपने कानून से मौत की सजा ख़त्म कर दे और उसे आजीवन कारावास में बदल दें। मौत की सजा के प्रस्ताव को पिछले हफ्ते महासभा की सामाजिक ,मानवीय ,और सांस्कृतिक मामले की समिति ने अपने तीसरे अधिवेशन में मंजूरी दी हैं। और इस प्रस्ताव के मुताबिक संयुक्त राष्ट्रसभा अपने सभी सदस्य देशों से ये अपील करेगी की वह अपने कानून से मौत की सजा का प्रावधान ख़त्म कर दें। इस प्रस्ताव  के लिए कुल 186 देशों के मतदान पर निर्णय निर्धारित किया गया।  जिसमें से 36 देश गैरहाजिर रहे, 114 ने इस निर्णय के पक्ष में वोट डाला और 36 ने विरोध में वोट दिया। भारत ने विरोध का मत दिया और न ही भारत इस निर्णय के पक्ष में है। संयुक्त राष्ट्रसभा में भारत के प्रथम सचिव मयंक जोशी के अनुसार देश की कानून प्रणाली के संप्रभु  अधिकारों के हनन का किसी को भी अधिकार नहीं है। ये प्रस्ताव इस अधिकार को भी चोट पहुंचाता है की कोई देश अपने अपराधी को किस तरह और कितनी सजा देता हैं। 
           अब इस मुड़े पर अपनी राय के अनुसार विचार करें।  वह ये की पहले तो हम जिस भी समाज में रहते है उसके नियम और कायदे कानून मानना जरूरी हैं। और यदि हम इस के विरुद्ध जा कर कुछ भी करते है तो सजा के लिए भी तैयार रहना चाहिए। सजा क्या होगी ये देश का कानून निर्धारित करेगा। ये तो आप भी स्वीकार करते होंगे की कुछ लोग आदतन अपराधी होता हैं उन्हें कितने भी अच्छे माहौल में रख लिया जाए या कितनी  भी अच्छी सीख दे दी जाए वह अपराध शौक के लिए करते हैं ऐसा में कानून का ढीला पड़ना क्या दूसरों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ न होगा।  दामिनी के ही केस को देखें क्या उस छोटे युवक को माफ़ करना उचित होगा जिसने बड़ों से भी भयंकर कार्य किया हैं।  और फिर जिस को दूसरे के दुःख दर्द से वास्ता नहीं है उससे सहानुभूति रखना मेरी नजर में उचित नहीं। दिन पर दिन बढ़ती जनसँख्या में गलत सोच रखने वाले लोगों की गिनती बढ़ाते रखना क्या सही होगा ? परिस्थितियों को अपराध का जिम्मेदार मानना उचित नहीं है। क्योंकि आज समय बदल चूका है आज अपना स्तर, अपनी पहुँच और अपना रसूख दिखाने के कारण जो अपराध होते हैं वह सजा के ही लायक होते हैं। आज अगर कलयुग और सतयुग की बात करें तो ये मानेंगे की सतयुग अर्थात अच्छी सोच और प्रेम से भरा समाज , जबकि कलयुग अर्थात दूषित और कलंकित भावनाओं ,स्वार्थसिद्धि के लिए कुछ भी कर सकने वाला समाज  ही होगा।  ऐसे में सजा ही एक ऐसी चीज है जो व्यक्ति को गलत कार्य करने से रोकती है अगर इस में भी छूट का प्रावधान रख लिया जाएगा तब तो हर कोई कुछ भी कर सकने को स्वतंत्र हो जाएगा। जो सही गलत का फर्क नहीं कर पाता और सही को सही मानने  को नहीं तैयार नहीं होता उसे जीवन दान दे कर आगे आने वाली तमाम मुश्किलों के जिम्मेदार हम  खुद ही होंगे। देश की तरफ से ये एक सही   निर्णय है जिसे सिर्फ एक समिति का सदस्य होने के नाते मान लेना गलत होगा। क्योंकि भविष्य सबको खुद की देखना और भुगतना पड़ता हैं। 

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