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किसी देश के बेहतर होने के क्या क्या लक्षण होते है पहला ये की वहाँ की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो, दूसरा लोग सुरक्षित महसूस कर सकें , तीसरा हर व्यक्ति के पास काम हो और घर चलने लायक जीविका हो , और सबसे महत्वपूर्ण सत्य ये की महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी हो। अब सोच कर ये बताये की ये सारे कारण क्या हिंदुस्तान में नजर आते हैं ? आज भी कुल आबादी का करीब 35 % तबका गरीबी के नीचे जी रहा है जिसे आजीविका चलने के लिए अनैतिक कार्य भी करने पड़ जाते हैं। यही कारण है की चोरी चकारी लूटपाट जैसी घटनाएं बढ़ जाती हैं। महिलाओं की स्थिति की तो बात न ही की जाए तो बेहतर होगा क्योंकि अगर ढोल ले कर भी इस विषय के लिए नारे लगाएं जाए तो भी शायद किसी के कान पर जूँ नहीं रेंगने वाली। अब धीरे धीरे समाज भी असंवेदनशील होता जा रहा है कि जो भी हो रहा है होने दो , हम पर नहीं तो हमें क्यों फर्क पड़ने लगा ? इस लिए भारत की उन्नति की बात तब सार्थक होगी जब सुख ,सुरक्षा और सुविधा तीनों एक साथ व्यक्ति के पास होगी ।
इस का एक ज्वलंत उदहारण देखें और महसूस करें की सत्य कितना भयावह हैं। वडोदरा की एक युवती ने एक social site पर खुद को बेचने के पेशकश की गुहार लगाई है। उसकी माँ लकवाग्रस्त है और पिता का भी एक दुर्घटना में पैर ख़राब हो गया। दोनों चारपाई के मोहताज हो गया हैं। पहले वह युवती नौकरी करती थी पर अब उन दोनों की देखभाल के चलते उसे नौकरी छोड़नी पड़ी। जिस से घर में भुखमरी का साम्राज्य हो गया। बिजली पानी का भी कनेक्शन काट दिया गया। जब उसने मदद की गुहार लगाई तब उसे उसके बदले अपने इज्जत से समझौता करने के लिए बाध्य किया गया। लोग उसकी परिस्थिति के फायदा उठाने के लिए उसे लालच दे कर अनेकों तरीके से फुसला रहें है पर स्वाभिमान के चलते वह युवती आज भी इस कीचड़ से मुक्त रह पाई। अब जब जीवन यापन असंभव नजर आने लगा तब उसने ये अकल्पनीय कदम उठाया।
अब इस घटना की वास्तविकता पर गौर करें पहला तो ये की उसके माता पिता की कोई दूसरी संतान नहीं है जो बाहर रह कर कार्य कर सकें। दूसरा ये की एकलौती संतान भी युवती है जिस के कार्य करने से माता पिता की देखभाल नहीं हो सकती। तीसरा ये की युवती होने का दंश उसके अन्यत्र कार्य करने में बाधक बन रहा हैं। चौथा ये कि समाज में नोच कर खाने वालों की क़तार में उस की जरूरतों का पड़ला हमेशा भारी रहता हैं और उसे ये अहसास भी कराया जाता होगा। पांचवा ये कि सरकार या समाज से मदद की उम्मीद खत्म होने के बाद ही उसने ये दुःसाहसिक कदम उठाया। उसे ये अहसास हुआ की इस तरह ख़रीदी जाने से वह कम से कम किसी एक की तो जागीर रह पाएगी , अन्यथा हर कोई मदद का भुगतान उसे इस्तेमाल कर के करना चाहेगा। इस घटना ने साबित कर दिया की भारत में आजादी नहीं हैं। आज भी तानाशाहों की तरह सरकार में बैठे नुमाइंदे सिर्फ अपनी जेबें भरने और पीढ़ियों का इन्तेजाम करने में लगे हैं। उन्हें सदन में बैठ कर अपनी presence दिखाने की रूचि है न की उन मसलों को सुलझाने की जो प्रत्यक्ष रूप से जनता से जुड़े हैं। सदन के रोजमर्रा के झगड़ों और बहसबाजी से तो यही साबित होता है। खैर मेरी नज़रों में युवती के ये फैसला दुखद तो है पर समाज को दिखाने के लिए एक आईने के सामान है। पर समाज के साथ एक परेशानी है की वह वही देखता है जो वह देखना चाहता है। जिस से सिर्फ उसका सरोकार जुड़ा हैं। ..........
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