कब कौन मुकर जाए

कब कौन मुकर जाए

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हर किसी को वाकिफ़ न किया करो अपने मिजाज़ से

पता नहीं कब कौन मुकर जाए दिखावे के लिहाज़ से

लोग बहुत मतलबी और शातिर होने लगे है आजकल

रूह को मार बैठे हैं सब जो अपने लगते थे अंदाज़ से

हम अपना समझते रहे....उन सभी को मौके-बेमौके

जिंदगी ने जब कभी उनसे आमना सामना करवाया

उन्हें अलहदा न समझ हमने बाहें खोलकर अपनाया 

जिनकी फितरत ही संशयपूर्ण थी रिश्ते के आगाज़ से 

कौन जाने कब कहाँ कोई हाथ छुड़ाकर यूँ ही चल दे

आस रखकर हम पुकारते रहें कि वह वापस आएगा

पर किसको फ़िक्र है, हमारी बेकरारी और तलब की 

जो बहरे होने का ढोंग कर भाग रहे हमारी आवाज़ से

         ~ जया सिंह ~

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