हस्तांतरित होती आजादी का बिगड़ता स्वरुप ……… !

आज एक वास्तविक सत्य से रूबरू होते हैं जिस का सामना आप भी हमेशा करते ही होंगे। वह है अपनी आजादी का सही अर्थ न समझ पाना और उसके दुरुपयोग  के हर संभव तरीको को आजमाना। देश 1947 से आजाद है और व्यक्ति की सोच और इच्छाएं शायद उस से भी पहले से।  यदि ऐसा नहीं, तो कुछ लोगों की महत्वाकांक्षा के चलते भारत -पाकिस्तान न बने होते। आजादी की लड़ाई में जहाँ कुछ लोग निःस्वार्थ होकर अपनी जान दिए जा रहें थे वही पर सर्वेसर्वा कुछ लोग इस गणित में मशगूल थे की फतह के बाद हमें कौन सा पद हथियाना है। उनके लिए आजादी एक नए सिरे से बेहतरी की ओर एक कदम था। फिर भी एक सत्य स्वीकार करना आवश्यक है कि उस समय इच्छाएं जनहित से ऊपर नहीं होती थी। यही कारण था कि उस समय राजनीति मानवता को  नहीं लील पाई थी। व्यक्ति अपनी इच्छापूर्ति  के ही साथ एक सामाजिक प्राणी होने के भी सारे फ़र्ज़ निभाता था। परन्तु आज आजादी का अर्थ बदल गया है आज आजादी का अर्थ है वह करना ,कहना या सुनना जो लोग सामान्यतः नहीं पसंद करते और जिसे समाज में सहर्ष स्वीकृति नहीं दी गयी है । आज इसे एक अधिकार के रूप में प्रयोग किया जाता है। और इसी अधिकार के चलते आज समाज में इतनी विसंगतियां पैदा हो रही हैं। व्यक्ति की लगातार बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को हवा ये अधिकार ही देता है की हम आजाद है। 
                     हमारी पीढ़ी ने गुलामी नहीं देखी  फिर भी किताबों से या बड़े बुजुर्गों से जो कुछ भी सुनते और जानते है उस से ये पता चलता है कि उस गुलामी ने पूरे देश के सब लोगों को किस एकता में पिरो कर रखा था। एक को बचाने के लिए हजारों हाथ खड़े हो जाते थे। आज हम आजाद है इस लिए एक को मारने के लिए हजारों हाथ मिल जाएंगे बशर्ते कोई जायज वजह न हो। आज आजादी सामाजिक सत्य न होकर बल्कि व्यक्तिगत सत्य बन चुकी  है। जो की समाज से ज्यादा  मन में समां चुकी  है और मन का तो हाल आप सभी जानते ही हैं। हमेशा उसी ओर जाने के लिए बाध्य करेगा जो रास्ता प्रतिबंधित हैं। जिस दिन हम भारतीय अपने मन से आजादी की परिकल्पना निकाल देंगे और स्वयं को समाज के अधीन मान कर जीने लगेंगे उस दिन से भारत की स्थिति सुधरने लगेगी।  स्वतंत्रता को सही मायने में देखें तो आप कभी भी स्वतंत्र नहीं हैं।  जन्म के बाद माँ के ऊपर निर्भरता,  बड़े होकर पिता के ऊपर , उसके बाद विद्यालयों में प्राचार्य और शिक्षकों पर निर्भर ,काम काज लगने के बाद अपने बड़े अधिकारीयों के ऊपर निर्भरता , विवाह के बाद पति और पत्नी की एक दूसरे के ऊपर  निर्भरता , और बुजुर्ग होने पर अपने बच्चों पर निर्भरता। यदि ये पूरा चक्र देखें तो आप तो कभी भी स्वतंत्र हो कर जीयें ही नहीं हमेशा किसी न किसी के अधीन रहकर आप ने जिया और उस अधीनता में  भी निरंतर प्रगति की। प्रगति इस लिए की रोज बढ़ती जिंदगी ने आप का साथ कभी नहीं छोड़ा और आप से जुड़े सभी लोगों ने आप को बेहतर ही देने का प्रयास किया। परन्तु जब आप समर्थ होते है तब स्वतंत्रता के मायनों को बदलने  के चक्कर में आप जीवन का गणित बिगाड़ देतें है और यही से सामाजिक विसंगतियों का प्रारम्भ होता हैं। अपनी आजादी को इस तरह महसूस कीजिये की ये हमारे माता पिता का बख्शा हुआ ऐसा तोहफा है जिसे हमें अपनी आने वाली नस्लों को सौपना हैं। उन्हें उनकी आजादी किस रूप में मिलेगी ये आप खुद ही तय करेंगे …………।  

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