धर्म - पाखंड बनाम समर्पण

धर्म - पाखंड बनाम समर्पण ( भाग -2)

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आज जब धर्म का नाम लेकर विभाजन, हिंसा और प्रदर्शन बढ़ रहा है, तो समाज को प्रह्लाद की भक्ति और सरलता की आवश्यकता है। क्योंकि धर्म का सार यह तो कत्तई नहीं कि हम कितने ज्यादा धार्मिक दिखते हैं, बल्कि यह है कि हमारे भीतर कितनी करुणा, दया और सत्य जीवित है।हम दूसरों की किस भावना से देखते और स्वीकार करते हैं। क्योंकि कहा गया है ना कि जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। अर्थात ईश्वर हमारे विचारों के अनुरूप ढलते और मिलते हैं।

सच्चा धर्म किसी मत , ग्रंथ या प्रवचन में नहीं बसता। वह वहाँ रहता है जहाँ मन विनम्र और दयालु है। आधुनिक युग में धर्म के पाखंडियों रावण और कालनेमियों जैसे और उनके समर्थकों की संख्या बहुतायत में है। धर्म का पाखंड करने वाले साधू प्रह्लाद नहीं होते। उनका ईश्वर से कोई नाता नहीं होता। उनका दिखावे का कारण सिर्फ एक ही होता है कि धर्म इनके लिए प्रतिष्ठा , पैसा, शक्ति प्राप्त करने का व्यवसाय था । लोगों को इस भ्रम में रखना कि ईश्वर तक पहुंचने का जरिया वो साधु संत ही हैं। 

         जबकि हमारे भारत में लाखों उदाहरण है जिनके उपर ईश्वर का आशीर्वाद होता है ," बाल ना बांका कर सकै जो जग बैरी होय । " अहमदाबाद एयरोप्लेन क्रैश में एक व्यक्ति का जीवित बच जाना ।  राहुल गांधी का गिरते हुए एयरोप्लेन का पुनः सम्हल जाना और सभी का सुरक्षित बच जाना । लाखों करोड़ों लोगों में इक्का दुक्का लोग ही ईश्वर की चेतावनी को पहली दूसरी बार में ही समझ पाते हैं। और जो समझ पाते हैं वही लंबा और सुरक्षित चल पाते हैं। शेष लाखों करोडो लोग ईश्वर की चेतावनी को इग्नोर करते हैं क्योंकि तथाकथित प्रतिष्ठा, पैसा, पद  उनके दिमाग पर भारी पड़ जाता है ।

इसलिए ये समझा जाना बेहद ज़रूरी है कि धर्म आखिर है क्या...क्या उसे तन पर ओढ़े भर रहने से खुद को धार्मिक दिखाना आसान हो जाता है। जैसे आजकल पोंगा पंडित लोग भगवाधारी होने का ढोंग करके लोगों को ये भ्रम दिखाते हैं कि वो ही असल धार्मिक है और ईश्वर के सच्चे दूत। असल में समझा जाये तो धर्म मन और आत्मा में बसा लिया जाने वाला भाव है। जब उससे आत्मा एकाकार हो जाती है तब मन में दया, करुणा, प्रेम और समर्पण की भावना जागृत होती है। और ये हरेक के लिए होती है। पेड़ पौधे जीव जंतु मनुष्य हर किसी के लिए मन में प्रेम और दया का भाव। धर्म बस जैसा ईश्वर ने हमें रचा उसी तरह सरल रहना सिखाता है।  जब भी कोई अपनी मूल प्रवृत्ति से हटकर अलहदा सोचने लगता है वहां धर्म का ह्रास होने लगता है। बस सरल मनुष्य बने रहें यही सच्चा धर्म है। 

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