सरकारी तंत्र की विडम्बना का सच …………!
इसे अपने भाग्य की विडम्बना कहें या चिकित्सा जगत की लापरवाही जो हमारा स्वास्थ्य इनके हत्थे चढ़ जाता है और ये, जिन्हे हम भगवान का रूप मानते हैं हमारी ही जान के दुश्मन बन जाते हैं। आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ ? सरकार द्वारा कई चिकित्स्कीय स्कीमों के जरिये इलाज करवाने पर जनता को लाभ देने की स्थिति बनाई गयी हैं और सामान्यतः गरीब परिवार इन्ही स्कीमों के तहत अपना इलाज करवा कर लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। ये शिविर डॉक्टरों को एक टारगेट के साथ दिए जाते है जिन्हे बाद में उच्च अधिकारीयों द्वारा विश्लेषित किया जाता हैं। ऐसा ही मामला छत्तीसगढ़ सरकार के एक नसबंदी (sterilization surgery ) शिविर में देखने को मिला जहाँ महज टारगेट पूरा करने के उद्द्येश्य से डॉकटरों ने 83 महिलाओं की जान जोखिम में डाल दी और वह मौत और जिंदगी के बीच झूल रही हैं। इनमे से कुछ की तो मृत्यु भी हो चुकी है जिनके नवजात बच्चे अब किस माँ के भरोसे पल पाएंगे। गए सोमवार को सरकार के द्वारा आयोजित एक नसबंदी शिविर में ऑपरेशन के लिए लगभग 43 महिलाओं ने रजिस्ट्रेशन करवाये। ये संख्यां उनके टारगेट के हिसाब से काफी कम थी सो दाइयों को भेज कर उन महिलाओं पर भी दबाव बनाया गया जिंनके बच्चे अभी दुधमुहें हैं।और इस तरह जबरन इकठ्ठा की गयी करीब 83 महिलाओं की नसबंदी कर दी गयी।
अब इस शिविर का पूरा हाल जाने की ऐसा हुआ क्यों ? शिविर उस अस्पताल में लगाया गया जो की विगत 6 माह से लगभग बंद पड़ा था। सभी औजार खस्ता हाल थे और महीनों से धूल खा रहे थे। उपयोग से पहले उन्हें स्टरलाईज़ भी नहीं किया गया।सबके लिए उन्ही औजारों का प्रयोग कर लिया गया। सबसे बड़ी विडम्बना ये की सभी महिलाओं के लिए एक ही सुई का प्रयोग कर के इतिश्री कर ली गयी कि अब उन्हें उनके टारगेट के पूरा होने पर मान देय मिल जायेगा। अपने फायदे के लिए किसी की बलि चढ़ा कोई डॉक्टरों से सीखे। और तो और एक और भयावह सत्य से रूबरू होइए कि इस शिविर में नसबंदी करवाने पर उन्हें जो मानदेय मिलना चाहिए था 1400 रुपये उसके बदले में सिर्फ 600 रुपये दे कर निपटारा कर लिया गया। और इस के बाद भी उन्हें निजी वाहन में लाने- ले जाने के नाम पर 200 रुपये और वसूल लिए गए। क्या इसे अत्याचार की श्रेणी में नहीं रखा जाए। ये सरकारी तंत्र की घोर लापरवाही का ही नतीजा है की आज जो भी महिलाएं जीवित हैं वह भी किसी बड़े रोग से पीड़ित हो सकती हैं। एक बात समझ में नहीं आती की एक दुधमुहें बच्चे से उसकी माँ का आसरा छीन कर उसे 2 या 4 लाख दे देने पर वह प्यार भरा ममता का आँचल मिल जाएगा। सरकार ऐसे कैंप लगाती ही क्यों है जिसमें डॉक्टरों को सिर्फ अपने मतलब रहता हैं और ये भी एक कमाल ही है की जब स्वास्थ्य मंत्री ने दौरा किया तो उन्हें दुखी होने के बजाये सिर्फ हँसते हुए पाया गया। कोई दुःख नहीं कोई ग्लानि नहीं। क्योंकि उनकी माँ उन्हें छोड़ कर नहीं गयी न ....... . क्या हो गया है आज मानवता खत्म सी होती जा रही लोग सिर्फ अपना नफा नुकसान के बाबत कार्य करते नजर आ रहे हैं। ये अच्छा है की इस तरह की योजनाओं के जरिये सरकार लोगो को लाभ पहुँचाना चाहती है पर जो लोग इस योजना से जुड़ें है उन्हें ईमानदार होने की जरूरत हैं तभी वाकई लोगों को फायदा मिल पायेगा। उन्हें ये समझना होगा कि उनके पेशे में जिंदगियां जुडी हैं और उनकी ईमानदारी लोगों को जीवन भर का सुख दे सकती हैं।
इसे अपने भाग्य की विडम्बना कहें या चिकित्सा जगत की लापरवाही जो हमारा स्वास्थ्य इनके हत्थे चढ़ जाता है और ये, जिन्हे हम भगवान का रूप मानते हैं हमारी ही जान के दुश्मन बन जाते हैं। आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ ? सरकार द्वारा कई चिकित्स्कीय स्कीमों के जरिये इलाज करवाने पर जनता को लाभ देने की स्थिति बनाई गयी हैं और सामान्यतः गरीब परिवार इन्ही स्कीमों के तहत अपना इलाज करवा कर लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। ये शिविर डॉक्टरों को एक टारगेट के साथ दिए जाते है जिन्हे बाद में उच्च अधिकारीयों द्वारा विश्लेषित किया जाता हैं। ऐसा ही मामला छत्तीसगढ़ सरकार के एक नसबंदी (sterilization surgery ) शिविर में देखने को मिला जहाँ महज टारगेट पूरा करने के उद्द्येश्य से डॉकटरों ने 83 महिलाओं की जान जोखिम में डाल दी और वह मौत और जिंदगी के बीच झूल रही हैं। इनमे से कुछ की तो मृत्यु भी हो चुकी है जिनके नवजात बच्चे अब किस माँ के भरोसे पल पाएंगे। गए सोमवार को सरकार के द्वारा आयोजित एक नसबंदी शिविर में ऑपरेशन के लिए लगभग 43 महिलाओं ने रजिस्ट्रेशन करवाये। ये संख्यां उनके टारगेट के हिसाब से काफी कम थी सो दाइयों को भेज कर उन महिलाओं पर भी दबाव बनाया गया जिंनके बच्चे अभी दुधमुहें हैं।और इस तरह जबरन इकठ्ठा की गयी करीब 83 महिलाओं की नसबंदी कर दी गयी।
अब इस शिविर का पूरा हाल जाने की ऐसा हुआ क्यों ? शिविर उस अस्पताल में लगाया गया जो की विगत 6 माह से लगभग बंद पड़ा था। सभी औजार खस्ता हाल थे और महीनों से धूल खा रहे थे। उपयोग से पहले उन्हें स्टरलाईज़ भी नहीं किया गया।सबके लिए उन्ही औजारों का प्रयोग कर लिया गया। सबसे बड़ी विडम्बना ये की सभी महिलाओं के लिए एक ही सुई का प्रयोग कर के इतिश्री कर ली गयी कि अब उन्हें उनके टारगेट के पूरा होने पर मान देय मिल जायेगा। अपने फायदे के लिए किसी की बलि चढ़ा कोई डॉक्टरों से सीखे। और तो और एक और भयावह सत्य से रूबरू होइए कि इस शिविर में नसबंदी करवाने पर उन्हें जो मानदेय मिलना चाहिए था 1400 रुपये उसके बदले में सिर्फ 600 रुपये दे कर निपटारा कर लिया गया। और इस के बाद भी उन्हें निजी वाहन में लाने- ले जाने के नाम पर 200 रुपये और वसूल लिए गए। क्या इसे अत्याचार की श्रेणी में नहीं रखा जाए। ये सरकारी तंत्र की घोर लापरवाही का ही नतीजा है की आज जो भी महिलाएं जीवित हैं वह भी किसी बड़े रोग से पीड़ित हो सकती हैं। एक बात समझ में नहीं आती की एक दुधमुहें बच्चे से उसकी माँ का आसरा छीन कर उसे 2 या 4 लाख दे देने पर वह प्यार भरा ममता का आँचल मिल जाएगा। सरकार ऐसे कैंप लगाती ही क्यों है जिसमें डॉक्टरों को सिर्फ अपने मतलब रहता हैं और ये भी एक कमाल ही है की जब स्वास्थ्य मंत्री ने दौरा किया तो उन्हें दुखी होने के बजाये सिर्फ हँसते हुए पाया गया। कोई दुःख नहीं कोई ग्लानि नहीं। क्योंकि उनकी माँ उन्हें छोड़ कर नहीं गयी न ....... . क्या हो गया है आज मानवता खत्म सी होती जा रही लोग सिर्फ अपना नफा नुकसान के बाबत कार्य करते नजर आ रहे हैं। ये अच्छा है की इस तरह की योजनाओं के जरिये सरकार लोगो को लाभ पहुँचाना चाहती है पर जो लोग इस योजना से जुड़ें है उन्हें ईमानदार होने की जरूरत हैं तभी वाकई लोगों को फायदा मिल पायेगा। उन्हें ये समझना होगा कि उनके पेशे में जिंदगियां जुडी हैं और उनकी ईमानदारी लोगों को जीवन भर का सुख दे सकती हैं।
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